महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने एक बार कहा था, 'दुनिया में सबसे कठिन काम है आयकर समझ पाना'। यह बात अलग है कि तकनीक की मदद से अब आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करना आसान हो गया है। इस साल रिटर्न जमा करने की नई तारीख 30 सितंबर है। आईटीआर वित्त वर्ष 2020-21 और समीक्षा वर्ष 2021-22 के होंगे। करदाताओं को यह बात अपने दिमाग में रखनी चाहिए कि तकनीक से कई जरूरी काम आसान जरूर हो गए हैं मगर अब भी लेनदेन की पूरी जानकारी नहीं देने की गलती करदाताओं से अक्सर हो जाती है। होस्टबुक्स लिमिटेड के संस्थापक एवं चेयरमैन कपिल राणा कहते हैं, 'आईटीआर भरते वक्त कुछ खास खुलासे करने पड़ते हैं मगर कई लोग इस बात से अनजान होते हैं और इनकी जानकारी नहीं देने के कारण झमेला मोल ले लेते हैं। आईटीआर दाखिल करते वक्त करदताओं को इन खुलासों की जानकारी रखनी चाहिए ताकि आयकर विभाग उन्हें किसी तरह का नोटिस जारी नहीं करे।' करदाताओं को आईटीआर भरते वक्त कुछ खास बातों की जानकारी रखनी चाहिए।
बैंक खातों की जानकारी
करदाताओं को भारत में अपने सभी बैंक खातों का जिक्र करना होता है। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, 'संयुक्त खाते भी इनमें आते हैं। बैंक के नाम, खाता संख्या और उनके आईएफएससी कोड का जिक्र करें। एक से अधिक बैंक खाते रहने की स्थिति में रिफंड पाने के लिए किसी एक बैंक खाते का जिक्र करना चाहिए। पिछले तीन वर्षों से निष्क्रिय रहे बैंक खाते का जिक्र करना जरूरी नहीं है।' सुराणा कहते हैं, 'हालांकि आयकर अधिनियम में इन बातों की जानकारी नहीं देने पर किसी तरह के दंड का प्रावधान नहीं है मगर आयकर विभाग रिटर्न को अधूरा मान सकता है और यह मानकर नोटिस भेज सकता है कि करदाता कर देनदारी से बचना चाह रहा है।'
गैर-सूचीबद्ध इक्विटी शेयरों का जिक्र
करदाता को गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के इक्विटी शेयरों में अपने निवेश का भी जिक्र करना चाहिए। इनमें कंपनी के नाम एवं उनके स्थायी लेखा संख्या (पैन), वित्त वर्ष के दौरान खरीदे एवं बेचे गए शेयरों की संख्या का जिक्र करना होगा। एनए शाह एसोसिएट्स के पार्टनर गोपाल वोहरा कहते हैं, 'गैर-सूचीबद्ध विदेशी कंपनियों के शेयरों में निवेश का भी खुलासा करना होगा चाहे इनका जिक्र अलग से विदेशी परिसंपत्ति अनुसूची में ही क्यों नहीं करना पड़े।' करदाता को कंपनी का नाम, कंपनी की श्रेणी, पैन, शुरुआती रकम (ओपनिंग बैलेंस), खरीदे गए शेयर, स्थानांतरित शेयर और अंतिम रकम (क्लोजिंग बैलेंस) आदि की जानकारी देनी होगी। सुराणा कहते हैं, 'अगर कोई करदाता गैर-सूचीबद्ध विदेशी कंपनी में शेयर रखता है तो विदेशी परिसंपत्तियों की अनुसूची (शेड्यूल एफए) में इसकी जानकारी देने के बावजूद उसे आयकर रिटर्न में इसका जिक्र करना होगा। यदि इसका उल्लेख नहीं किया गया तो आयकर विभाग रिटर्न को त्रुटिपूर्ण मान सकता है और संशोधित रिटर्न दाखिल करने के लिए कह सकता है।' शेड्यूल एफए में विदेशी परिसंपत्तियों का जिक्र होता है। पिछले वर्ष किसी समय गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के इक्विटी शेयरों में निवेश की जानकारी करदाता को आईटीआर2, आईटीआर3, आईटीआर5 और आईटीआर6 में देनी पड़ती है।
भारतीय या विदेशी कंपनी में निदेशक
