जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) जलवायु वैज्ञानिकों का समूह है जो साथ मिलकर समय-समय पर जलवायु परिवर्तन की स्थिति और उसके प्रभाव को लेकर विशेषज्ञों के बीच बनी सहमति का आकलन करते हैं। समूह की छठी आकलन रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है और इसमें पूरे विश्व और खासकर भारत को लेकर बहुत सकारात्मक बातें नहीं कही गईं हैं। पांचवीं रिपोर्ट के बाद सहमति मजबूत हुई है और आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार इस बात के सुस्पष्ट प्रमाण हैं कि तापवृद्धि मानवजनित है और औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्यों की गतिविधियों से हुआ कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढऩे के बाद से तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। रिपोर्ट में दक्षिण एशिया और भारत के लिए खास चेतावनी हैं। हिंद महासागर वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हो रहा है और हिमालय में बर्फ की चादर पतली हो रही है। भारत उन देशों में शामिल है जिनके सामने वैश्विक तापवृद्धि के असर की आशंका सबसे ज्यादा है। उसके तटीय इलाके बढ़ते जलस्तर के कारण खतरे में हैं और चक्रवात तथा अन्य अतिरंजित मौसम की घटनाएं भी ज्यादा हो रही हैं। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन तेजी से बढ़ रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष भूस्खलन से कई लोगों की जान जा चुकी है और बादल फटने तथा ग्लेशियर टूटने की घटनाएं तेज हुई हैं। इससे भूस्खलन का जोखिम और बढ़ेगा। ऐसे में जरूरी है कि इन क्षेत्रों की विकास योजना बनाते समय ये तथ्य ध्यान में रखे जाएं। दोनों पहाड़ी राज्यों में राजमार्ग निर्माण की जोखिम भरी परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इनका उभरते जलवायु विज्ञान को देखते हुए नए सिरे से आकलन होना चाहिए। भारत के घनी आबादी वाले मैदानों को देखते हुए गर्मी और आर्द्रता बड़ा खतरा हैं। 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म दिनों की तादाद बढ़ेगी। देश के श्रमिकों में ऐसे लोग अभी भी काफी हैं जो धूप में शारीरिक श्रम करते हैं। उनकी जिंदगी के लिए यह बड़ा खतरा है। भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली मौतों को कम करके बताया जाता है। इसे बदलना होगा तभी जन स्वास्थ्य पर बढ़ती गर्मी के असर की सही तस्वीर सामने आएगी।नीतिगत प्रतिक्रिया भारतीयों के जीवन और आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों की सही तस्वीर सामने लाने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उत्सर्जन कम करने के क्षेत्र में कड़े कदम जरूरी हैं। उत्सर्जन की बात करें तो नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव को लेकर तकनीकी और वित्तीय पहल जारी हैं। सरकार को कोयला आधारित ताप बिजली परियोजनाओं को सब्सिडी जारी रखने जैसे कदम उठाकर इनकी राह नहीं रोकनी चाहिए। मौजूदा फसल संबंधी और कृषि व्यवहार भी कार्बन उत्सर्जन की बड़ी वजह है। अगले एक दशक में इन्हें भी हल करना होगा। इसके अलावा बड़े पैमाने पर पौधरोपण करना होगा। बढ़ते तापमान के साथ समायोजन की दिशा में भी पहल करनी होगी और इसके लिए नई सोच की आवश्यकता होगी। जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से उपयुक्त कृषि को लेकर पहले ही देश भर में काम हो रहा है। परंतु जैसी कि आईपीसीसी ने चेतावनी दी है लगातार बदलते मौसम के कारण किसानों को उचित सलाह और तरीके सिखाने होंगे। कृषि प्रणाली में नई जान फूंकनी होगी। शहरी नियोजन में भी बदलाव लाना होगा। देश के शहरों में रहने वाले लोगों को जोर देकर समझाना होगा कि धूप में बेवजह न निकलें। मेट्रो और बिजली से चलने वाली बसों के स्टॉप बढ़ाने होंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सफर कर सकें। भविष्य की नीतियों और नियोजन में जलवायु परिवर्तन को मूल में रखना होगा।
