महंगाई की मार से आम आदमी बेहाल है तो कारोबारियों का भी दम फूल रहा है। ईंधन महंगा होने से तमाम उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ी है तो महंगाई के कारण बिक्री लुढ़क गई है। मुंबई से महज 50 किलोमीटर दूर लूमनगरी यानी भिवंडी के कारोबार पर कोरोना महामारी, महंगाई, यार्न-धागे की सट्टेबाजी और पैसों की तंगी की चौतरफा मार पड़ी है। अस्तित्व बचाने के लिए कारोबारी घाटे पर भी काम करने को मजबूर हैं।
महंगाई आम आदमी की कमर ही नहीं तोड़ रही है, उद्योग-धंधों को भी चौपट कर रही है। कपड़ा कारोबारियों की संस्था भारत मर्चेंट चैंबर के ट्रस्टी राजीव सिंगल कहते हैं कि पेट्रो पदार्थों का दाम बढऩे से सब तरह के खर्च बढ़ गए। यार्न का दाम बढऩे से कपड़ा करीब 20 फीसदी तक महंगा हो गया है, जिससे बिक्री 25 फीसदी नीचे आ गई। लागत का सारा बोझ आखिर में ग्राह के ऊपर ही जाता है। ऐसे में या तो वह घर खर्च में कटौती करता है या कारोबारी पर कम बिक्री की मार पड़ती है।
भिवंडी ऑटो पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन के विजय नोगजा का कहना है कि कोरोना महामारी ने भिवंडी ही नहीं सभी उद्योग केंद्रों की कमर तोड़ दी है। पहली लहर के बाद काम कुछ पटरी पर आया तो दूसरी लहर आ गई। अब भी कई तरह के प्रतिबंधों ने उद्योगों को बांध रखा है और तीसरी लहर का खटका भी सिर पर मंडरा रहा है। कारोबारी, व्यापारी, कामगार और मजदूरों में डर है कि सरकार किसी भी वक्त लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लागू कर सकती है। ऐसे में वे पूरे मन से काम नहीं कर पा रहे हैं, जिसका असर कारोबार पर साफ दिख रहा है। भिवंडी में 50 फीसदी पावरलूम चालू हैं मगर वे भी 50-60 फीसदी क्षमता पर ही काम कर रहे हैं, जिससे घाटा बढ़ता जा रहा है।
महामारी में आमदनी कम हुई तो महंगाई ने सबको डस लिया। कबीरा फैब्रिक्स के प्रंबध निदेशक विनोद गुप्ता ने कहा, 'आम आदमी हो या कारोबारी, सभी की आय घटी है और खर्च बढ़े हैं। कच्चा माल महंगा होने से उत्पाद भी महंगे हो गए हैं और कारोबार चलाने के लिए रकम का इंतजाम बड़ी समस्या है। बाजार में फंसा पैसा निकल नहीं पा रहा है और कारोबारी नया कर्ज लेने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे हैं। कारोबार बचाए रखने के लिए कारखाने चलाते रहना जरूरी है क्योंकि कारखाने बंद हुए तो कारीगर और मजदूर चले जाएंगे। इकाई एक बार बंद हुई तो उसे फिर चालू करना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए कारोबारी घाटा झेलकर भी कारोबार करने के लिए मजबूर हैं।'
महंगाई तो चहुंओर बढ़ रही है मगर यार्न के दाम में बढ़ोतरी ने लूम मालिकों और कारोबारियों को बहुत परेशान किया है। पिछले एक साल में यार्न 40 से 60 फीसदी तक महंगा हो गया है। कारोबारियों का कहना है कि सट्टेबाजी की वजह से कारोबारी इसकी कीमतें जानबूझकर चढ़ाते और गिराते हैं। मोदी फैब्रिक्स के मालिक परमेश्वर मोदी कहते हैं कि महंगाई से कहीं ज्यादा परेशान यार्न की कीमतों में आ रही घटबढ़ ने किया है। इसके भाव दिन में तीन-चार बार बदल जाते हैं कारोबारी तय ही नहीं कर पाते हैं कि व्यापारियों को कौन सा भाव दें। इसका सबसे बुरा असर कम पूंजी वाले कारोबारियों पर पड़ रहा है और वे साल-दर-साल घाटे में जा रहे हैं। मोदी कहते हैं कि जब तक यार्न के भाव नियमन के दायरे में नहीं आते तब तक कारोबारियों का भला नहीं हो सकता।
भिवंडी को एशिया का सबसे बड़ा कपड़ा उत्पादन केंद्र कहा जाता है। यहां रोजाना करीब 5 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार होता था और महाराष्टï्र समेत सभी राज्यों में जाता था। फिलहाल करीब 40 फीसदी क्षमता से ही उत्पादन हो रहा है। यहां करीब 40 लाख लूम चलते हैं, जिनमें 10-12 लाख पावरलू और 8-10 लाख चीनी रेपियर लूम हैं। 20-25 लाख पुरानी शैली के इंग्लिश लूम भी चलते हैं। इन लूमों में 10 लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं। लॉकडाउन के बीच आवाजाही के कारण बड़ी तादाद में मजदूर अपने घर लौट गए। इसलिए अभी करीब 50 फीसदी लूम ही चल रहे हैं। अब मजदूरों की कमी नहीं है मगर महंगाई के कारण वे घर भी मुश्किल से चला पा रहे हैं क्योंकि लूम कम चलने के कारण उन्हें मजदूरी भी कम मिल रही है।
भिवंडी में लूम चलाने वाले लूम मालिकों का कहना है यह कारोबार शृंखला की तरह चलता है। सरकार ने लॉकडाउन खोलने से पहले ही इकाई चालू करने की इजाजत दे दी थी मगर पैसों की कमी और बंदिशों के कारण कारोबार रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। मुंबई के ज्यादातर बड़े कपड़ा बाजार अब भी पूरी तरह चालू नहीं हैं, जिससे बकाया अटका हुआ है। पूरी कारोबारी शृंखला में करीब 5,000 करोड़ रुपये का भुगतान अटका है, जो प्रतिबंध पूरी तरह हटने के बाद ही निकल पाएगा।
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