कोविड-19 की दूसरी लहर अब ढलान पर है और आवाजाही पर लगी पाबंदियां भी ढीली पडऩे लगी हैं। श्रम बाजारों में भी हालात सुधरने लगे हैं। गत 27 जून को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी दर 8.7 फीसदी आंकी गई। पिछले तीन हफ्तों में बेरोजगारी दर 8.7 फीसदी से लेकर 9.4 फीसदी के दायरे में रही है। इस दौरान रही 8.9 फीसदी की औसत बेरोजगारी दर मई 2021 की 11.9 फीसदी की बेरोजगारी दर से काफी कम है। बेरोजगारी दर 16 मई को समाप्त सप्ताह में 14.5 फीसदी और उसके एक हफ्ते बाद यह 14.7 फीसदी के उच्च स्तर तक जा पहुंची थी। बेरोजगारी दर बढऩे के साथ ही श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) में गिरावट का सिलसिला भी शुरू हो गया। इससे पता चलता है कि श्रमबलों में हताशा बढ़ती जा रही थी। पहली बात, 9 मई को समाप्त सप्ताह में एलपीआर 41.3 फीसदी थी लेकिन 16 मई को समाप्त सप्ताह में यह 40.5 फीसदी हो गई थी। फिर अगले सप्ताह बेरोजगारी दर और बढ़ते ही एलपीआर कम होते हुए 39.4 फीसदी पर आ गई। गिरावट का यह सिलसिला 30 मई को समाप्त सप्ताह में एलपीआर के 39 फीसदी पर आने के साथ जारी रहा। उसके बाद बेरोजगारी दर में गिरावट शुरू होने के साथ ही एलपीआर में थोड़ा सुधार देखा गया। लेकिन 27 जून को खत्म हफ्ते में यह फिर से 39.6 फीसदी रही जो श्रम बाजार में व्याप्त कमजोरी को दर्शाता है। भारत में श्रम बाजारों का सबसे अच्छा संकेतक कही जाने वाली रोजगार दर इस कमजोरी को बहुत अच्छी तरह दर्शाती है। रोजगार दर जुलाई 2020 से लेकर मार्च 2021 के दौरान अधिकांशत: 37 फीसदी के ऊपर रही और इसका औसत 38 फीसदी के करीब रहा। अप्रैल 2021 में यह 36.8 फीसदी पर लुढ़क गई थी और मई में 35.3 फीसदी पर आ गई। जून 2021 के शुरुआती चार हफ्तों के आंकड़े हालात सुधरने का इशारा तो करते हैं लेकिन अब भी यह 36 फीसदी से थोड़ा कम ही है। निश्चित रूप से रोजगार दर का यह स्तर चिंताजनक है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में पहली लहर की तुलना में ज्यादा लोगों की मौत हुई है लेकिन रोजगार पर इसका असर कम पड़ा है। पहली लहर में होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा रोजाना 1,200 से भी कम था लेकिन दूसरी लहर में औसतन 3,600 लोगों की मौत रोजाना हुई है। गत 10 जून को तो 7,000 से भी अधिक मौतें दर्ज की गई थीं। पहली लहर में पैदल अपने गांवों की ओर लौटते प्रवासी कामगारों की तस्वीरें हमारे जेहन में लंबे समय तक बनी रहेगी। अचानक ही लॉकडाउन लग जाने से उनके सामने खाने तक के लाले पडऩे लगे, लिहाजा उन्होंने पैदल ही अपने गांवों का रुख कर लिया था। मध्यवर्ग एवं ऊंचे तबके के लोग संक्रमण से बचने के लिए घरों के भीतर बैठे रहे। वहीं दूसरी लहर की वो तस्वीरें लंबे समय तक हमारी यादों में रहेंगी जिनमें अच्छे खाते-पीते परिवारों के लोग भी जरूरी इलाज नहीं मिलने पर दम तोड़ते नजर आए। अपनी जान जाने का डर और स्वास्थ्य सेवाओं की नाकामी लोगों के जेहन में बनी रहेगी। बेरोजगारी दर पहली लहर में लगे सख्त लॉकडाउन में 24 फीसदी के बेहद उच्च स्तर तक जा पहुंची थी। लेकिन लॉकडाउन की पाबंदियां कम होने के साथ बेरोजगारी दर में गिरावट आने लगी और धीरे-धीरे यह लॉकडाउन-पूर्व के स्तर पर आ गई थी। वहींं दूसरी लहर में विभिन्न राज्यों में लगी बंदिशें उतनी सख्त नहीं रही हैं। यह बताता है कि बेरोजगारी दर कम क्यों रही है? दूसरी लहर के चरम पर रहते समय भी बेरोजगारी दर 15 फीसदी से कम ही रही। दरअसल दूसरी लहर का प्रकोप शुरू होने के पहले ही बेरोजगारी दर ने कोविड-पूर्व के स्तर को हासिल कर लिया था। जनवरी-फरवरी 2021 में औसत बेरोजगारी दर 6.7 फीसदी थी जो कि 2019-20 में रही 7.5 फीसदी की दर से कम ही थी। मई में 15 फीसदी के करीब पहुंचने के बाद बेरोजगारी दर के जून में 9 फीसदी से नीचे रहने की संभावना है और उसके बाद शायद यह 6-7 फीसदी के पुराने स्तर की ओर लौट जाए। भारत की समस्या असल में बेरोजगारी दर न होकर श्रम भागीदारी दर और रोजगार दर है। लगता है कि भारत में श्रमिकों की भागीदारी में कमी होना कोविड महामारी का स्थायी असर रह जाएगा। वर्ष 2019-20 में औसत एलपीआर 42.7 फीसदी थी। अप्रैल 2020 में यह गिरकर 35.6 फीसदी पर आ गई थी और फिर अगस्त 2020 में दोबारा 41 फीसदी हो गई थी। लेकिन पहली लहर आने के बाद से यह कभी भी 41 फीसदी के ऊपर नहीं गई है। लिहाजा एलपीआर महामारी आने के पहले के स्तर से करीब 1.7 फीसदी कम हो चुकी है। अप्रैल-मई 2021 में औसत एलपीआर 40 फीसदी रही और जून में भी इसके इसी स्तर पर रहने के आसार हैं। इसका मतलब है कि भारत कोविड-पूर्व के एलपीआर स्तर पर दोबारा नहीं पहुंच पाएगा। रोजगार दर पर असर को भी इसी तरह देखा जा सकता है। कोविड से पहले के स्तर पर यह नहीं पहुंच पाई है। वर्ष 2019-20 में रोजगार दर 39.5 फीसदी थी और अप्रैल 2020 में यह 27 फीसदी और मई 2020 में 30 फीसदी पर आ गई थी। रिकवरी ने सितंबर 2020 में इसे फिर से 38 फीसदी तक पहुंचा दिया था लेकिन कोविड-पूर्व के स्तर से 1.5 फीसदी का फर्क बना रहा। दूसरी लहर ने तो इस फासले को और भी बढ़ा दिया है। अप्रैल-मई 2021 में औसत रोजगार दर 36 फीसदी रही और जून में भी कमोबेश इसी स्तर पर बने रहने की संभावना है। इसका मतलब है कि दूसरी लहर खत्म होने पर रोजगार दर कोविड-पूर्व काल से करीब 3.5 फीसदी तक नीचे रहेगी। आने वाले महीनों में बेरोजगारी दर कम होने पर रोजगार दर का यह फासला कम हो सकता है लेकिन फिर भी यह कोविड-पूर्व के स्तर से कम ही रहेगा। (लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
