सूरत के कामरेज में एक बुनाई इकाई में काम करने वाले हरीश पटेल थोड़े भाग्यशाली रहे कि कोरोना की दूसरी लहर और स्थानीय लॉकडाउन के बावजूद उनके नियोक्ता ने उन्हें काम से नहीं हटाया। हालांकि इकाई का परिचालन केवल एक पाली में करना पड़ा। लेकिन ज्यादातर प्रवासी कामगार काम नहीं होने के चलते होली और अन्य त्योहार के लिए घर चले गए। पटेल के नियोक्ता संदीप टेक्सटाइल्स के सुरेश सेकालिया ने कहा कि कई पालियों में काम करने के लिए उनके पास ऑर्डर ही नहीं हैं। बस, किसी तरह एक पाली में काम चल रहा है जिससे पटेल जैसे कुछ कामगारों का गुजारा चल रहा है। सेकालिया ने कहा, 'कोरोना की दूसरी लहर ऐसे समय में आई जब कपड़ा बाजार में तेजी आ रही थी और पिछले साल लॉकडाउन में गांव गए कामगार भी अब लौटकर आ गए थे। लेकिन अब वे लौटकर नहीं आ सकते क्योंकि उत्पादन प्रभावित होने से काम ही नहीं है।' उनके कारखाने में दो पालियों में काम होता था और हर महीने 200 पावरलूम पर तकरीबन 45 लाख मीटर कपड़ा तैयार होता था। महामारी की दूसरी लहर के बाद उतना ही उत्पादन हो पा रहा है जितना पटेल अकेले बुनाई कर पाते हैं। पूरे कपड़ा कारोबार, खास तौर पर बुनाई इकाइयों और कपड़ा बाजार (जहां से तैयार माल दूसरे राज्यों और विक्रेताओं को भेजा जाता है) में नौकरियां जाने या नया रोजगार नहीं मिलने की समस्या बढ़ गई है। पटेल ने कहा, 'मेरे साथी वापस आना चाहते हैं लेकिन हमारे नियोक्ता उन्हें काम पर नहीं रखना चाहेंगे। कारोबार धीमा होने की वजह से उत्पादन घटाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।' सूरत में करीब 12 लाख से 15 लाख प्रवासी कामगार रहते हैं। इनमें से अधिकांश कपड़ा, निर्माण कार्यों और हीरा उद्योग में काम करते हैं। अधिकतर प्रवासी कामगार ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के हैं। इनमें से 90 फीसदी प्रवासी कामगार पिछले साल राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन वापस लिए जाने के बाद लौट आए थे। लेकिन दूसरी लहर को देखते हुए उनमें से कई फिर वापस चले गए हैं। सेकालिया ने कहा, 'अन्य राज्यों में स्थानीय लॉकडाउन की वजह से कपड़ा कारोबार ठप हो गया है और इसका असर उत्पादन इकाइयों और कपड़ा बाजार पर भी पड़ा है। इन सबके कारण लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ीं। हम उत्पादन जारी रखना चाहते हैं लेकिन कोई खरीदार ही नहीं है। केवल हमारा स्टॉक बढ़ रहा है।' उद्योग के सूत्रों के अनुसार कपड़ा बुनाई इकाइयों में करीब 4 लाख से 5 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं और पकड़ा प्रसंस्करण इकाइयों में 3 लाख से 4 लाख और कपड़ा व्यापार एवं थोक बाजारों में करीब 2 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ था। अनुमान के अनुसार सूरत में 450 कपड़ा प्रसंस्करण इकाई, 6 लाख कताई-बुनाई पावरलूम और 700 से ज्यादा कपड़ा बाजार हैं, जिनमें करीब 5 लाख मजदूर पैकिंग और माल की चढ़ाई-उतराई का काम करते हैं। कपड़ा व्यापार में सबसे ज्यादा नौकरियां गईं हैं। इस कारोबार में बुनाई वाले कपड़े खरीदे जाते हैं और उनसे परिधान तैयार कर गुजरात से बाहर भेजा जाता है। लेकिन इस कारोबार के ठप होने से हजारों लोगों का रोजगार छिन गया है।