एक सदी पहले बेल्जियम को 60 करोड़ फ्रैंक से अधिक का नुकसान सहन करना पड़ा था क्योंकि उसने सन 1920 में पहले महामारी प्रभावित ओलिंपिक खेलों की मेजबानी की थी। स्पैनिश फ्लू के हमले के ठीक बाद एंटवर्प में ओलिंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। तब से लेकर अब तक ओलिंपिक खेलों के आयोजन की लागत आसमान छूने लगी है। अमेरिकी अर्थशास्त्री एंड्रयू जिंबालिस्ट ने सन 2015 में आई अपनी पुस्तक 'सर्कस मैक्सिमस: द इकनॉमिक गैंबल बिहाइंड होस्टिंग द ओलिंपिक्स ऐंड द वल्र्ड कप' में यह बताया है कि ऐसे बड़े आयोजनों का आर्थिक प्रभाव कैसा होता है। टेलीविजन प्रसारण के बड़े पैमाने पर राजस्व जुटाने का जरिया बन जाने और ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों में भागीदारी करने वालों तथा प्रतिस्पर्धाओं की बढ़ती तादाद को देखते हुए सन 1970 का दशक बदलाव वाला रहा। इसके बावजूद सन 1972 में मेजबान चुने जाने के बाद डेनेवर ने खेलों के आयोजन से इनकार कर दिया और सन 1976 में आयोजित मॉन्ट्रियल ओलिंपिक खेल 1.5 अरब डॉलर के घाटे वाले साबित हुए। इस घाटे को पूरा करने में 30 वर्ष का समय लगा। यही कारण है कि सन 1979 में अकेले लॉस एंजलिस ने ही सन 1984 के ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों की मेजबानी के लिए दावा पेश किया। सन 1992 में बार्सिलोना को ओलिंपिक खेलों की मेजबानी से एक करोड़ डॉलर का मुनाफा हुआ और वह ओलिंपिक मेजबानी से मुनाफा कमाने वाले आयोजन स्थल के रूप में चर्चित हो गया। हालांकि सन 1996 में अटलांटा और 2008 में पेइचिंग में आयोजित खेलों को काफी मुनाफा हुआ जबकि सन 2012 में लंदन ओलिंपिक खेलों को न तो मुनाफा हुआ और न ही नुकसान। इससे पहले सन 2000 में सिडनी और 2004 में एथेंस ओलिंपिक खेलों के आयोजन से भारी नुकसान हुआ था। सन 2014 में भले ही ब्राजील ने विश्व कप फुटबॉल की मेजबानी की लेकिन 2016 में रियो डी जनेरियो में हुए ओलिंपिक खेलों को दो अरब डॉलर का घाटा सहन करना पड़ा। ओलिंपिक की मेजबानी के तात्कालिक लाभ साफ नजर आते हैं। इंटरविस्टास कंसल्टिंग के अनुमान के मुताबिक 2010 में वैंकूवर में हुए शीतकालीन ओलिंपिक खेलों ने उत्पादन में 10.7 अरब डॉलर का इजाफा किया और 2,44000 रोजगार तैयार किए। बहरहाल जिंबलिस्ट लिखते हैं कि ओलिंपिक या विश्व कप की मेजबानी के आर्थिक विकास का वाहक होने के दावे किए जाते हैं लेकिन स्वतंत्र अध्ययनों में ऐसा जताने वाले बहुत सीमित प्रमाण ही मिलते हैं। वह कहते हैं कि अधिकांश लाभ मात्रात्मक होते हैं और शेष बाद में बहुत लंबी अवधि में हासिल होते हैं। परंतु अक्सर इसकी प्रमुख विरासत सफेद हाथी साबित होती है जिन्हें तैयार करने में अरबों और बाद में जिनका रखरखाव करने में करोड़ों का खर्च आता है। इसके अलावा कर्ज का एक पहाड़ हाथ लगता है जिसे 10 से 30 वर्षों में चुकाना होता है। एक वर्ष की देरी, लागत कटौती के उपायों और कोविड-19 से संबंधित प्रतिबंधों के कारण टोक्यो ओलिंपिक से होने वाले आर्थिक लाभ काफी प्रभावित हुए हैं। जनवरी 2016 में बैंक ऑफ जापान ने एक रिपोर्ट में अनुमान जताया था कि टोक्यो के 2020 ओलिंपिक खेलों का प्रमुख लाभ विदेशी पर्यटकों की तादाद बढऩे और विनिर्माण निवेश में इजाफे के रूप में सामने आएगा। ओलिंपिक खेलों से संबद्ध समग्र विनिर्माण निवेश के 2020 तक 10 लाख करोड़ येन होने का अनुमान था। यह भी अनुमान जताया गया था कि जापान की