कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर पिछले साल आई पहली लहर के मुकाबले बहुत अधिक घातक रही है। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान देश में रोजाना 4,000 के करीब लोगों की मौत इस महामारी के कारण हो रही है। कई मामलों में परिवार का इकलौता कमाऊ सदस्य इसकी भेंट चढ़ रहा है तो कुछ मामलों में पति-पत्नी दोनों की जान कोरोना वायरस ने लील ली है। कोई भी सदस्य चला जाए तो आर्थिक झटका लगता है और उसके वित्तीय संसाधनों को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। अगर उस सदस्य ने अपनी वित्तीय योजनाओं और निवेश में किसी को भी नामित नहीं किया हो यानी नॉमिनी नहीं बनाया हो तब तो वारिसों के लिए उस व्यक्ति के निवेश तक पहुंचना और उसे हासिल कर पाना किसी दु:स्वप्न से कम नहीं होता। बैंक खाते हों, डीमैट खाते हों, म्युचुअल फंड हों या बीमा पॉलिसी, नॉमिनी के बगैर कहीं भी कुछ भी मिल पाना मुश्किल होता है।
अगर किसी को नामित किया गया होता है यानी नॉमिनेशन होता है तो कानून के मुताबिक वित्तीय सेवा प्रदाताओं को वे दस्तावेज और वह निवेश नामित व्यक्ति के नाम पर स्थानांतरित करना ही पड़ता है। अगर अदालत का पचड़ा है या अदालत ने रोक लगाई है तब अलग बात है। लेकिन इसमें भी एक पेच है। डीएसके लीगल के एसोसिएट पार्टनर अविनाश खर्ड कहते हैं, 'नॉमिनी के नाम पर किसी भी तरह का ट्रांसफर होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे वित्तीय योजनाओं के बारे में कोई फायदा मिल जाएगा। यह तो उत्तराधिकार के कानूनों पर निर्भर करता है। नॉमिनी के पास वित्तीय योजनाएं (और उनसे मिलने वाली राशि) तो रहेंगी मगर वह केवल उन्हें संभालेगा और उनका पूरा लाभ मृतक के कानूनी वारिसों को मिलेगा।' मृतक के वारिसों या आश्रितों को ये साधन या निवेश हासिल करने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और कई झंझट भी आते हैं। इसलिए वित्तीय संस्थाएं नॉमिनी जोडऩे पर जोर देते हैं और उसके लिए बड़े स्तर पर अभियान भी चलाते हैं। इतना काम कर लिया जाए तो नॉमिनी के लिए दावा करना आसान हो जाता है।
बैंकिंग
कई बार नॉमिनी वह व्यक्ति होता है, जिसे जमाकर्ता अपनी मौत की सूरत में बैंक खाते के ट्रस्टी यानी संरक्षक के रूप में काम करने की जिम्मेदारी देता है। नॉमिनेशन नहीं किया जाए तो कई दिक्कतें सामने आ जाती हैं। बैंकबाजार के मुख्य कार्य अधिकारी आदिल शेट्टी समझाते हैं, 'अगर खाता 'आइदर-ऑर-सर्वाइवर' श्रेणी में चलाया जाता है तो सर्वाइवर यानी आश्रित जमा रकम पर दावा ठोक सकता है। अगर खाता संयुक्त है तो इसका मतलब है कि रकम निकासी के लिए सभी खाताधारकों को दस्तखत करने की जरूरत पड़ेगी। उस सूरत में बैंक आम तौर पर मरने वाले के साथ संयुक्त खाता रखने वाले व्यक्ति यानी सर्वाइवर और मृतक के कानूनी वारिस को संयुक्त रूप से पूरी रकम सौंप देते हैं अर्थात दोनों को रकम मिलती है।' शेट्टी बताते हैं कि यदि खाते का संचालन एक ही व्यक्ति कर रहा है यानी संयुक्त खाता नहीं है तो उसमें पड़ी रकम या संपत्ति पर दावा करने के लिए वारिसों को मृतक की वसीयत पेश करनी पड़ सकती है। ऐक्सिस बैंक के कार्यकारी उपाध्यक्ष और प्रमुख (रिटेल लायबिलिटीज ऐंड डायरेक्ट बैंकिंग चैनल) प्रवीण भट्ट कहते हैं, 'सभी खाताधारकों की मौत हो जाए और खातों में नॉमिनेशन भी अद्यतन नहीं कराया गया हो तो सबसे पहले मृतकों के कानूनी वारिसों की शिनाख्त पुख्ता की जाती है और उसके बाद वारिसों के मुख्तारनामे के मुताबिक रकम का निपटारा कर दिया जाता है।'