आईटीआर फॉर्म में करदाता से यह भी पूछा जाता है कि वह किसी कंपनी में निदेशक तो नहीं है। निदेशक होने पर करदाता से कंपनी का नाम, उसका पैन एवं कंपनी के प्रकार और निदेशक पहचान क्रमांक (डीआईएन) के बारे में पूछा जाता है और यह भी बताने के लिए कहा जाता है कि उस कंपनी का शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध है या नहीं। टैक्समैन में उप महाप्रबंधक नवीन वाधवा कहते हैं, 'अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी में निदेशक है तो वह फॉर्म आईटीआर-1 या आईटीआर-4 में रिटर्न दाखिल नहीं कर सकता है। उसे आईटीआर-2 या आईटीआर-3 फॉर्म में आईटीआर दाखिल करना होगा। गलत आईटीआर फॉर्म में रिटर्न भरने पर इसे त्रुटिपूर्ण माना जाएगा और त्रुटि दूर नहीं होने पर आईटीआर अवैध घोषित हो सकता है। यह माना जाएगा कि करदाता रिटर्न दाखिल करने में असफल रहा है।'
अनुसूचित परिसंपत्तियां एवं देनदारियां
जमीन, इमारत एवं चल संपत्ति, वित्तीय परिसंपत्तियां (बैंक जमा, शेयर एवं प्रतिभूति, नकदी आदि) और देनदारियों का जिक्र भी करना होगा। इंडसलॉ में पार्टनर ऋतेश कुमार कहते हैं, 'सभी करदाताओं को अपनी परिसंपत्ति एवं देनदारियों का खुलासा करने की जरूरत नहीं है। ऐसे खुलासे केवल उन्हीं करदाताओं को करने होंगे जिनकी शुद्ध कर योग्य आय (कटौती के बाद) किसी भी वित्त वर्ष में 50 लाख रुपये से अधिक होती है।' इसका मतलब हुआ कि फॉर्म आईटीआर-1 या फॉर्म आईटीआर-4 के माध्यम से आईटीआर भरने वाले करदाता पर यह बात लागू नहीं होती है। ऐसी परिसंपत्तियों की जानकारी देने की जरूरत परिसंपत्ति एवं देनदारी अनुसूची (एएल शेड्यूल) में उन करदाताओं (व्यक्तिगत/हिंदु अविभाजित परिवार) को होती है जो फॉर्म आईटीआर-2 या आईटीआर-3 में रिटर्न दाखिल करते हें। कुमार कहते हैं, 'वरिष्ठï नागरिकों और धनाढ्य निवेशकों या प्रवासी भारतीय करदाताओं के लिए करों का अनुपालन खास तौर पर परेशानी भरा होता है, जो पैसिव इनकम अर्जित करते हैं।'
एएल अनुसूची के तहत दो तरह की परिसंपत्तियों का खुलासा करना जरूरी होता है- इनमें एक चल और दूसरी अचल परिसंपत्तियां हैं। राणा कहते हैं, 'अगर करदाता किसी कंपनी में साझेदार या एओपी/बीओआई' का हिस्सा होता है तो ऐसी कंपनी या एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स (एओपी) या व्यक्तियों के समूह से संबंधित आवश्यक तथ्यों की जानकारी उस इकाई के पैन के साथ देनी होगी।' चल संपत्तियों में आभूषण, सराफा, नौका एवं विमान तथा वित्तीय परिसंपत्तियां होती हैं। अचल परिसंपत्तियों में जमीन, इमारत आदि होती हैं। वित्तीय परिसंपत्तियों में बैंक खाते (सभी तरह की जमा राशि), शेयर एवं प्रतिभूति, बीमा पॉलिसियां, ऋण एवं उधारी और नकदी शामिल होते हैं।
विदेशी परिसंपत्तियों की सूची
सामान्यतया निवासी करदाताओं के लिए भारत के बाहर अपनी परिसंपत्तियों (मालिक और लाभार्थी दोनों रूप में) की जानकारी तय खुलासा नियमों के तहत देनी होती है। अगर संबंधित गणना अवधि में एक दिन भी परिसंपत्ति पर मालिकाना हक साबित होता है तो इसका जिक्र करना जरूरी है। लिहाजा अगर किसी करदाता के अधीन संबंधित गणना वर्ष में परिसंपत्तियां रही हैं तो इन परिसंपत्तियों का जिक्र आईटीआर फॉर्म में करना अनिवार्य है। अगर विदेशी परिसंपत्ति या आय का खुलासा नहीं किया गया है तो इन पर 30 प्रतिशत दर से कर लगेगा और जुर्माना भी लगेगा। जुर्माने की रकम छिपाकर रखी गई आय या परिसंपत्तियों के मूल्य पर लगने वाले कर के तीन गुना के बराबर होगी। छिपाई गई आय पर कर एवं जुर्माने के अलावा आईटीआर दाखिल करने में असफल रहने या आईटीआर में ऐसी परिसंपत्ति या आय नहीं बताने पर 10 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया जा सकता है। गोपाल कहते हैं, 'कर बचाने के लिए जानबूझ कर कर रिटर्न नहीं भरने या विदेशी परिसंपत्ति या विदेश से प्राप्त होने वाली आय का खुलासा आईटीआर में नहीं करने पर करदाता के विरुद्ध मुकदमा दायर हो सकता है।'
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