मध्य प्रदेश में कोविड-19 महामारी के कुप्रबंधन ने न केवल प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे की कमजोरी उजागर कर दी है बल्कि प्रदेश के मामलों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कमजोर होती पकड़ भी सामने आ गई है। दमोह विधानसभा के प्रतिष्ठित उपचुनाव मेंं पराजय के बावजूद शिवराज सिंह चौहान को पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम से जरूरी राहत मिली है। बंगाल विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पराजय से चौहान के चिर प्रतिद्वंद्वी कैलाश विजयवर्गीय के मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के स्वप्न को धक्का लगा है। यदि पश्चिम बंगाल में भाजपा को जीत हासिल होती तो विजयवर्गीय की किस्मत चमक सकती थी। विजयवर्गीय मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के विभिन्न कार्यकालों में कई अहम विभागों के मंत्री रह चुके हैं। उन्हें सन 2014 मेंं तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राष्ट्रीय राजनीति में ले गए। सन 2015 में उन्हें पश्चिम बंगाल भेज दिया गया और पार्टी केे भरोसे को सही ठहराते हुए उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को वहां 42 मेंं से 18 लोकसभा सीटों पर जीत दिलाई। तब से विजयवर्गीय बंगाल मेंं ही रहे और वहां पार्टी कैडर को मजबूत किया। भोपाल के पत्रकार राकेश दीक्षित कहते हैं विजयवर्गीय ने चौहान को अस्थिर करने का कोई मौका कभी नहीं गंवाया। दीक्षित कहते हैं, 'विजयवर्गीय ने कई वर्षों तक शिवराज को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया ताकि वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकें। परंतु 2013 में जब चौहान ने तीसरी बार प्रदेश का नेतृत्व संभाला तब तक विजयवर्गीय काफी अलग-थलग पड़ चुके थे। विजयवर्गीय खुशी-खुशी केंद्रीय राजनीति में चले गए।' परंतु राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ऐसा नहीं सोचते। वह कहते हैं, 'यह सही है कि विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल चुनावों के प्रभारी थे लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद वहां दो सप्ताह में 23 रैलियां कीं। इतना ही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी 20 दिन के अंतराल में 79 रैलियों और रोडशो को संबोधित किया। ऐसे में मेरा सोचना है कि विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय मिलने या बुरे प्रदर्शन का जवाबदेह ठहराए जाने जैसी कोई बात नहीं है।' गिरिजा शंकर स्वीकार करते हैं कि मध्य प्रदेश भाजपा में ऐसे कई नेता हैं जो चुपचाप प्रदेश का मुखिया बनने का सपना देखते हैं लेकिन मौजूदा परिदृश्य में यह बहुत दूरी की कौड़ी है। दमोह विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी (कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा मेंं आए) ने पार्टी के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया पर अपने खिलाफ षडयंत्र बुनने का आरोप लगाया। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी यह स्वीकार किया कि पार्टी को 'विश्वासघातियों' की वजह से हार का सामना करना पड़ा। लोधी के आरोप के बाद मलैया के बेटे सिद्धार्थ को पार्टी से निलंबित कर दिया गया। हालांकि एक भाजपा नेता का कहना है कि इन तमाम घटनाक्रम के बीच चौहान की प्रतिष्ठा को कोई क्षति नहीं पहुंची है क्योंकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा इन उपचुनावों में सर्वाधिक प्रमुख भूमिका मेंं थे। प्रदेश में कोविड-19 संक्रमण के मामले 7,00,000 से अधिक हो चुके हैं लेकिन स्वास्थ्य के मोर्चे पर अभी तक तालमेल नदारद है। भोपाल के भदभदा श्मशान घाट के रिकॉर्ड के अनुसार अप्रैल महीने में वहां 1652 कोविड संक्रमितों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया। यदि विभिन्न धर्मों के अंतिम संस्कार स्थलों के आंकड़े मिला दिए जाएं तो अप्रैल महीने में भोपाल में 3,000 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया गया। परंतु सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल महीने में भोपाल मेंं केवल 104 लोग का ही कोविड संबंधी दिक्कतों के कारण निधन हुआ। ऐसे भी आरोप हैं कि अफसरशाह आंकड़ों से छेड़छाड़ कर रहे हैं। यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि भाजपा विधायक और प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्यमंत्री अजय विश्नोई ने लगाया है। ध्यान देने वाली बात है कि देश के सबसे बड़े प्रांतों में से एक मध्य प्रदेश में कोई बड़ा ऑक्सीजन संयंत्र नहीं है। प्रदेश के विभिन्न अस्पतालों में कई मरीजों का ऑक्सीजन की कमी से मारे निधन होने के बाद राज्य सरकार ने 37 जिलों में ऑक्सीजन संयंत्र लगाने की घोषणा की। गत वर्ष जब महामारी की पहली लहर आई तब मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि बाबई औद्योगिक क्षेत्र में 150 टन उत्पादन क्षमता वाला ऑक्सीजन संयंत्र लगाया जाएगा लेकिन यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है। इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय कहते हैं कि राज्य सरकार को महामारी के बारे में कोई अंदाजा ही नहीं था और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के बजाय आंकड़ों से छेड़छाड़ की गई। राय कहते हैं, 'भाजपा नेताओं में कोई तालमेल नहीं है। उनमें से अधिकांश अपनी मर्जी से चल रहे हैं और चौहान असहाय होकर देख भर रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि वह क्षुद्र राजनीति छोड़कर विभिन्न राजनीतिक दलों को साथ लेकर काम करे।' एक भाजपा नेता नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहते हैं, 'चौहान के आरएसएस के सर कार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी के साथ अच्छे रिश्ते थे लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ दिया। उनके रहते चौहान को आरएसएस का समर्थन मिलता था। नए सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के साथ उनके रिश्ते उतने मजबूत नहीं हैं।'
