बीते कुछ सप्ताह से देश के बड़े इलाके में कोविड-19 के मामलों में लगातार गिरावट देखने को मिली है। यही कारण है कि राज्य सरकारों ने आवागमन पर लगे प्रतिबंधों को शिथिल किया है और आर्थिक गतिविधियां भी सामान्य हुई हैं। राज्य सरकारों द्वारा संक्रमण के स्तर को देखते हुए प्रतिबंध लगाने और हटाने के कारण आर्थिक गतिविधियों को उतना नुकसान नहीं हुआ है जितना 2020 में लगे देशव्यापी लॉकडाउन के कारण हुआ था। दूसरी लहर के दौरान आर्थिक गतिविधियों को अनुमान से कम नुकसान पहुंचने के कारण सरकार की वित्तीय स्थिति को मदद मिली और केंद्र सरकार भी गत वर्ष की अपेक्षा ज्यादा सहज स्थिति में है। पिछले साल कड़े लॉकडाउन के कारण राजस्व संग्रह बुरी तरह ध्वस्त हो गया था। महालेखा नियंत्रक द्वारा गत सप्ताह प्रस्तुत आंकड़ों ने दर्शाया कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान के 18.2 फीसदी के स्तर पर रहा जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 83.2 फीसदी के स्तर पर था। सरकार राजकोषीय घाटे को इसलिए नियंत्रित कर पाई क्योंकि राजस्व संग्रह बेहतर रहा। 4.12 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह बजट अनुमान का 26.7 फीसदी था। सरकार को रिजर्व बैंक से अनुमान से अधिक अधिशेष हस्तांतरण से भी फायदा हुआ। परिणामस्वरूप सरकार ने पूरे वर्ष के गैर कर राजस्व का 50 फीसदी पहले तीन महीनों में ही हासिल कर लिया। आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्व संग्रह बजट के लक्ष्य से अधिक हो सकता है। हालांकि विनिवेश के मोर्चे पर खराब प्रदर्शन जारी है। शेयर बाजार के बढिय़ा प्रदर्शन के बावजूद पहली तिमाही में इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। कुल मिलाकर देखें तो राजकोषीय स्थिति से यही संकेत निकलता है कि सरकार अधिक सहजता से व्यय करने और व्यय लक्ष्यों को हासिल करने की स्थिति में है। इससे सुधार की प्रक्रिया को मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए पहली तिमाही में पूंजीगत व्यय में गत वर्ष की तुलना में 26 फीसदी का इजाफा हुआ, हालांकि फिर भी वह बजट अनुमान का 20 फीसदी ही था। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले महीनों में पूंजीगत व्यय में सुधार होगा। पहली तिमाही के दौरान कुल व्यय बजट अनुमान के 24 फीसदी के बराबर था। हालांकि वर्ष के आरंभ में तय लक्ष्यों के मुताबिक तो सरकार की राजकोषीय स्थिति फिलहाल अच्छी है लेकिन मध्यम अवधि में परिदृश्य चुनौतीपूर्ण नजर आता है। सरकार चालू वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 फीसदी के बराबर रखने का लक्ष्य लेकर चल रही है और 2025-26 तक इसे 4.5 फीसदी के स्तर से नीचे लाने का लक्ष्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक घाटा मध्यम अवधि में बढ़ा रहेगा। यह बात मध्यम अवधि में सरकार की वृद्धि का समर्थन करने की क्षमता पर असर डालेगी। सरकारी उधारी का निरंतर ऊंचा स्तर ब्याज दरों को प्रभावित करेगा और निजी क्षेत्र की गतिविधियों को भी। टीकाकरण की धीमी गति का भी यही अर्थ है कि हालात पूरी तरह सुधरने में वक्त लगेगा। उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत समेत उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का वृद्धि अनुमान घटा दिया है। सुधार में देरी से जोखिम बढ़ेगा और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण और कठिन होगा। ऐसे में सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह मध्यम अवधि के लिए एक स्पष्ट खाका तैयार करे। उसे विभिन्न हालात के लिए अंकेक्षण करके रखना होगा और राजस्व बढ़ाने पर काम करना होगा। सरकार को वस्तु एवं सेवा कर पर ध्यान देना होगा। हाल के महीनों में संग्रह सुधरा है लेकिन दरों को तार्किक बनाने का काम जारी रखना होगा। दरों को राजस्व प्रतिपूर्ति के अनुरूप किया जा सका तो इस कर की प्रणाली को सहज बनाने में मदद मिलेगी। इस वर्ष भले ही राजस्व की स्थिति मजबूत हुई है लेकिन सरकार को अभी भी राजकोषीय सेहत सुधारने के लिए लंबा सफर तय करना है।
