खरीफ की बुआई में कमी ने बढ़ाई चिंता | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली July 17, 2021 | | | | |
मॉनसून की वापसी के बावजूद खरीफ की फसलों की बुआई में पिछले साल की तुलना में कमी जारी है। इसकी वजह से फसल के अंतिम उत्पादन को लेकर चिंता बढ़ रही है, क्योंकि अगर बुआई में कोई असाधारण देरी होती है तो इससे उत्पादकता पर असर पड़ता है। खरीफ की फसलों, खासकर अगर तिलहन और दलहन का उत्पादन अगर कम होता है तो इसका विपरीत असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि दलहन और तिलहन की कीमतें पहले से ही ज्यादा हैं और इससे अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव बढ़ रहा है।
पिछले सप्ताह तक (9 जुलाई) खरीफ की फसल की बुआई पिछले साल की तुलना में 10.45 प्रतिशत कम थी, जो इस सप्ताह के अंत तक (16 जुलाई) और बुरी होकर 11.6 प्रतिशत कम हो गई है। सबसे अहम बात यह है कि खरीफ फसलों के तहत आने वाला रकबा सामान्य बुआई के रकबे (यह पिछले 5 साल के बुआई के रकबे का औसत होता है) से नीचे आ गया है।
16 जुलाई, 2021 तक बुआई के सामान्य रकबे की तुलना में बुआई करीब 4 प्रतिशत कम थी। प्रमुख फसलों में उड़द का रकबा पिछले साल से करीब 23.30 प्रतिशत कम है, जबकि मूंग का 21 प्रतिशत कम है। वहीं बाजारे का रकबा पिछले साल से 39.85 प्रतिशत, मूंगफली का रकबा 18.16 प्रतिशत कम है। सोयाबीन की बुआई का क्षेत्रफल 16 जुलाई तक पिछले साल की तुलना में 11.92 प्रतिशत कम है।
कपास का पौधरोपण 16 जुलाई तक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 16.94 प्रतिशत कम रहा है। सोयाबीन प्रॉसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) ने कहा, 'कुछ इलाकों में नमी को लेकर चिंता है। मध्य प्रदेश व और राजस्थान में खासकर समस्या है, जहां अगेती बुआई होती है। अगर जल्द बारिश नहीं होती है तो इसकी वजह से उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।'
सोपा ने कहा कि देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में सोयाबीन का रकबा 2020 की तुलना में 10 प्रतिशत घटने की उम्मीद है क्योंकि किसानों ने अन्य फसलें जैसे काला चना, मक्का और मूंग अपना लिया है।
क्रिसिल रिसर्च ने एक रिपोर्ट में कहा है कि सोयाबीन, कपास और मक्के की फसलों की बुआई में बदलाव हो सकता है, अगर अनुमान के मुताबिक मॉनसून वापसी करने में सफल नहीं होता। क्रिसिल ने कहा, 'इसलिए मॉनसून की चाल पर नजदीकी से नजर रखने की जरूरत है, जिससे आने वाले महीनों में खरीफ की फसलों पर असर को समझा जा सके।'
इसमें कहा गया है कि 23 जून और 12 जुलाई के दौरान बारिश दीर्घावधि औसत की तुलना में 32 प्रतिशत कम हुई है और पूर्वोत्तर इलाकों में सबसे ज्यादा 55 प्रतिशत कम बारिश हुई है।
क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, '23 जून से 12 जुलाई के बीच राजस्थान में बारिश 58 प्रतिशत कम हुई है और अगर अगले 10 दिन में रिकवरी नहीं होती है तो इससे कम बारिश वाले प्रमुख इलाकों में सोयाबीन की जगह मक्के की बुआई हो सकती है। इस अवधि के दौरान मध्य भारत में 39 प्रतिशत कम बारिश हुई है, जबकि गुजरात में 67 प्रतिशत कम बारिश हुई है।'
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