अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून अभी तक खत्म क्यों नहीं | भाषा / July 16, 2021 | | | | |
सर्वोच्च न्यायालय ने 'औपनिवेशिक काल' के राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के 'भारी दुरुपयोग' पर गुरुवार को चिंता व्यक्त की और केंद्र से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के वास्ते महात्मा गांधी जैसे लोगों को 'चुप' कराने के लिए ब्रिटिश शासनकाल में इस्तेमाल के लिए प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषीकेश रॉय के पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और 'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' की याचिकाओं पर गौर करने पर सहमति जताते हुए कहा कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है। पीठ ने मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया। इस गैर-जमानती प्रावधान के तहत 'भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या असंतोष को उकसाने या उकसाने की कोशिश करने वाला' भाषण देना या अभिव्यक्ति एक अपराध है जिसके तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
पीठ ने कहा, 'श्रीमान अटॉर्नी (जनरल), हम कुछ सवाल करना चाहते हैं। यह औपनिवेशिक काल का कानून है और ब्रितानी शासनकाल में स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए इसी कानून का इस्तेमाल किया गया था। ब्रितानियों ने महात्मा गांधी, गोखले और अन्य को चुप कराने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे कानून बनाए रखना आवश्यक है?' इसने राजद्रोह के प्रावधान के 'भारी दुरुपयोग' पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत द्वारा बहुत पहले ही दरकिनार कर दिए गए सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के 'चिंताजनक' दुरुपयोग का जिक्र किया और कहा, 'इसकी तुलना एक ऐसे बढ़ई से की जा सकती है, जिससे एक लकड़ी काटने को कहा गया हो और उसने पूरा जंगल काट दिया हो।'
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'एक गुट के लोग दूसरे समूह के लोगों को फंसाने के लिए इस प्रकार के (दंडात्मक) प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि यदि कोई विशेष पार्टी या लोग (विरोध में उठने वाली) आवाज नहीं सुनना चाहते हैं, तो वे इस कानून का इस्तेमाल दूसरों को फंसाने के लिए करेंगे। पीठ ने पिछले 75 वर्ष से राजद्रोह कानून को कानून की किताब में बरकरार रखने पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा, 'हमें नहीं पता कि सरकार निर्णय क्यों नहीं ले रही है, जबकि आपकी सरकार (अन्य) पुराने कानून समाप्त कर रही है।'
इसने कहा कि वह किसी राज्य या सरकार को दोष नहीं दे रही, लेकिन दुर्भाग्य से क्रियान्वयन एजेंसी इन कानूनों का दुरुपयोग करती है और 'कोई जवाबदेही नहीं है'। पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई में कहा कि अगर किसी सुदूर गांव में कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को सबक सिखाना चाहता है तो वह ऐसे प्रावधानों का इस्तेमाल करके आसानी से ऐसा कर सकता है। इसने कहा कि इसके अलावा राजद्रोह के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत कम है और ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
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