करीब 67 प्रतिशत भारतीय संगठनों को साइबर हमले की वजह से नष्ट हुआ अपना डेटा पुन: पाने के लिए फिरौती का भुगतान पड़ा, जो पूर्ववर्ती वर्ष 66 प्रतिशत था। दरअसल, सर्वे में शामिल सभी देशों में भारतीय संगठनों द्वारा इस तरह की फिरौती चुकाए जाने की ज्यादा आशंका रहती है, क्योंकि वैश्विक औसत महज एक-तिहाई (32 प्रतिशत) था। ये निष्कर्ष साइबरसिक्युरिटी कंपनी सोफोज द्वारा कराए गए वैश्विक सर्वे 'द स्टेट ऑफ रेंसमवेयर 2021' में सामने आए थे। सर्वे के निष्कर्ष में यह भी कहा गया कि रैंसमवेयर हमले से रिकवरी का कुल खर्च पिछले वर्ष दोगुना हो गया है और यह 2020 के 761,106 डॉलर से बढ़कर 2021 में वैश्विक रूप से 18.5 लाख डॉलर हो गया। सर्वे में पाया गया कि भारत में तुलनात्मक तौर पर रैंसमवेयर हमले के प्रभाव से उबरने का अनुमानित खर्च पिछले साल तीन गुना पहुंच गया, जो 2020 के 11 लाख डॉलर से बढ़कर 2021 में 33.8 लाख डॉलर हो गया। भारत में साइबर हमलों से नष्ट डेटा को पाने के लिए औसत खर्च 76,619 डॉलर था। सोफोज इंडिया और एसएएआरसी के प्रबंध निदेशक (बिक्री) सुनील शर्मा ने इस बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, 'जहां रैंसमवेयर से प्रभावित संगठनों का अनुपात पूर्ववर्ती वर्ष की तुलना में घटा है, वहीं भारतीय संगठन अभी भी सर्वे में शामिल किसी अन्य देश के मुकाबले इससे ज्यादा प्रभावित होने के खतरे से जूझ रहे हैं। इसका कारण भारत में घरेलू रैंसमवेयर का उच्च स्तर हो सकता है, जैसा कि सोफोसलैब्स ने अनुमान जताया है। इससे ऐसी स्थिति को बढ़ावा मिल रहा है जिसमें भारतीय विरोधी ही भारतीय संगठनों को निशाना बना रहे हैं।' सर्वे में यूरोप, अमेरिका, एशिया प्रशांत और मध्य एशिया, मध्यपूर्व, और अफ्रीका में 30 देशों के मझोले संगठनों के 5,400 आईटी विशेषज्ञों को शामिल किया गया। इसमें भारत में 300 प्रतिवादियों को भी शामिल किया गया था।
