लखनऊ के हिमांशु सिंह इस वर्ष कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, अरवाइन से स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं। विदेश में पढऩा है तो भारी रकम भी चाहिए। 29 साल के सिंह कहते हैं, 'मैंने देश के कुछ वित्तीय संस्थानों से कर्ज मांगा था मगर उन्होंने जवाब देने में बहुत वक्त लगा दिया। एक संस्थान जमानत (गिरवी) के बगैर कर्ज देने को तैयार हुआ मगर बाद में मुकर गया।' इसके बाद सिंह ने एक विदेशी ऋणदाता कंपनी प्रॉडिजी फाइनैंस में आवेदन किया और उन्हें 50,000 डॉलर का कर्ज मिल गया। देसी कंपनियों से कर्ज आसान नहींविदेश में शिक्षा के लिए ऋण देने वाले भारतीय बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की कुछ शर्तें होती हैं। बैंकबाजार के मुख्य कार्याधिकारी आदिल शेट्टïी कहते हैं, 'विदेश में पढ़ाई पर बड़ी रकम खर्च होती है इसलिए कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान जमानत या गिरवी के बिना ऋण नहीं देता। इतना ही नहीं जायदाद पूर्ण स्वामित्व (फ्रीहोल्ड) वाली होनी चाहिए और इस पर किसी दूसरे व्यक्ति या इकाई का दावा नहीं होना चाहिए।' ऋण की रकम 7.5 लाख रुपये से अधिक होने पर ग्राहक को कोई जायदाद या अन्य वस्तु गिरवी रखनी पड़ती है। कुछ देसी ऋणदाता वित्तीय संपत्तियां भी गिरवी रख लेते हैं। शिक्षा सलाहकार कंपनी द चोपड़ाज के संस्थापक नवीन चोपड़ा कहते हैं, 'कुछ संस्थान फिक्स्ड डिपॉजिट, म्युचुअल फंड और शेयर भी गिरवी के तौर पर स्वीकार करते हैं।' कई कर्जदाता सह-आवेदक (खासकर माता-पिता) का नाम भी आवेदन में देने के लिए कहते हैं। सह-आवेदक ऋण गारंटर माने जाते हैं और छात्र कर्ज नहीं लौटाए तो बकाया रकम वे ही चुकाते हैं। चूंकि रकम बड़ी होती है इसलिए सह-आवेदक की साख और ऋण चुकाने की क्षमता भी मायने रखती है। बैंकिंग उद्योग के एक विशेषज्ञ के अनुसार पढ़ाई खत्म करने के बाद छात्र जब नौकरी शुरू करते हैं दूसरे में चले जाते हैं। अगर सह-आवेदक भारतीय हैं तो ऋणदाताओं को उनके बारे में पता करने में आसानी होती है। कम झंझट के साथ आवेदनभारतीय ऋणदाताओं से रकम मिलने में दिक्कतें देखकर सिंह ने प्रॉडिजी फाइनैंस में आवेदन किया। सिंह कहते हैं, 'इस संस्थान ने कम से कम औपचारिकताओं के साथ केवल 21 दिन में कर्ज मंजूर दिया।' प्रॉडिजी ने कुछ भी गिरवी रखने को नहीं कहा। जब कोई छात्र किसी विदेशी संस्थान से कर्ज लेता है तो उसके लेनदेन का लेखा-जोखा (क्रेडिट हिस्ट्री) उस देश में दर्ज होता है जहां वह गया है। एमपावर फाइनैंस में महाप्रबंधक एवं उपाध्यक्ष (भारत) अश्विनी कुमार कहते हैं, 'इससे उस छात्र नए देश की वित्तीय प्रणाली से जुड़ जाता है।' ब्याज दरों में अंतरशिक्षा ऋणों पर ब्याज दरों में काफी अंतर देखने को मिलता है। सिंह को 8.93 प्रतिशत दर से ब्याज देना होगा। उन्होंने 