उपभोक्ता मामलों के विभाग की तरफ से ई-कॉमर्स के बारे में जारी प्रस्तावित नियम-पुस्तिका में विदेशी कंपनियों या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का जिक्र नहीं है जबकि इस क्षेत्र के लिए बनाए गए तमाम दिशानिर्देशों में इनका उल्लेख होता रहा है। यह बदलाव इस लिहाज से अहम है कि नए प्रस्तावों को ही थोड़े-बहुत संशोधनों के साथ ई-कॉमर्स नीति के तौर पर मान्यता दी जा सकती है। इन दिशानिर्देशों के मसौदे में ऑनलाइन खुदरा कारोबार के लिए एक आधारशिला बनने की भी संभावना है। छोटे से लेकर बड़े ऑनलाइन खुदरा विक्रेता, विदेशी एवं घरेलू, एकल एवं बहु-ब्रांड और इन्वेंट्री एवं मार्केटप्लेस तक के लिए नीति-निर्माण में किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए। लेकिन निर्दिष्ट मानदंड तक पहुंचने के लिए इन प्रस्तावित दिशानिर्देशों में व्यापक स्तर पर बदलावों की जरूरत होगी। कंपनियां, लॉबी करने वाले समूह एवं सलाहकारों के साथ कारोबारी भी अपनी तरफ से रखे जाने वाले सुझावों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। प्रस्तावित दिशानिर्देशों में बाजार-स्थल एवं इन्वेंट्री पर आधारित फर्मों के अनुपालन नियमों में काफी फर्क हैं। हालांकि मंत्रालय का कहना है कि डिजिटल नेटवर्क पर खरीदे-बेचे जाने वाले सभी उत्पाद एवं सेवाएं इन नियमों की जद में आएंगी और ये प्रावधान ई-कॉमर्स के सभी मॉडलों पर लागू होंगे। लेकिन इसी के साथ बाजार-स्थल और इन्वेंट्री वाले विक्रेताओं के लिए अलग तरह के दायित्व निर्धारित किए गए हैं। इससे ई-कॉमर्स कारोबार के दोनों अहम अंगों के बीच संशय एवं एक तरह के मनमानेपन का भाव पैदा हुआ है। मसलन, प्रस्तावित नियम में कहा गया है, 'हरेक ई-कॉमर्स कंपनी को भारत से आने वाली शिकायतों के लिए एक समुचित शिकायत निपटान प्रणाली गठित करनी होगी और नियमों का ठीक तरह के पालन करने के लिए एक मुख्य अनुपालन अधिकारी भी नियुक्त करना होगा।' यह अधिकारी किसी भी मामले में ई-कॉमर्स फर्म के पास मौजूद तीसरे पक्ष की सूचना, डेटा या संचार से संबंधित किसी भी कार्रवाई में जवाबदेह होगा। अगर वह फर्म उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत तय प्रावधानों का पालन करने में नाकाम रहती है तो उसके लिए उस अधिकारी को ही जवाबदेह माना जाएगा। यह अनुपालन अधिकारी ई-कॉमर्स फर्म का एक वरिष्ठ कर्मचारी होना चाहिए और उसका भारत का नागरिक एवं निवासी होना भी जरूरी है। ई-कॉमर्स फर्म को एक नोडल संपर्क अधिकारी भी नियुक्त करना चाहिए जो सरकारी एजेंसियों के साथ 24 घंटे तालमेल बनाए रखने पर ध्यान दे। मसौदे में उल्लिखित यह प्रावधान ई-कॉमर्स कारोबार से जुड़े सभी पक्षों के लिए लागू होने का जिक्र करता है। लेकिन व्यवहार में यह नियम एमेजॉन एवं फ्लिपकार्ट जैसे बाजार-स्थल कंपनियों के लिए ही ज्यादा लागू होगा। शिकायत निपटान व्यवस्था में भारत से आने वाली शिकायतों की संख्या पर ध्यान देने का जिक्र करना एक तरह से अनकहा ही है कि यह नियम एक विदेशी कंपनी एवं बाजार-स्थल पर ही लागू होगा। ट्विटर के मामले में यह देखने को मिला है कि