कोरोना के कारण चंदेरी साड़ी के कारोबार में 60 से 70 फीसदी कमी आई है। बिक्री में सुस्ती, बढ़ती लागत ने उद्योग की मुश्किलें और बढ़ा दीं | रामवीर सिंह गुर्जर / August 20, 2021 | | | | |
कभी जो चंदेरी साडिय़ां राजपरिवार की महिलाओं की शान बढ़ाती थीं, आज उनका ही कारोबार कोरोना महामारी की जकड़ में अपनी चमक खो रहा है। महामारी के कारण लगातार बंदी और खरीदारों की बेरुखी के कारण चंदेरी साड़ी के कारोबार में 60 से 70 फीसदी कमी आई है। सुस्त बिक्री के बीच बढ़ती लागत ने उद्योग की मुश्किलें ओर भी बढ़ा दी हैं। निर्माता लागत के मुताबिक दाम नहीं बढ़ा पा रहे हैं और पहले का अटका भुगतान भी नहीं मिल रहा है। दाम बढ़ाने या बकाया देने की बात कहने पर कारोबारी माल वापस ले जाने को कह देते हैं।
निर्माता और कारोबारियों के साथ ही इन साडिय़ों को हाथ से बुनने वाले बुनकरों के सामने भी आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। ज्यादातर बुनकरों को इन दिनों घर खर्च चलाने लायक मजदूरी ही मिल पा रही है। हालांकि उद्यमी माल बिकने और बकाया भुगतान मिलने पर बची मजदूरी देने का भरोसा दिला रहे हैं मगर हालात कब सुधरेंगे यह नहीं पता। बिक्री सुस्त रहने के कारण कारोबारियों के पास इतना स्टॉक हो गया है कि इसी माल से छह महीने बिक्री हो सकती है। इसलिए कोई नया माल नहीं खरीद रहा।
चंदेरी में 5,000—5,500 हैंडलूम हैं, जिनमें करीब 20 फीसदी फीसदी काम कम होने के कारण इस समय चल ही नहीं रहे हैं। चंदेरी साड़ी का कारोबार 20-25 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार देता है। छोटे-बड़े मिलाकर ढाई-तीन सौ साड़ी निर्माता और विक्रेता हैं। चंदेरी में कुछ सौ रुपये से लेकर लाख रुपये तक कीमत की साडिय़ां बनती हैं। मगर 2,000 रुपये से 10,000 रुपये कीमत की साडिय़ां सबसे ज्यादा बिकती हैं। कुल बिक्री में इनकी हिस्सेदारी 80 फीसदी है। चंदेरी साड़ी को असली रेशम के साथ हाथ से बुना जाता है और यहां के बुनकर डिजाइन तथा रंगों के संयोजन में अपनी पूरी कलाकारी दिखाते हैं। इसीलिए ये साड़ी अलग ही नजर आती हैं। साड़ी निर्माता बुनकरों को कच्चा माल देकर साड़ी बुनवाते हैं।
चंदेरी साड़ी के कारोबारी आलोक कठरिया कहते हैं कि चंदेरी साड़ी शौक की चीज है और इसके अधिकतर खरीदार बड़े शहरों से ताल्लुक रखते हैं। इसीलिए ये साडिय़ां बड़े स्टोरों में ज्यादा बिकती हैं। कोरोना के कारण संपन्न वर्ग और बड़े शहरों से ताल्लुक रखने वाले बाजारों में कम निकले। इसीलिए चंदेरी साड़ी के कारोबार पर तगड़ी मार पड़ गई। कठरिया ने बताया कि महामारी आने से पहले साल में 150 से 200 करोड़ रुपये की चंदेरी साड़ी, सूट, कुर्ते आदि बिक ही जाते थे। कोरोना के कारण पिछले एक साल में 40 से 60 करोड़ रुपये का कारोबार ही हो सका है। कारोबारियों के पास अभी जो स्टॉक मौजूद है, उसे बेचने में ही छह महीने लग जाएंगे।
