अन्य आय में तेजी और प्रावधान में गिरावट की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का शुद्घ लाभ वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 139.6 प्रतिशत बढ़ गया। अन्य सालाना आधार पर 34.8 प्रतिशत बढ़ी, और प्रावधान में 10.7 प्रतिशत की गिरावट आई। हालांकि शुद्घ ब्याज आय (एनआईआई) में वृद्घि की रफ्तार 5.4 प्रतिशत के साथ धीमी रही, और इस पर कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रभाव पड़ा।सकल एनपीए में गिरावट की वजह से सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता सालाना और तिमाही आधार पर मजबूत बनी रही। प्रावधान के बाद फंसे कर्ज यानी शुद्घ एनपीए में सालाना आधार पर 5.1 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन तिमाही आधार पर इनमें 1.6 प्रतिशत तक की तेजी दर्ज की गई। इक्रा के उपाध्यक्ष एवं प्रमुख (वित्तीय क्षेत्र की रेटिंग) अनिल गुप्ता ने कहा कि पहली तिमाही में सरकार स्वामित्व वाले बैंकों का प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप रहा और वे वित्त वर्ष 2022 में लगातार मुनाफे में रहेंगे। परिसंपत्ति गुणवत्ता के आंकड़े अच्छे दिख रहे हैं।हालांकि उन्होंने कहा कि आपको यह ध्यान रखना होगा कि तिमाही में पुनर्गठन पीएसबी (रिटेल और एसएमई) के मामले में काफी अधिक था। उन्होंने कहा कि पुनर्गठित बहीखाते पर गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जयरत होगी, क्योंििक यह पहली बार है कि रिटेल ऋणों को इतने ज्यादा व्यापक पैमाने पर पुनर्गठित किया गया है। प्रावधान खर्च दो कारकों की वजह से नियंत्रित बना रहा। पारंपरिक दबाव वाले कॉरपोरेट ऋणों के लिए पूंजी निर्धारित करने की जरूरत समाप्त हो रही है। बैंकरों का कहना है कि पुनर्गठित खातों के लिए अब प्रावधान जरूरत कम रह गई है।भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा कि जहां तक एनआईआई का सवाल है, बैंकों की आय के आधार से कमजोर वृद्घि का पता चलता है, क्योंकि अग्रिमों पर प्रतिफल (वाईओए) घटा है। उसके घरेलू बहीखाते के बैंक का वाईओए वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही के 8.35 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 7.42 प्रतिशत रह गया। आर्थिक मंदी के बीच कमजोर ऋण मांग के अलावा, बेहतर रेटिंग वाले कॉरपोरेट घरानों के पास सस्ती दरों पर उधारी का विकल्प था, क्योंकि तब व्यवस्था में पर्याप्त नकदी थी। बैंकरों का कहना है कि इससे बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गई, क्योंकि उन्होंने कॉरपोरेट ऋण व्यवसाय का बड़ा हिस्सा हासिल करने पर ध्यान दिया जिससे प्रतिफल में गिरावट को बढ़ावा मिला। ऋण वृद्घि पिछले साल महामारी फैलने के बाद से कमजोर बनी रही, क्योंकि जमाओं में ऊंची वृद्घि दर्ज की गई। आरबीआई के आंकड़े के अनुसार, जहां भारत में वाणिज्यिक बैंकों के ऋणों में जुलाई 2021 के मध्य तक 6.5 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ, वहीं जमाओं मेंं 10.7 प्रतिशत तक की वृद्घि हुई। लॉकडाउन में नरमी आने से, ऋणदाता अब ऋण उठाव (खासकर दूसरी छमाही से) में सुधार की उम्मीद कर रहे हैं।
