निजी क्षेत्र को दोष न दें | संपादकीय / July 16, 2021 | | | | |
देश के 15 बड़े राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों की बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने देश में टीकाकरण की धीमी गति के लिए आंशिक रूप से निजी क्षेत्र को भी उत्तरदायी ठहराया। उन्होंने कहा कि निजी केंद्रों पर टीकाकरण की दर का 'धीमा' होना 'गंभीर चिंता का कारण' है। उन्होंने शिकायत की कि कुछ मामलों में तो टीकों की खरीद के लिए पूरा अग्रिम भुगतान नहीं किया या इसके विपरीत कुछ प्रांतों के मामले में टीका खरीद के लिए चुकाई गई राशि की पूरी तरह निकासी नहीं की गई। ये शिकायतें गंभीर हैं लेकिन सरकार इनसे सही सबक लेती नहीं दिख रही है। यदि निजी क्षेत्र का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं है तो समस्या दरअसल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित निर्देश और नियंत्रण की कठिन प्रक्रिया में निहित है। राज्यों या निजी क्लिनिकों को उपदेश देना फिजूल है। इसके बजाय इस बात पर विचार होना चाहिए कि व्यवस्था में कैसे सुधार किया जाए कि निजी क्षेत्र का पूरी क्षमता से कामकाज सुनिश्चित हो सके।
टीकों की आपूर्ति में निजी क्षेत्र की सहायता के बिना इस वर्ष के अंत तक देश की आबादी के बड़े हिस्से का टीकाकरण होता नहीं दिखता। खासतौर पर महानगरों के उच्च जोखिम वाले इलाकों में। ऐसे में सरकार को सहयोगात्मक रुख अपनाना चाहिए, न कि वितरण व्यवस्था को लेकर तरह-तरह के निर्देश जारी करने के। प्रमुख समस्या यह है कि टीका निर्माता, खासतौर पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बड़ी अस्पताल शृंखलाओं के अलावा किसी के साथ सीधे अनुबंध के इच्छुक नहीं हैं। ऐसे में निजी क्षेत्र के अन्य अस्पताल सरकार से टीके खरीदने पर मजबूर हैं।
यहां उन्हें सरकारी खरीद प्रक्रिया की लालफीताशाही से निपटना होता है और कई जगह अग्रिम भुगतान की मांग पूरी करनी होती है। छोटे अस्पताल और क्लिनिक किसी खास महीने के लिए ठेका दे सकते हैं और आपूर्ति में देरी हो जाती है। लेकिन अगर उन्हें उससे अगले महीने के लिए एक और ठेका देना है तो उन्हें दोबारा अग्रिम भुगतान करना होता है। यानी छोटे अस्पतालों की काफी कार्यशील पूंजी सरकार को उन टीकों के पूर्व भुगतान में उलझ जाती है जो अभी आने होते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार को ऐसा क्यों लगता है कि ऋण सुविधा देने से इनकार करना राष्ट्र हित में है। खासतौर पर तब जबकि टीका आपूर्ति की उसकी व्यवस्था ही देरी की समस्या उत्पन्न कर रही है।
इसका सहज उत्तर यह है कि बाजार को अपना काम करने दिया जाए। टीकों की आपूर्ति के लिए एक केंद्र होना चाहिए और अगर आवश्यक हो तो विश्वसनीय थोक खरीदारों को साथ लेना चाहिए जिससे जोखिम कम हो और टीका विनिर्माता भी सौदे के इच्छुक हों। इसके लिए टीका लगवाने वालों से लिए जाने वाले सेवा शुल्क को मौजूदा 150 रुपये प्रति खुराक से बढ़ाना होगा। निजी क्षेत्र को टीका खरीद प्रक्रिया में शामिल करने का उद्देेश्य यह है कि वितरण के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाए जाएं। वे जो संसाधन लगा रहे हैं यदि उसका प्रतिफल इतना कम होगा तो वे इस दिशा में प्रयास नहीं करेंगे। सरकार को निजी क्षेत्र को समुचित मूल्य प्रोत्साहन के साथ काम करने देना चाहिए।
यह कुप्रबंधन इस बात का प्रतीक है कि कैसे मौजूदा सरकार ने व्यापक अर्थव्यवस्था के साथ गड़बड़ी की है। वह निजी क्षेत्र से आशा करती है कि वह एक नियंत्रण वाली व्यवस्था में फलेफूले। लेकिन निजी क्षेत्र इस तरह काम नहीं करता। आशा है कि सरकार टीका आपूर्ति शृंखला में समुचित निवेश जुटा पाने में अपनी नाकामी से कुछ उचित सबक सीखेगी।
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