एक अनुपालन अधिकारी एवं सरकारी एजेंसियों के निरंतर संपर्क में रहने वाले एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति भारत में कारोबार कर रही किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। मसौदा नियम में बाजार-स्थल एवं इन्वेंट्री फर्मों के लिए अलग से निर्दिष्ट कुछ प्रावधानों से यह लगता है कि दोनों तरह की कंपनियों के लिए दायित्व एवं जवाबदेही एक ही तरह की नहीं हैं। ये सिर्फ बाजार-स्थल कंपनियों के लिए करने एवं न करने वाले निर्देश हैं और इन्वेंट्री फर्मों पर लागू नहीं होते हैं। हरेक कंपनी को प्रमुखता से उत्पाद एवं सेवाएं दे रहे विक्रेताओं के बारे में जानकारी देनी होगी। इसमें उनके कारोबार का नाम, पंजीकरण, मूल देश, भौगोलिक पता, कस्टमर केयर नंबर, विक्रेता के बारे में रेटिंग या संबंधित फीडबैक और खरीद के पहले उपभोक्ताओं के लिहाज से जरूरी कोई भी अन्य जानकारी शामिल होगी। हरेक बाजार-स्थल को अपने प्लेटफॉर्म पर सामान बेच रहे विक्रेताओं के साथ अपने संबंधों के बारे में स्पष्ट उल्लेख करना होगा। एक ही श्रेणी के विक्रेताओं या उत्पादों एवं सेवाओं के बीच किए जाने वाले अलग व्यवहार का भी ब्योरा देना होगा। लॉजिस्टिक सेवा प्रदाताओं के बारे में भी यही बात लागू होती है। प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत कोई विक्रेता अगर लापरवाही भरे बरताव के चलते किसी उपभोक्ता द्वारा उत्पाद एवं सेवा के लिए दिए गए ऑर्डर को पूरा कर पाने में नाकाम रहता है तो ई-कॉमर्स कंपनी को ही जवाबदेह माना जाएगा। बाजार-स्थल प्लेटफॉर्म पर मौजूद विक्रेताओं को शिकायतों के निपटारे के लिए अधिकारी नियुक्त करने होंगे जो उपभोक्ताओं द्वारा दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों पर 48 घंटे के भीतर कार्रवाई करेंगे। हरेक विक्रेता के शिकायत निपटान अधिकारियों के नाम एवं संपर्क नंबरों की जानकारी देने के अलावा आयातित उत्पादों की प्रामाणिकता से संबंधित आयातकों एवं गारंटी का भी ब्योरा देना होगा। इन्वेंट्री पर आधारित कंपनियों को विदेशी निवेश नियमों के तहत मंजूरी नहीं होने से विदेशी फर्में अपने प्लेटफॉर्म पर विक्रेताओं को जगह देकर सिर्फ ऑनलाइन मार्केट कंपनियों के ही तौर पर काम कर सकती हैं। इस पाबंदी ने विदेशी कंपनियों को जटिल कानूनी ढांचे अपनाने और चुनिंदा विक्रेताओं के लिए तरजीही बरताव करने को मजबूर किया जो कि नियामकीय जांच का विषय हो सकता है। भारतीय फर्मों के पास यह विकल्प होगा कि वे इन्वेंट्री फर्म या बाजार-स्थल या फिर दोनों के मिले-जुले रूप के तौर पर काम करें। भारत की बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज का ऑनलाइन खुदरा कारोबार अभी विकास के चरण में है और यह प्रमुख रूप से इन्वेंट्री-आधारित ही होगा। टाटा समूह भी एक सुपर ऐप की अवधारणा पर काम कर रहा है और यह अभी साफ नहीं है कि वह एक बाजार-स्थल होगा या फिर हाइब्रिड मॉडल पर काम करेगा। आने वाले कुछ हफ्तों में यह पता चल जाएगा कि इन मसौदा दिशानिर्देशों के नियम बने जाने पर ई-कॉमर्स फर्में भारत में किस तरह से काम करेंगी?