कानूनी उत्तराधिकारी दावे के दस्तावेज सफलतापूर्वक जमा कर देते हैं और बैंक उनका सत्यापन भी कर देते हैं तब मृतक खाताधारक की रकम सभी कानूनी वारिसों में बांट दी जाती है या सभी वारिस यदि किसी एक वारिस को ही रकम देने की बात कहते हैं तो उस वारिस को संपत्ति सौंप दी जाती है। मामला चाहे जो हो, दावेदारों को सही तरीके से आवेदन करना पड़ता है। उसमें दावे के आवेदन पत्र के साथ खाताधारक के मृत्यु प्रमाण पत्र, पते के प्रमाण और प्रत्येक दावेदार के पहचान-पत्र की एक-एक प्रति जमा करनी पड़ती है। अगर कई उत्तराधिकारी हैं और संपत्ति उनमें से केवल एक को हस्तांतरित की जानी है, तो दूसरों को एक डिस्क्लेमर पर हस्ताक्षर करने पड़ेंगे, जिसमें वे संपत्ति से अपना हक छोडऩे की बात कहेंगे।
बीमा
लोग जीवन बीमा दो कारणों से लेते हैं - अपने जीवन के दीर्घकालिक लक्ष्य पूरे करने के लिए और यदि किसी वजह से उनकी असमय मृत्यु हो जाए तो अपनेने प्रियजनों और परिजनों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए क्योंकि अक्सर पॉलिसीधारक ही परिवार का भरण-पोषण करने वाले होते हैं। पॉलिसी में यदि किसी को नॉमिनी नहीं बनाया गया है तो कानूनी वारिस बीमा की रकम पर दावा कर सकता है। पॉलिसीएक्स के मुख्य कार्याधिकारी और संस्थापक नवल गोयल कहते हैं, 'ऐसा करने के लिए कानूनी उत्तराधिकारी को दावे की घोषणा वाले पत्र के साथ-साथ मृत्यु प्रमाण पत्र, लाभार्थी की पहचान का सबूत, पॉलिसी के कागजात, डिस्चार्ज फॉर्म (अगर कोई हो), पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अस्पताल के रिकॉर्ड (अप्राकृ तिक मौत के मामले में) पेश करने होते हैं।' कभी-कभार बीमाकर्ता को अदालत द्वारा जारी उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ती है। इस प्रमाण पत्र में खास तौर पर पॉलिसी क्रमांक और भुगतान की जाने वाली रकम का जिक्र होता है। केनरा एचएसबीसी ओबीसी लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य परिचालन अधिकारी सचिन दत्ता कहते हैं, 'कुछ असाधारण मामलों में यदि परिवार के भीतर उत्तराधिकार पर कोई विवाद नहीं है या कोई कानूनी विवाद नहीं है तो पूरी जांच-पड़ताल करेन के बाद हम प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा जारी उत्तराधिकार प्रमाण पत्र पर भी विचार कर सकते हैं। लेकिन उसके साथ सभी कानूनी वारिसों के हस्ताक्षर के साथ यह बताया जाए कि किसी व्यक्ति या वारिस को बीमा की पूरी रकम दी जानी है।' मगर सबसे अच्छा तो समय पर नामांकन करारा देना है क्योंकि याद रखिए कि ऐसा नहीं किया तो आपके जाने के बाद आपके परिवार के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। मुश्किल इसलिए हो सकती हैं क्योंकि अदालत से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र हासिल करना आसान काम नहीं है।
म्युचुअल फंड
संपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) यूनिटों के हस्तांतरण के लिए स्टैंडर्ड ट्रांसमिशन रिक्वेस्ट फॉर्म के साथ ही ऐम्फी द्वारा निर्धारित दस्तावेज मांगती है। दावा करने वालों के लिए राहत की बड़ी बात यह है कि यूनिट हस्तांतरण के लिए सभी फंड कंपनियों में एक ही जैसा आवेदन पत्र होता है और उन्हें एक जैसे दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है। पहले बड़ा झंझट था। यदि कई फंड कंपनियों में निवेश होता था तो यूनिट हासिल करने के लिए हरेक कंपनी द्वारा निर्धारित प्रक्रिया अपनानी पड़ती थी, जो अलग-अलग होती थी। पीपीएफएएस म्यूचुअल फंड के उत्पाद प्रमुख जयंत पई कहते हैं, 'इस प्रक्रिया में उत्तराधिकारियों को सबसे पहले कुछ दस्तावेज पेश करने पड़ते हैं। इन दस्तावेजों में मृत्यु प्रमाण पत्र, दावेदार/दावेदारों के पैन कार्ड, केवाईसी पूरे होने का प्रमाण, मृतक के साथ संबंध साबित करने वाले दस्तावेज शामिल होते हैं। लेकिन कंपनियां कुछ और दस्तावेज भी मांग सकती हैं। साथ में ट्रांसमिशन फॉर्म तो पेश करना ही पड़ता है।' इसके बाद की प्रक्रिया कुछ अलग हो सकती है और इस बात पर निर्भर करती है कि हस्तांतरित की जाने वाली रकम 2 लाख रुपये से कम है या ज्यादा। आनंद राठी की कंपनी एआरडब्ल्यू वेल्थ में डिजिटल वेल्थ मैनेजमेंट के मुख्य कार्याधिकारी श्रीराम अय्यर कहते हैं, 'दो लाख रुपये से कम की राशि के मामले में कम दस्तावेजों की जरूरत हो सकती है या सख्ती कम हो सकती है। लेकिन अधिक रकम के लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र या प्रोबेटेड यानी सत्यापित वसीयत की भी आवश्यकता हो सकती है।' प्रोबेट कानूनी प्रक्रिया का शब्द होता है जिसमें किसी वसीयत को जांचकर सत्यापित किया जाता है कि वह वैध और प्रामाणिक है या नहीं। अगर हस्तांतरित की जाने वाली राशि 2 लाख रुपये से अधिक होती है तो इनडेम्निटी बॉन्ड के लिए व्यक्तिगत हलफनामों के अलावा उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र या प्रोबेट परिवीक्षा अथवा शासन का पत्र जरूरी होता है। हस्तांतरण होने पर उन यूनिटों को परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी द्वारा वैध अदायगी माना जाता है।
डीमैट खाता
अगर डीमैट खाताधारक ने अपने जीवन काल में किसी को नॉमिनी नहीं बनाया हो तो डीमैट खाते में मौजूद प्रतिभूतियों को कानूनी उत्तराधिकारियों के सुपुर्द करने के लिए संबंधित डिपॉजिटरी भागीदारों के उपनियमों में दिए गए प्रावधानों अथवा प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा। डिपॉजिटरी भागीदार डीमैट खाते में पड़ी प्रतिभूतियां वारिसों के सुपुर्द करने से पहले आम तौर पर कुछ खास दस्तावेजों पर जोर देते हैं। अगर प्रतिभूतियों का मूल्य पांच लाख रुपये से अधिक होता है, तो दावेदार को अपने दावे के लिए वसीयत के सत्यापन की एक प्रति या शासन के पत्र की नोटरी द्वारा सत्यापित प्रति अथवा उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की विधिवत रूप से सत्यापित अथवा नोटरी द्वारा सत्यापित प्रति पेश करनी होती है। वह सक्षम अदालत द्वारा दिए गए आदेश की प्रति भी पेश कर सकता है। इसके साथ ही हस्तांतरण का आवेदन, मृत्यु प्रमाण पत्र की प्रति और दावेदार के डीमैट खाते की क्लाइंट मास्टर रिपोर्ट भी देनी होती है।
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