फर्मों व संस्थागत निवेशकों की अलग राय | समी मोडक / मुंबई July 11, 2021 | | | | |
एम्पलॉयी स्टॉक ऑप्शन प्लान (ईसॉप्स) को लेकर भारतीय कंपनी जगत और संस्थागत शेयरधारकों के बीच लगातार दूरी बढ़ रही है। हाल के महीनों में सूचीबद्ध कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को स्टॉक ऑप्शंस जारी करने का प्रस्ताव सामने रखा, लेकिन ऐसे प्रस्तावों को संस्थागत निवेशकों के विरोध का सामना करना पड़ा।
एशियन पेंट्स, माइंडट्री और खादिम जैसी कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों पर मतदान संस्थागत निवेशकों के विरोध का सामना करना पड़ा और इन निवेशकों ने 56 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक विरोध जताया। लेकिन ऐसा कोई प्रस्ताव खारिज नहीं हो पाया, जिसकी वजह प्रवर्तकों व अन्य शेयरधारकों की तरफ से इसके पक्ष में किया गया मतदान है।
इंस्टिट््यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक व प्रबंध निदेशक अमित टंडन ने कहा, कंपनियां जिस तरह से ईसॉप्स पर कदम बढ़ा रही है और संस्थागत निवेशक उसे कैसे देखते हैं, इनमें किसी तरह का जुड़ाव नहीं है। कंपनियों के लिए ईसॉप्स टाला गया भुगतान है, वहीं निवेशकों के लिए ईसॉप्स जोखिम भरा भुगतान है। कर्मचारी तभी इसमें कमाई कर पाएंगे जब शेयर की कीमतें चढ़े। ऐसे में अगर यह बाजार कीमत पर इश्यू नहीं होता तो हम संस्थागत निवेशकों की तरफ से ऐसे प्रस्ताव के खिलाफ मतदान देख रहे हैं। वोटिंग का पैटर्न स्पष्ट तौर पर बताता है कि संस्थागत शेयरधारक नहीं चाहते कि ईसॉप्स को भारी छूट पर जारी किया जाए।
अग्रिम नकदी का भुगतान किए बिना कंपनी की तरफ से अपने कर्मचारियों को पुरस्कृत करने का एक जरिया ईसॉप्स है। इसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह कंपनी में मालिकाना हक देता है और कर्मचारियों को कंपनी व उसके शेयरधारकों के बेहतर हित में काम करने को प्रोत्साहित भी करता है। हर कंपनी अपने स्टॉक ऑप्शन प्लान का खाका तैयार करीत है और इसमें लॉक इन की अवधि अलग-अलग होती है। ईसॉप्स कर्मचारियों को बाजार भाव के मुकाबले छूट पर शेयर खरीदने का मौका भी देता है।
विशेषज्ञों ने कहा कि कंपनियां धीरे-धीरे एक ऐसे वेतन ढांचे की ओर बढ़ रही है जहां तय वेतन कम होता है और स्टॉक ऑप्शंस काफी ज्यादा। व्हाइट ऐंड ब्रीफ एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के पार्टनर प्रशांत विक्रम राजपूत ने कहा, भारत में वैश्विक वेतन ढांचा दिखने लगा है जहां अग्रणी प्रबंधन के वेतन का जुड़ाव कुल मिलाकर वैल्यू क्रिएशन से बढ़ रहा है। वेतन के बड़े ढांचे से वैरिएबल पे मॉडल की ओर कंपनियां बढ़ रही हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं जहां स्थापित कारोबार के सीईओ को अपेक्षाकृत छोटे समूह की अगुआई करने वालोंं के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है और ये अपने कारोबारों को अप्रत्याशित ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम होते हैं। राजपूत ने कहा, ईसॉप्स पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए अल्पांश निवेशकों को सही संदर्भ समझना चाहिए, जहां वे ऐसे प्रस्तावों पर मतदान कर रहे हों। शेयर कीमतों में तेजी ने स्थिति को जोखिमपूर्ण बना दिया है। बाजार पर नजर रखने वालों का कहना है कि अगर कर्मचारियों को ईसॉप्स प्लान के तहत मौजूदा ऊंची कीमत पर शेयर खरीदने की पेशकश की जाएगी तो उन्हें हतोत्साहित महसूस कर सकते हैं और इसमें नुकसान उठाने का जोखिम भी है। दूसरी ओर, भारी छूट पर ईसॉप्स जारी करने का मतलब अल्पांश शेयरधारकों के गुस्से का सामना करना है।
टंडन ने कहा, मध्यम मार्ग बनाना मुश्किल है, लेकिन एक मुमकिन रास्ता वेतन-भत्ते को स्पष्ट तौर पर खुलासे वाले प्रदर्शन लक्ष्य से जुड़ाव हो सकता है। लेकिन तब तक कंपनियों को ईसॉप्स बाजार कीमत पर जारी करने की दरकार होगी।
मोटे तौर पर ईसॉप्स योजना को विशेष प्रस्ताव के जरिए पारित करने की दरकार होती है, यानी 75 फीसदी मत इसके हक मेंं हो, तभी यह प्रस्ताव पारित हो सकता है। उद्योग के प्रतिभागियों ने कहा कि अगर ईसॉप्स संबंधी प्रस्ताव को शिकस्त मिलनी शरू होती है तो भारतीय कंपनी जगत को वैकल्पिक रास्ता तलाशना होगा। यहां फैंटम स्टॉक ऑपप्शंस का जिक्र करना अहम है। अन्य देशों में फैंटम स्टॉक ऑप्शंस को एम्पलॉयी स्टॉक ऑप्शंस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन भारत में इसे अभी तक अहमियत नहीं मिली है।
एलऐंडएल पार्टनर्स लॉ ऑफिसेज के पार्टनर सुमित्रा सुरेश ने कहा, फैंटम स्टॉक ऑप्शंस में कर्मचारियोंं को नकद भुगतान शामिल होता है, जिसका जुड़ाव कंपनी के शेयर कीमतों में बढ़ोतरी से होता है। ऐसे में वैयक्तिक प्रदर्शन का जुड़ाव कंपनी की बढ़त से हो जाता है।
फैंटम स्टॉक ऑप्शंस अच्छे प्रदर्शन पर नकद बोनस दिए जाने से समान है। यह हालांकि इक्विटी की कीमत के इर्द-गिर्द के मसले का समाधान निकाल सकता है, लेकिन इसके लिए कंपनियों को अपने नकदी भंडार की ओर झांकना होगा।
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