भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित केंद्र सरकार ने जब 2014 में अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य बढ़ाया था, तो 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा में से 40 गीगावॉट क्षमता 2022 तक सोलर रूफटॉप से विकसित की जानी थी और शेष सौर बिजली संयंत्र जमीन पर लगाए जाने वाले थे। जर्मनी जैसे विकसित देशों मेंं सोलर रूफटॉप स्थापित किए जाते हैं, जिससे हरित ऊर्जा के बारे में लोगों की धारणा बदल सके, वहीं भारत सरकार आक्रामक रूप से संयंत्र बढ़ाने पर दांव लगा रही है। इसलिए भारत में संयंत्र लगाकर बिजली उत्पादन में तेज प्रगति हुई है और तमाम प्रमुख कारोबारी परियोजनाओं के लिए कतार में हैं, शुल्क गिर रहे हैं और केंद्रीय एजेंसियां बड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही हैं, वहीं रूफटॉप सोलर की लगातार उपेक्षा हो रही है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के मार्च, 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक कुल स्थापित 40 गीगावॉट सौर बिजली क्षमता में से बमुश्किल 4.4 गीगावॉट रूफटॉप से है। 2020-21 के दौरान 3.5 गीगावॉट मता युटिलिटी स्केल सोलर की थी, जबकि 1.9 गीगावॉट क्षमता रूफटॉप में जोड़ी गई। उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक करीब 75 प्रतिशत रूफटॉप सौर ऊर्जा क्षमता वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित हुई है। वहीं अन्य क्षेत्रों में आवास और सार्वजनिक स्थल शामिल हैं। इस क्षेत्र में तेजी तब देखी गई थी, जब कार्यक्रम की घोषणा हुई, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहन न देने के कारण उत्साह ठंडा पड़ गया। हैदराबाद की सोलर सॉल्यूशंस कंपनी फोर्थ पार्टनर एनर्जी के बिजनेस डेवलपमेंट के प्रमुख करन चड्ढा ने कहा, 'औद्योगिक (सोलर रूफटॉप) स्थापित करने मेंं 2014-15 से लेकर 2018 तक करीब 50-60 प्रतिशत वृद्धि हुई है। पिछले 2 साल में सालाना 1-1.5 गीगावॉट की स्थापना हुई है, जिसकी महामारी सहित कई वजहें हैं। शुरुआत में सरकार की योजना एसईसीआई से बल मिला, जिसमें सरकारी भवनों, सार्वजनिक कार्यालयों, आदि पर सौर संयंत्र लगाना अनिवार्य था, लेकिन यह कुछ राज्यों में हुआ।'