चंदेरी कारोबारी अरुण सोमानी बताते हैं कि माल खरीदकर ले जाने वाले कारोबारी चंदेरी आकर ही ऑर्डर देना पसंद करते हैं। मगर कोरोना के कारण वे नहीं आ रहे हैं। शादियों के सीजन में भी चंदेरी खूब बिकती है मगर महामारी के कारण शादियां भी सीमित हो गई हैं और बिक्री घटकर 25-30 फीसदी ही रह गई। लिहाजा उत्पादन भी 50 फीसदी से ज्यादा घटाना पड़ा है। कोरोना से पहले भेजे गए माल का भुगतान भी अटक गया है। खरीदार से बकाया मांगो तो वह माल वापस ले जाने को कहता है।
सुस्त बिक्री से परेशान कारोबारियों पर महंगाई की मार भी पड़ गई है, जिससे लागत बहुत बढ़ गई है। चंदेरी साड़ी के उद्यमी बांके बिहारी लाल चतुर्वेदी बताते हैं कि चंंदेरी साड़ी बनाने में 60 से 70 फीसदी लागत मजदूरी और 30 से 40 फीसदी लागत कच्चे माल की होती है। कच्चे माल में रेशम का दाम 3,000-3,500 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 4,500-5,500 रुपये प्रति किलो हो गया है। जरी का बंडल 325 से 350 रुपये का आता था, जो 450 से 550 रुपये में आ रहा है। सूत भी महंगा हो गया है। कच्चा माल महंगा होने के कारण पहले 5,000 रुपये में बनने वाली साड़ी अब 5,500 से 5,800 रुपये में तैयार हो रही है। खरीदार 100-200 रुपये ज्यादा दाम देने से भी कतराते हैं। इसलिए अब कारोबार में 10-12 फीसदी मार्जिन ही रह गया है। बिक्री इतनी कम है कि यह मार्जिन मिलना भी दूभर हो गया है।
कारोबार पर मार का असर बुनकरों की रोजी-रोटी पर भी पड़ रहा है। चंदेरी साड़ी बुनने वाले नासिर अंसारी बताते हैं कि कारोबारियों का माल कम बिकने से बुनकरों को भी साड़ी बनाने के कम ऑर्डर मिल रहे हैं। इस समय निर्माता साड़ी बनवाने की मजदूरी के तौर पर घर चलाने लायक पैसे ही दे रहे हैं। ज्यादातर बुनकरों को 1,000 रुपये हफ्ते के हिसाब से ही मजदूरी मिल पा रही है। राहत की बात यह है कि उद्यमी हालात सुधरने पर बाकी मजदूरी देने का वादा कर रहे हैं। अंसारी बताते हैं कि पहले एक बुनकर को हफ्ते में 3-4 साड़ी बनाने को मिल जाती थीं मगर अब एक साड़ी भी मुश्किल से मिल रही है। पहले ठीकठाक काम मिलने पर महीने में 15 से 20 हजार रुपये आमदनी हो जाती थी मगर अब 4-5 हजार रुपये भी मुश्किल से मिल रहे हैं।
साड़ी निर्माता भी बुनकरों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। सोमानी कहते हैं कि चंदेरी साड़ी में कमाल डिजाइन का ही होता है, इसलिए बिक्री नहीं होने पर ज्यादा साड़ी बनवाकर नहीं रखी जा सकतीं क्योंकि फैशन बदलता रहता है। बुनकरों की आजीविका का भी ध्यान रखना है, इसलिए घर चलाने लायक काम उन्हें दिया जा रहा है। कारोबारी अपनी क्षमता के हिसाब से भुगतान भी कर रहे हैं।
शादियों से मिलेगा सहारा
कारोबारियों को उम्मीद है कि शादियों के सीजन में चंदेरी साड़ी की बिक्री सुधर जाएगी। सोमानी कहते हैं कि महीने-डेढ़ महीने से कोरोना के मामले काबू में आने पर बाजार खुल रहा है और कारोबार भी कुछ सुधर रहा है। तीसरी लहर नहीं आई तो सर्दियों में शादियों का सीजन चंदेरी साड़ी के कारोबार को उबार सकता है। चतुर्वेदी ने भी बताया कि अब कारोबारी चंदेरी आने लगे हैं और हाल ही में 5-7 बड़े कारोबारियों ने यहां आकर अच्छे ऑर्डर दिए हैं।
|