चुनौतीपूर्ण है बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं का भविष्य | श्रेया जय और ज्योति मुकुल / July 21, 2021 | | | | |
देश के नवीकरणीय विद्युत क्षेत्र में विगत एक वर्ष में तेज बदलाव आया है और देश की सबसे बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं। इससे विशुद्ध रूप से नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों और उपकरण निर्माताओं की योजनाओं पर बुरा असर पड़ा है जबकि शुरुआती दौर में इनकी तादाद तेजी से बढ़ी थी। अब भारत हर आकार प्रकार की कंपनियों के साथ 2030 तक 450 गीगावॉट नवीकरणीय बिजली उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास करेगा।
पर्यावरण और भूमि अधिग्रहण संबंधी वजहों के अलावा पहले ही तय हो चुकी निविदा के लिए बिजली खरीद समझौतों (पीएसए) पर हस्ताक्षर आदि सन 2021 तक 175 गीगावॉट क्षमता हासिल करने के लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा बन सकते हैं। पवन ऊर्जा क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में से एक वेस्टास के उपाध्यक्ष विक्रम जाधव कहते हैं, 'प्राथमिक रूप से तीन अहम मसले हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा की बड़ी परियोजनाओं के जमीनी रूप लेने की राह बाधित करते हैं। हर क्षेत्र या परियोजना के सामने भूमि अधिग्रहण, पारेषण तंत्र, नियामकीय देरी जैसी कमोबेश एक समान दिक्कतें आती हैं। यह कमी इसलिए है क्योंकि परिचालन का कोई एक मानक नहीं है।'
जिन बड़ी कंपनियों के पास पहले ही बड़े अनुबंध लग चुके हैं, उनके लिए परियोजना क्रियान्वयन की दिशा में आगे बढऩा एक अहम बात होगी। उदाहरण के लिए अदाणी ग्रीन ने 8 गीगावॉट क्षमता की सौर परियोजनाएं विकसित करने का सरकारी अनुबंध हासिल करने की घोषणा की और 2 गीगावॉट क्षमता की अतिरिक्त सौर इकाइयां स्थापित करने की बात कही। कंपनी ने जून 2020 में कहा कि वह 2025 तक 45,000 करोड़ रुपये की लागत से मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता विकसित करेगी। इससे उसे दुनिया की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी बनने में मदद मिलेगी। जून 2021 में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने कहा कि वह 2030 तक 100 गीगावॉट क्षमता हासिल करेगी जबकि अभी सौर ऊर्जा क्षेत्र में उसकी कोई मौजूदगी नहीं है।
टाटा समूह उन शुरुआती समूहों से है जिसने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उपकरण निर्माता और उत्पादक के रूप में प्रवेश किया था। टाटा पावर सोलर जो संपूर्ण सौर ईपीसी के क्षेत्र में बाजार की अगुआ है, उसके मूल टाटा पावर में विलय की प्रक्रिया चल रही है। एक अन्य अनुषंगी कंपनी टाटा पावर रिन्यूएबल एनर्जी के पास फिलहाल 3.5 गीगावॉट स्थापित क्षमता है। ताप बिजली क्षेत्र की सरकारी कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड भी 2030 तक 60 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की योजना बना रही है। यह उसकी कोयला आधारित बिजली की मौजूदा क्षमता के बराबर है। इस बीच गोल्डमैन सैक्स समर्थित रिन्यू पावर और सुजलॉन जैसी छोटी कंपनियों ने अपने उपकरण और ईपीसी कारोबार के माध्यम से शुरुआती वर्षों में देश की पवन ऊर्जा क्षमता तैयार की। इन्होंने संप्रग सरकार के कार्यकाल में नवीकरणीय ऊर्जा पर शुरुआती जोर दिया। जब बाजार सौर कंपनियों की ओर झुक गया तो रिन्यू ने अपना ध्यान सौर उत्पादन पर केंद्रित किया। हीरो फ्यूचर एनर्जीस ने भी यही किया। इसके अलावा गड़बडिय़ां भी हुई हैं। सॉफ्टबैंक एनर्जी जिसने तीन वर्ष पहले भारतीय बाजार में एक लाख करोड़ डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी, उसने अपना पूरा पोर्टफोलियो अदाणी समूह को बेच दिया और कारोबार से बाहर निकल गईं। आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की सरकार ने 2019 में नवीकरणीय ऊर्जा की सभी मौजूद परियोजनाओं को निरस्त कर दिया क्योंकि उसके मुताबिक दरें बहुत अधिक थीं। इससे 10 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का नुकसान हुआ। प्रदेश में कुल 350 मेगावॉट क्षमता है।
