स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे शहरों में निवेश आकर्षित करने के लिए कर्ज गारंटी योजना पर्याप्त नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसका लाभ छोटे अस्पताल चलाने वालों को हो सकता है और इससे छोटे व मझोले शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव की भरपाई करने में मदद मिल सकती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज आज छोटे और मझोले शहरों में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए 50,000 करोड़ रुपये की कर्ज गारंटी योजना की घोषणा की है। साथ ही 23,220 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है, जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से बच्चों व शिशुओं की देखभाल संबंधी बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने में होगा। कर्ज गारंटी योजना में नई परियोजनाओं को 75 प्रतिशत कवरेज होगा और 50 प्रतिशत उन परियोजनाओं का होगा, जो विस्तार करना चाहती हैं। इस योजना के तहत 3 साल तक के लिए अधिकतम 100 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, जिस पर 7.95 प्रतिशत ब्याज लगेगा। मणिपाल हॉस्पिटल्स के एमडी और सीईओ दिलीप जोसे ने कहा, 'इस योजना से स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी संख्या में काम कर रही छोटी इकाइयों को लाभ होगा और उन्हें क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।' इस पैकेज को बड़ी राहत और सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति प्रतिबद्धता करार देते हुए काउंसिल फार हेल्थकेयर ऐंड फार्मा के अध्यक्ष गुरप्रीत संधू ने कहा, 'कोविड-19 को लेकर भारत में आया संकट वर्षों से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के ढांचे की उपेक्षा का परिणाम है और अब इस क्षेत्र में निवेश बहुत जरूरी हो गया है। ' उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज की गारंटी देने मात्र से छोटे शहरों में निवेश नहीं होगा। मेडिका हॉस्पिटल्स के चेयरमैन आलोक रॉय ने कहा, 'अगर सरकार कहती है कि वह अपने आयुष्मान भारत के मरीजों को उस जिले के उस अस्पताल में भेजेंगे, तब यह व्यावहारिक योजना होगी। अन्यथा कॉर्पोरेट अस्पतालों को भारी जोखिम होगा। हमें सरकारी अस्पतालों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जो मुफ्त इलाज करते हैं।' कर्ज गारंटी योजना से छोटे अस्पतालों को लाभ हो सकता है, वहीं मेडिकल उद्योग से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि कोई भी निजी अस्पताल छोटे और मझोले शहरों में जाने को इच्छुक नहीं है, क्योंकि वहां डॉक्टर नहीं मिलते हैं। एसोसिएशन आफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के महानिदेशक गिरधर ज्ञानी ने कहा, 'सरकार को योग्य चिकित्सक मुहैया कराने की राह निकालने के बारे में सोचना चाहिए। अगर मेडिकल पेशेवर उपलब्ध नहीं होंगे तो कोई भी अस्पताल नहीं काम करेगा।' मेडिकल इंडस्ट्री ने सरकार के 23,220 करोड़ रुपये के आवंटन की प्रशंसा की है, जिसका ध्यान बच्चों और शिशुओं की देखभाल की सेवाएं विकसित करने में होगा। खासकर कोरोना की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए यह अहम माना जा रहा है. मैक्स वेंटिलेटर के सीईओ और संस्थापक अशोक पटेल ने कहा, 'तीसरी लहर ज्यादा विध्वंसक होने के अनुमान के बीच नीतिगत प्रोत्साहन दिए जाने से स्वास्थ्य सेवाओं को कुछ गति मिलेगी और देश भर में तत्काल प्रभाव से बुुनियादी ढांचा ठीक किया जा सकेगा।' अतिरिक्त आवंटन का इस्तेमाल उपकरणों, दवाओं, टेली कंसल्टेशन तक पहुंच बनाने, एंबुलेंस सेवाओं के लिए भी हो सकेगा। इसके अलावा चाइल्ड केयर, जांच की क्षमता बढ़ाने और संबंधित निदान क्षमता के साथ सर्विलांस व जीनोम सिक्वेंसिंग को मजबूत करने में इसका इस्तेमाल हो सकेगा। सीतारमण ने कहा, 'इस फंड (23,200 करोड़ रुपये) को इस वित्त वर्ष में ही खर्च किया जाएगा। प्राथमिक ध्यान बच्चोंं पर होगा, लेकिन इसका लाभ अन्य लोगों को भी मिलेगा।' विशेषज्ञों का कहना है कि और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से स्वास्थ्य क्षेत्र की उपेक्षा हो रही है। नैटहेल्थ के अध्यक्ष हर्ष महाजन ने कहा, 'इससे बेहतर कोई वक्त नहीं हो सकता है कि हेल्थकेयर सेक्टर की लंबे समय से चल रही मांग पूरी की जाए और इसे बुनियादी ढांचे का दर्जा दिया जाए। इससे भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र अगले स्तर की ओर छलांग लगा सकेगा।' वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले साल 15,000 करोड़ रुपये की आपातकालीन स्वास्थ्य व्यवस्था परियोजना 2020-21 में लाई गई थी। उन्होंने कहा कि इस कोष के माध्यम से कोविड समर्पित अस्पतालों की संख्या में 25 गुना, ऑक्सीजन सपोर्ट वाले बेड में 7.4 गुना, आइसोलेशन बेड में 42 गुना, आईसीयू बेड में 45 गुना बढ़ोतरी हुई।
