बीते एक महीने के दौरान कच्चे तेल की कीमतें कुछ हद तक अस्थिर रही हैं। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 69 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 75 डॉलर तक पहुंचीं और फिर घटकर 69 डॉलर पर आ गईं। उपभोक्ताओं के मन में ईंधन की खुदरा कीमतों के लगातार ऊंचाई पर बने रहने को लेकर चिंता है और भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि पेट्रोलियम उत्पादों पर बढ़ा हुआ कर मुद्रास्फीति की अहम वजह है। बहरहाल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में कमी से इनकार किया है, यानी इनकी कीमतों में कोई कमी नहीं होने वाली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा जारी तेल बॉन्ड का हवाला देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले बकाये के भुगतान की सीमा है। स्पष्ट है कि ईंधन की खुदरा कीमतों में पारदर्शिता की आवश्यकता है। इन पर अब सरकार का नियंत्रण नहीं है और माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का प्रभाव इन पर भी नजर आना चाहिए। लेकिन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद खुदरा कीमतें एक महीने से स्थिर हैं।
संप्रग सरकार ने ईंधन सब्सिडी की भरपाई के लिए जो तेल बॉन्ड जारी किए थे वह अवांछित कदम था और उससे बचा जाना चाहिए था। परंतु केंद्रीय बजट पर उसका प्रभाव अब सीमित है और उसमें 10,000 करोड़ रुपये की राशि ब्याज में जाती है। चालू वर्ष में केंद्र सरकार का कुल ब्याज भुगतान 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा जबकि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है। ऐसे में तेल बॉन्ड की देनदारी राजकोषीय नीति के निर्णयों पर बहुत प्रभावी नहीं है। सरकार अन्य कारणों से कर कटौती से बचना चाहती है। गत वर्ष कोविड के कारण मची उथलपुथल के कारण सरकार पर वित्तीय बोझ बहुत अधिक बढ़ गया। सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए ईंधन पर कर बढ़ाकर उचित ही किया। इसके परिणामस्वरूप पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क संग्रह में गत वित्त वर्ष में 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
कर दरों को बढ़ाए रखने की मजबूत वजह है क्योंकि सरकार की वित्तीय स्थिति निकट भविष्य में भी तनावपूर्ण बनी रहेगी। ईंधन पर उच्च शुल्क कार्बन टैक्स के रूप में भी काम करता है और वह हरित तकनीक को बढ़ावा देने वाला साबित होगा। इसलिए सरकार को स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए। उसे उधारी सीमित करने और व्यय की भरपाई के लिए संसाधन चाहिए। लेकिन दिक्कत यह है कि ईंधन से हासिल होने वाले राजस्व का बड़ा हिस्सा उपकर के रूप में आता है। केंद्र सरकार इसे राज्यों के साथ साझा करने को बाध्य नहीं है। केंद्र सरकार को कर पारदर्शी तरीके से लगाना था और उसे राज्यों के साथ साझा करना था। राज्य महामारी से निपटने में अग्रणी हैं और आर्थिक गतिविधियां सीमित होने के कारण उनका राजस्व भी प्रभावित हुआ है।
इसके अलावा व्यापक स्तर पर सरकार को कर संग्रह बढ़ाने और मध्यम अवधि में ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए विविध स्तरों पर काम करना होगा। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में देश का कर संग्रह वर्षों से स्थिर है। वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के बाद अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में भी राजस्व प्रभावित हुआ। सरकारी तेल विपणन कंपनियों को भी कीमतों के साथ पारदर्शी व्यवस्था अपनानी चाहिए। यह स्पष्ट नहीं है कि पेट्रोल और डीजल कीमतें अपरिवर्तित क्यों हैं। यदि कंपनियां अस्थिरता कम होने की प्रतीक्षा कर रही हैं तो कीमतें बढ़ते वक्त उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। संभव है कि तेल कंपनियां अधिशेष जुटा रही हों जिसे सरकार को लाभांश के रूप में हस्तांतरित किया जा सके। ईंधन कीमतों के निर्धारण में निष्पक्षता, पारदर्शिता, स्पष्टता की कमी सरकार की विश्वसनीयता पर असर डाल रही है।
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