वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने आज कहा कि सार्वजनिक खरीद पोर्ट जेम पर अपने उत्पाद में स्थानीय सामग्री का प्रतिशत घोषित न करने वाले विक्रेताओं को कारोबार गंवाना पड़ेगा और वे बोली में हिस्सा नहीं ले सकेंगे, जिसमें खरीदार सिर्फ मेड इन इंडिया सामान को चुनते हैं। सरकार का ई-मार्केटप्लेस (जेम) 2016 में पेश किया गया था। इसके माध्यम से केंद्र व राज्यों के सभी मंत्रालयों व एजेंसियों को वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद करनी होती है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि जेम पहला ई-कॉमर्स पोर्टल है, जिसने सभी उत्पादों के उत्पादन के मूल देश के बारे में प्रमुखता से दिखाना शुरू किया, जिससे कि खरीदारों को माल खरीदते समय सही सूचना हो और उसके मुताबिक वे फैसला कर सकें। अब सभी विक्रेताओं के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे कंट्री ओरिजिन को घोषित करें और इसके बगैर वे अपने उत्पाद इस प्लेटफॉर्म पर नहीं लोड कर सकते हैं। इसमं कहा गया है, 'एक कदम आगे बढ़ते हुए जेम ने उत्पाद के ब्योरे में स्थानीय सामग्री की प्रतिशत मात्रा के बारे में भी प्रमुखता से बताना शुरू किया है। इस तरह से मेड इन इंडिया उथ्पाद में भी खरीदार यह जान सकता है कि किस उत्पाद में स्थानीय सामग्री ज्यादा लगी है और वह उसके मुताबिक फैसला कर सकता है।' खरीदारों को एक फिल्टर मुहैया कराया गया है, जिससे वे मेक इन इंडिया में से उत्पादों की पहचान और उन्हें चिह्नित कर सकते हैं। मंत्रालय ने कहा है कि जो विक्रेता स्थानीय सामग्री का प्रतिशत घोषित नहीं करेंगे और सामग्री की सूती बनाने के लिए उत्पाद को अपलोड करेंगे, उन्हें कारोबार गंवाना होगा और वे बोली में हिस्सा नहीं ले सकेंगे, जिसमें खरीदार सिर्फ मेड इन इंजिडया का अनुपालन करने वाले उत्पादों को चुनते हैं। पोर्टल में मेड इन इंडिया फिल्टर मुहैया कराया गया है, जिसका इस्तेमाल कर खरीदार सभी गैर स्थानीय सामग्री वाले आपूर्तिकर्ताओं को अलग कर सकते हैं और अपनी खरीद स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं तक सीमित कर सकते हैं। इस पोर्टल केबारे में जानकारी देते हुए वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने कहा कि इससे सूक्ष्म व लघु उद्यमों (एमएसई), महिला स्वयं सहायता समूहों (एचएसजी) और स्टार्टअप की बाजार तक पहुंच बढ़ रही है। इस समय जीईएम पर 6,90,000 से ज्यादा एमएसई विक्रेता और सेवा प्रदाता हैं और पोर्टल के कुल ऑर्डर मूल्य में उनकी हिस्सेदारी 56 प्रतिशत से ज्यादा है।