बिजली क्षेत्र के तकनीकी नियामक केंद्रीय विद्युत अथॉरिटी की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में आवंटित 16 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता के पास बिजली खरीद समझौते (पीपीए) अथवा पीएसए भी नहीं हैं क्योंकि राज्य बिजली खरीदने में हिचक रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी निविदाओं को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बोली विजेताओं का अंतिम तौर पर चयन होने के बावजूद पीएसए पर हस्ताक्षर नहीं हो पा रहे। नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने वाली एक निजी इक्विटी फर्म के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, 'ऐसे पीपीए भी हैं जहां पीएसए नहीं हुए हैं। परंतु वहां पैसा भी नहीं गंवाया गया है क्योंकि कारोबारी योजना में देर होने के कारण परियोजना भी तैयार नहीं हुई।'
बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय दिक्कत भी एक वजह है जिसके कारण वे अनुबंध पूरे नहीं कर पा रही हैं और परिचालित इकाइयों के लिए भुगतान जारी नहीं हो रहे। हरित ऊर्जा की मांग में कमी होने पर इसकी खरीद कम नहीं की जा सकती है लेकिन इससे नियमित भुगतान सुनिश्चित नहीं होता है। वितरण कंपनियों का नवीकरणीय परियोजनाओं पर बकाया मई 2021 तक बढ़कर 11,368 करोड़ रुपये हो चुका है। उद्योग जगत के आंकड़ों के अनुसार गत तीन वर्ष में 20 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी हुई लेकिन बमुश्किल 20 फीसदी शुरू हो सकीं। देश के कई हिस्सों में लगा लॉकडाउन भी परियोजनाओं में देरी की वजह बना। जाधव केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल की कमी की ओर भी इशारा करते हैं। वह कहते हैं,'केंद्र सरकार बड़ी परियोजनाओं क्षमताओं को मंजूरी देती है लेकिन राज्य सरकारों के पास जमीन आवंटन या मंजूरी प्रक्रिया नहीं है।' गुजरात जिसने नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में शुरुआत में कदम बढ़ाया था, वह इसका उदाहरण है। राज्य सरकार ने 2018 में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा निजी कंपनियों को आवंटित सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को जमीन आवंटित करने से मना कर दिया था। उसने यह भी कहा कि जमीन केवल तभी आवंटित की जाएगी जब ये परियोजनाएं गुजरात को बिजली बेचें। इस गतिरोध एक गीगावॉट क्षमता की परियोजनाओं में देरी हुई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गुजरात ने 2020 में अपनी भू नीति में संशोधन करके कहा कि परियोजना विकास का काम करने वालों को बिजली का एक हिस्सा प्रदेश को देना होगा और जमीन का किराया चुकाना होगा। एक बार जमीन की समस्याएं निपटने के बाद पारेषण की दिक्कतें पैदा हो जाती हैं। जाधव कहते हैं, 'सबसे दिक्कतदेह मसला है पावरग्रिड, सीईए और सीईआरसी जैसी एजेंसियों का ताप बिजली संबंधी मानसिकता। पारेषण परियोजनाओं में देरी व्यवहार्यता पर असर डालती है। ऐसे में बड़े-बड़े लक्ष्यों के साथ बेहतर व्यवस्था बहुत आवश्यक है।'
नवीकरणीय सलाहकार सेवा ब्रिज टु इंडिया ने अपने वार्षिक सीईओ सर्वेक्षण में नीतिगत दिक्कतों को लेकर औद्योगिक नेताओं की निराशा को रेखांकित किया। रिपोर्ट में कहा गया कि बिजली की मांग, भूमि अधिग्रहण, पारेषण संचार, ऋण की फाइनैंसिंग और बिजली वितरण आदि मांग-आपूर्ति के तमाम कारक उद्योग जगत की चिंता का विषय हैं। 60 फीसदी से अधिक प्रतिक्रियाओं में इन कारकों को अत्यंत चुनौतीपूर्ण या चुनौतीपूर्ण बताया गया। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 के बाद कुछ सुधार हुए हैं।
एनटीपीसी के कच्छ सोलर पार्क जैसी 4.75 गीगावॉट क्षमता वाली बड़ी परियोजनाएं 450 गीगावॉट के लक्ष्य की प्राप्ति में मददगार हो सकती हैं। हालांकि इसकी स्थापना पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाके में की गई है और उसे पर्यावरण मंजूरी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि उद्योग जगत ने सहअस्तित्व पर काम करना शुरू कर दिया है। नैशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी सुब्रमण्यम पुलिपाका कहते हैं कि हरित ऊर्जा और पर्यावास दोनों का सह अस्तित्व होना चाहिए। फेडरेशन ने एक समिति का गठन किया है जो नवीकरणीय ऊर्जा के पर्यावरणीय पहलू पर गौर कर सके। बहरहाल, 2030 के लक्ष्य की दिशा में आगे बढऩा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि शुरुआती तैयारी आसान थी जबकि अब इसका विस्तार उतना आसान नहीं है।
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