कपड़ा व्यापारी देवकिशन मंघानी के अनुसार बिक्री घटकर सामान्य साल की तुलना में महज 30 से 40 फीसदी रह गई है। मंघानी ने कहा, 'कारोबार करने का जब मौसम आया तभी कोविड-19 की दूसरी लहर ने दस्तक दे दी। आम तौर पर पहले हमारे पास केवल 15-30 दिनों का जमा भंडार रहता था लेकिन कोविड-19 महामारी से कारोबार पर असर पडऩे के बाद 60-90 दिनों तक का भंडार जमा हो गया। अगर अंतर-राज्यीय कारोबार शुरू नहीं हुआ तो अगस्त तक यह भंडार जस का रहेगा। इन तमाम कारणों से परिधान कारोबार में काम करने वाले लोगों की संख्या 5 लाख से कम होकर 3 लाख रह गई है।' हालांकि तमाम बाधाओं के बीच पहली और दूसरी लहर के बीच 90 प्रतिशत से अधिक परिधान इकाइयां, खासकर बिजली से चलने वाले करघे (पावर लूम) नफा न नुकसान वाली स्थिति में आ गई थीं। इन इकाइयों के मालिकों की दूरदर्शिता और कारोबारी अनुभव की वजह से ऐसा संभव हो पाया था। कामरेज-लसकाना वीवर्स ऐसोसिएशन के अध्यक्ष बाबुभाई सोजित्रा ने कहा कि परिधान उद्योग को जबरदस्त नुकसान हुआ होता लेकिन जब पिछले वर्ष लॉकडाउन में ढील दिए जाने का सिललिसा शुरू हुआ तो जुलाई-अगस्त के दौरान धागे का मूल्य 120 रुपये प्रति किलोग्राम से कम होकर 75-80 रुपये प्रति किलोग्राम रह गया। इससे लागत काफी हद तक कम हो गई। सोजित्रा ने कहा, 'कीमतें कम होने के बाद परिधान तैयार करने वाली इकाइयों ने बड़ी मात्रा में धागे की खरीदारी की। लागत कम होने से अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच हमें प्राप्त हुआ मुनाफा पिछले महीनों हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए पर्याप्त था।' इसका नतीजा यह हुआ कि कोविड महामारी की वजह से सूरत में न के बराबर परिधान इकाइयां बंद हुई हैं। सूरत हीरों के कारोबार का भी प्रमुख केंद्र है। इस उद्योग के साथ भी कमोबेश ऐसा ही हुआ। सूरत में बड़े पैमाने पर हीरे चमकाने (पॉलिश) का काम होता है। यहां हीरे पॉलिश करने वाली करीब 6,000 इकाइयां हैं जिनमें 7 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। इनका सालाना कारोबार 1.7 लाख करोड़ रुपये है। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवद्र्धन परिषद के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच सूरत से 1.2 लाख करोड़ रुपये मूल्य के कटे एवं पॉलिश किए हुए हीरों का निर्यात हुआ जो अप्रैल 2019 और मार्च 2020 की अवधि के आंकड़ों के लगभग बराबर ही रहा। हीरों का आयात भी मामूली ही कम हुआ है। अपै्रल 2020 से मई 2021 की अवधि के दौरान हीरों का आयात केवल 14 प्रतिशत कम होकर करीब 80,000 करोड़ रुपये रह गया। अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच यह आंकड़ा करीब 92,000 करोड़ रुपये था।सूरत के कटारगाम क्षेत्र के हीरा कारोबारी 42 वर्षीय जिग्नेश मिस्त्री ने कहा कि पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान हीरा उद्योग में 2 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के बिना पॉलिश किए हुए हीरे थे। मिस्त्री ने कहा, 'पुराने ऑर्डर पूरे करते-करते अंतरराष्ट्रीय बाजार खुलने लगे और खुरदरे एवं पॉलिश किए हुए हीरे दोनों का कारोबार शुरू गया। सीमा शुल्क विभाग ने निर्यात में तेजी लाने के लिए विशेष व्यवस्था की थी जिससे हमें नुकसान कम करने में काफी मदद मिली।'