50,000 डॉलर ऋण लिए हैं और इसके लिए प्रॉडिजी फाइनैंस ने 2,500 डॉलर फीस ली है। इससे उनकी कुल ऋण रकम बढ़कर 52,500 डॉलर हो गई है। इस तरह, 50,000 डॉलर के मूलधन पर प्रभावी ब्याज दर अब 10.22 प्रतिशत हो गई है। सिंह ने परिवर्तित दर पर ऋण लिया है और यह लंदन इंटर-बैंक ऑफर्ड रेट (लाइबोर) से जुड़ी है। अगर इसमें बदलाव होता है तो सिंह पर ऋण का बोझ बढ़ सकता है। कुछ संस्थान नियत दरों पर भी कर्ज देते हैं। कुमार कहते हैं, 'हमारी ब्याज दरें नियत होती हैं, इसलिए छात्रों को ब्याज दरों में परिवर्तन की चिंता नहीं सताती है।' भारतीय छात्रों के लिए ब्याज दरें 9 से 14 प्रतिशत के बीच होती हैं। कुछ शिक्षण संस्थान कर्जदाता संस्थानों से तालमेल करते हैं और उनके जरिये छात्रों को ऋण मुहैया कराने में मदद करते हैं। चोपड़ा कहते हैं, 'अगर छात्र अपने संस्थान के माध्यम से कर्ज लेते हैं तो उन्हें ब्याज दरों में करीब 4-5 प्रतिशत तक की छूट मिल जाती है। भारतीय वित्तीय संस्थानों की तुलना में ब्याज दर 3 से 5 प्रतिशत तक कम रह सकती है।' अगर छात्र ऑटो-पे (बैंक खाते से रकम स्वत: कट जाना) लगाते हैं और नियमित तौर पर भुगतान करते हैं, साथ ही निर्धारित अवधि में पाठ्यक्रम पूरा कर लेते हैं तो ऋणदाता उन्हें ब्याज दरों में कुछ रियायत देते हैं। कड़ी पात्रता शर्तेंचूंकि, ये कर्जदाता बिना किसी जमानत या सह-आवेदक के बड़ी रकम उधार देते हैं इसलिए ग्राहकों के लिए उन्होंने कड़ी पात्रता शर्तें तय कर रखी हैं। चोपड़ा कहते हैं, 'वे तभी कर्ज देते हैं जब उन्हें लगता है कि छात्र का दाखिला अच्छे कॉलेज में हो रहा है और जिस पाठ्यक्रम में उन्होंने नामांकन कराया है उसे पूरा करने के बाद कमाई की अच्छी संभावनाएं हैं।' ऋण की रकम विश्वविद्यालय और पाठ्यक्रम पर भी निर्भर करती है। ऋणदाता आम तौर पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित या एमबीए के लिए अधिक ऋण देने के लिए तैयार रहते हैं। सिंह के लिए प्रॉडिजी ने 70,000 डॉलर कर्ज मंजूर किया था मगर उन्होंने 50,000 डॉलर ही लिया। इन पाठ्यक्रमों छोड़कर दूसरे पाठ्यक्रमों के लिए वित्तीय संस्थान अपेक्षाकृत कम कर्ज दे सकते हैं। जोखिम का भी रखें ध्यानऋण की रकम अधिक होती है इसलिए छात्रों के लिए मोटे वेतन वाली नौकरी पाना भी जरूरी होता है। अगर छात्र भारत लौटता है और यहां नौकरी करता है तो उसे दोहरी समस्या से जूझना पड़ सकता है। पहली बात तो भारत में नौकरी से प्राप्त वेतन कम रह सकता है। एमबी वेल्थ फाइनैंशियल सल्यूशंस के एम बी बर्वे कहते हैं, 'भारत में आप कमाई रुपये में करेंगे लेकिन ऋण डॉलर में चुकाएंगे। यह भी ध्यान में रखें कि हरेक साल रुपया डॉलर के मुकाबले औसतन 3-4 प्रतिशत फिसलता जाता है।' विदेशी ऋणदाता से लिए गए ऋण पर आयकर अधिनियम की धारा 80 ई के तहत कर छूट का भी लाभ नहीं मिलता है।
