भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में कहा था कि मई और जून में महंगाई दर तय ऊपरी सीमा पार कर गया, जिसे लेकर मौद्रिक नीति संबंधी प्रतिक्रिया पर बहस ने जोर पकड़ा है। शुक्रवार को जारी एमपीसी के ब्योरे से यह जानकारी मिली है।
रिजर्व बैंक ने 4 से 6 अगस्त के बीच हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक का ब्योरा आज जारी किया। दास ने कहा, 'इस समय वक्त की जरूरत दो कदमों की है। पहला, अर्थव्यवस्था को मौद्रिक नीति का समर्थन जारी रखा जाए और दूसरा महंगाई के किसी स्थायी दबाव पर लगातार नजर रखी जाए।' उन्होंने कहा, 'अर्थव्यवस्था फिर से गति हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है, जिसने वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में थोड़ी गति मिली थी।'
समिति की बैठक में एकमात्र सदस्य जयंत आर वर्मा ने 'समावेशी' रुख जारी रखने के खिलाफ मतदान किया और वह रिवर्स रीपो रेट बढ़ाए जाने के पक्ष में थे। मौद्रिक नीति समिति पर चर्चा ऐसे समय में हुई है, जब मई और जून में महंगाई दर रिजर्व बैंक की तय सीमा 2 से 6 प्रतिशत के ऊपर 6.3 प्रतिशत पर रही। बहरहाल जून में महंगाई दर में सुधार हुआ और रिजर्व बैंक ने बहुत ढीली समावेशी नीति जारी रखी, जिससे व्यवस्था में 11 लाख करोड़ रुपये से ऊपर नकदी बनी हुई है। महंगाई दर ऊपर रहने के बावजूद 6 सदस्यों वाली एमपीसी ने लंबे समय से जारी समावेशी नीति जारी रखने का पक्ष लिया।
एमपीसी के बाहरी सदस्य वर्मा ने यथास्थिति बरकरार रखे जाने का कड़ा विरोध किया और उन्होंने तर्क दिया कि कोविड का संकट अगले 3 से 5 साल तक स्थिर रह सकता है, जबकि मौद्रिक नीति बहुत ज्यादा समावेशी रखना बिल्कुल अलग है, पहले यह उम्मीद की गई थी कि संकट तुलनात्मक रूप से कम समय के लिए रहेगा। उन्होंने तर्क दिया कि राजकोषीय नीति की तुलना में मौद्रिक नीति उन क्षेत्रों को लक्षित राहत देने में कम प्रभावी होती है, अर्थव्यवस्था में जिन क्षेत्रों पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
बाहरी सदस्य महंगाई दर को लेकर चिंतित थे, जो लक्षित सीमा के ऊपरी स्तर को पार कर चुकी थी। उन्होंने कहा, 'इस बात पर ध्यान देना अहम है कि एमपीसी का महंगाई का लक्ष्य 4 प्रतिशत है, न कि 6 प्रतिशत। यहां तक कि 5 प्रतिशत भी नहीं है। सीमा इस हिसाब से तैयार की गई थी कि अनुमान की त्रुटियों को समाविष्ट किया जा सके। अगर 5 प्रतिशत को लक्ष्य माना जाए तो इससे महंगाई का जोखिम उल्लेखनीय रूप से बढ़ता है।' उन्होंने कहा कि ऐसे में मौजूदा रिवर्स रीपो दर उचित नहीं रह गया है।
रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेश और मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख मृदुल के सागर ने रिजर्व बैंक के रुख का बचाव किया। सागर ने कहा, 'वृद्धि को सतत आधार पर बहाल रखने के लिए नीति पर ध्यान जारी रखना जरूरी है और इसकी वजह से महंगाई के जोखिम की उपेक्षा की जा सकती है, जो कर्ज की मांग सुधरने पर मसला हो सकता है। वृद्धि में सतत रिकवरी को जोखिम में डाले बगैर इस कठिन काम को पूरा करने की जरूरत है।' सागर ने कहा, 'अस्थायी संकट के उपाय के तौर पर नकदी की व्यवस्था अहम है, जिसे समय आने पर खींचा जा सकता है। धीरे धीरे समायोजन संभव है, और समावेशी रुख रहने से व्यवधान नहीं होगा। ऐसे में मैं इस संकल्प के पक्ष में मतदान करता हूं।'
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र ने साफ किया कि इस समय उच्च प्राथमिकता वृद्धि को बहाल करने की है। उन्होंने कहा, 'इस नीति की वजह से महंगाई ऊपरी सीमा पर पहुंच गई है, लेकिन यह टाले जाने की सीमा के भीतर है।' रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि महंगाई में हाल में आई तेजी आपूर्ति की स्थिति खराब होने की वजह से है। बाहरी सदस्य अशिमा गोयल ने कहा, 'वृद्धि की रिकवरी और महंगाई के बीच तालमेल होना चाहिए। क्योंकि रुख सिर्फ रीपो दर की कार्रवाई से प्रभावित होता है, ऐसे में समावेशी रुख में भी अन्य मानकीकरण शुरू हो सकता है।'
बाहरी सदस्य शशांक भिडे ने कहा, 'आर्थिक गतिविधियां सामान्य होने का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर नीतिगत कदम की जरूरत है।'
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