संरक्षणवाद बढऩे से ईयू के साथ वार्ता मुश्किल | श्रेया नंदी / नई दिल्ली May 18, 2021 | | | | |
भारत और यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) के लिए वार्ता शुरू करने पर सहमत हो गए हैं लेकिन विशेषज्ञों की राय में इसके लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा। उनकी नजर में इसकी वजह यह है कि महामारी के आने से विभिन्न देशों में संरक्षणवाद की धारणा बढ़ रही है।
विशेषज्ञों ने कहा कि शुल्क घटाना और चर्चा जटिल हो सकती है क्योंकि विगत कुछ वर्षों में बाजारों में बदलाव आ चुका है। इसके अलावा, दुनिया भर में संरक्षणवाद की धारणा बढऩे से भारत सहित विभिन्न देश सामानों पर उच्च शुल्क लगा रहे हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विश्वजीत धर ने कहा, 'वस्तु क्षेत्र में जब हम बाजार पहुंच के मुद्ïदे पर चर्चा कर रहे हैं तब उसमें कुछ चुनौतियों होंगी। चूंकि चर्चा स्थगित रही इस बीच हमारे शुल्क बढ़ गए। सरकार ने उद्योग को सुरक्षित करने और यहां पर विनिर्माण क्षेत्र को बढऩे की अनुमति देने के लिए आत्मनिर्भर नीति की घोषणा की थी। इस परिस्थिति में शुल्क में कटौती करना उन चुनौतियों में से एक है।'
भारत और ईयू के बीच औपचारिक वार्ताएं विभिन्न मुद्ïदों पर मतभेद होने के कारण आठ वर्ष पहले रुक गई थी। तब इस समूह ने वाहन और शराब पर आयात शुल्क में कटौती करने पर बहुत जोर दिया था। दोनों पक्षों के बीच वार्ताओं की शुरुआत 2007 में हुई थी।
धर ने कहा, 'साल 2013 के बाद से औसत शुल्क में 3 फीसदी की वृद्घि हुई है और यहां पर धारणा उद्योग को संरक्षण देना है। यह देखना होगा कि सरकार किस प्रकार से शुल्क में कमी की मांग को समायोजित करती है।'
शनिवार को भारत और ईयू संतुलित और व्यापक मुक्त व्यापार और निवेश समझौतों के लिए चर्चाएं आरंभ करने पर सहमत हुए। व्यापार और निवेश समझौतों पर चर्चाएं समानांतर स्तर पर चलेंगी ताकि दोनों को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। आर्थिक भागीदारी में विविधता लाने के लिए भारत और ईयू डब्ल्यूटीओ मुद्दों, बाजार पहुंच के मुद्ïदों और आपूर्ति शृंखला में लचीलेपन पर समर्पित संवादों के लिए भी सहमत हुए।
यह चर्चा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ईयू के देश चीन और अमेरिका से पहले 2919-20 में वस्तु को लेकर भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार थे। कुल व्यापार 90 अरब डॉलर के करीब था। इसके अलावा, व्यापारिक सौदा शुरू करने से भारत और ईयू के बीच खास तौर पर ब्रेक्जिट के बाद संबंध को नए सिरे से बल मिलेगा।
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) में प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने कहा कि एक ओर जहां ईयू जैसे निर्यात बाजार के साथ व्यापारिक समझौता करना एक अच्छी पहले है वहीं चर्चा के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि उसमें बाजार की अच्छी समझ शामिल हो क्योंकि 2013 के बाद से इसमें बहुत सारे बदलाव आए हैं।
मुखर्जी ने कहा, 'मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा बाजार पहुंच, नियामकीय पारदर्शिता और निरंतरता के संदर्भ होती हैं। बाजार पहुंच में आपके पास शुल्क और गैर-शुल्क रुकावटे हैं, ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि आप कैसे चर्चा करते हैं और बाजार के बारे में आपको कितनी जानकारी है। बाजार बदल चुका है। बाजार की हालिया जानकारी चर्चा के लिए बहुत अधिक महत्त्वपूण है।'
उन्होंने कहा कि भारत को ईयू जैसे बाजारों के साथ सौदा करते समय कम से कम अपने प्रतिस्पर्धियों के समान स्तर पर आना होगा। मुखर्जी ने कहा, 'हमें यह देखने की जरूरत है कि दूसरे देश क्या दे रहे हैं, ईयू वियतनाम जैसे दूसरे विकासशील देशों से क्या मांग कर रहा है और उन्हें क्या मिला है। हमें अपने आप को तैयार करने की जरूरत है। व्यापारिक समझौता भर हो जाने से समस्या दूर नहीं हो जाती। भारत को ईयू जैसे बाजारों में कम से कम अपने प्रतिस्पर्धियों के समकक्ष आना होगा।'
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