वार्षिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि भी ओलिंपिक खेलों के कारण वर्ष 2015-18 के बीच 0.2 से 0.3 फीसदी तक बढ़ेगी। बहरहाल, सन 2013 में जब जापान ने ओलिंपिक खेलों की मेजबानी हासिल की तब टोक्यो 2020 का अनुमानित मूल्य 7.5 अरब डॉलर लगाया गया था जो दिसंबर 2020 तक बढ़कर 15.4 अरब डॉलर पहुंच गया। यह सही है कि 2002 के विश्व कप फुटबाल की संयुक्त मेजबानी से जापान का उत्पादन काफी बढ़ा था लेकिन कई विशेषज्ञों ने कोविड-19 के आगमन के पहले भी 2020 के ओलिंपिक खेलों की सफलता को लेकर आशंका जताई थी। इस वर्ष मई में जापान के एक शीर्ष थिंक टैंक और सिस्टम इंटीग्रेटर नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनआरआई) ने महामारी से प्रभावित ओलिंपिक खेलों वाली अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन किया था। इसी तरह टोक्यो ओलिंपिक में करीब 10 लाख विदेशी दर्शकों के आने का अनुमान लगाया गया था। माना जा रहा था कि इनमें से प्रत्येक यहां रहने, खाने-पीने और परिवहन पर करीब 151,000 येन खर्च करेगा। यानी जापान के जीडीपी में 151.1 अरब येन का इजाफा होता लेकिन विदेशी यात्रियों पर प्रतिबंध लग गया। एनआरआई ने अनुमान लगाया था कि महामारी से प्रभावित टोक्यो खेलों से करीब 1,810.8 अरब येन का आर्थिक लाभ होगा लेकिन अब उसे घटाकर 1,664 अरब येन कर दिया गया है। ओलिंपिक खेलों को रद्द करने पर भी काफी चर्चा हुई। पिछले कुछ महीनों में हुए अलग-अलग सर्वेक्षणों ने दर्शाया कि 70-80 फीसदी जापानी प्रतिभागी चाहते थे कि ओलिंपिक खेलों को या तो निरस्त किया जाए या उन्हें स्थगित कर दिया जाए। ऐसा इसलिए था कि इस बात की व्यापक अटकलें थीं कि महामारी के बीच खेल सुपर स्प्रेडर (तेजी से संक्रमण फैलाने) का काम करेंगे। टोक्यो मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन ने जापानी प्रधानमंत्री को लिखा, 'हमारा पुरजोर अनुरोध है कि प्राधिकारी अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति को यह विश्वास दिलाएं कि ओलिंपिक खेलों का आयोजन कर पाना कठिन है और उससे खेलों को रद्द करने की मंजूरी प्राप्त करें।' जापान के चिकित्सक संघ के प्रमुख ने तो यहां तक कहा कि टोक्यो में एकत्रित होने वाले लोगों के जरिये विभिन्न हिस्सों में मौजूद वायरस के विभिन्न बदलाव वाले स्वरूप एक साथ होंगे और ऐसे में नए स्वरूप के सामने आने की आशंका भी है। यदि ओलिंपिक खेल रद्द होते हैं तो बीमा उद्योग को दो से तीन अरब डॉलर के दावों का निपटान करना पड़ सकता है जो विश्व इतिहास में किसी बड़े आयोजन के निरस्त होने के चलते उत्पन्न सबसे बड़ा दावा होगा। परंतु खेलों को रद्द करने का निर्णय अंतिम तौर पर अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति को लेना होता है और फिलहाल तो उसका ऐसा कोई इरादा नहीं दिख रहा। जापान में तीन आरंभिक आपात स्थितियों की घोषणा से हुए नुकसान को देखते हुए एनआरआई ने चेतावनी दी थी कि यदि ओलिंपिक को देखते हुए कोविड-19 से निपटने के लिए एक और आपात स्थिति घोषित की गई तो इससे होने वाला कुल नुकसान खेलों को रद्द करने से हुए नुकसान पर भारी पड़ जाएगा। बहरहाल, खेल हो रहे हैं और इस्तांबुल और मैड्रिड जैसे शहर 2020 के ओलिंपिक खेलों की मेजबानी हासिल करने में चूक जाने पर संभवत: सबसे अधिक राहत की सांस अब ले रहे होंगे। (लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता में सांख्यिकी के प्राध्यापक हैं)
