किसानों और जाटों की एकता के परिचायक | आदिति फडणीस / नई दिल्ली May 07, 2021 | | | | |
भारत तथा इंडिया के बीच की खाई को पाटने वाले एक राजनेता ने गुरुवार को अंतिम सांस ली। कई बार केंद्रीय मंत्री रह चुके और किसानों एवं जाटों के नेता कहे जाने वाले 82 साल के अजित सिंह पिछले कुछ समय से राजनीति में सक्रिय नहीं थे। हालांकि, उन्हें अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह से एक मजबूत राजनीतिक विरासत मिली थी, जिसे उन्होंने अपने पुत्र और मथुरा से पूर्व सांसद जयंत चौधरी को सौंप दिया। राजनीति में आने से पहले, वह आईआईटी इंजीनियर थे और कुछ समय के लिए उन्होंने आईबीएम में काम भी किया था।
अजित सिंह ने गैर-कांग्रेसी राजनीति से अपना सफर शुरू किया, हालांकि उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के दूसरे कार्यकाल में गठबंधन से हाथ भी मिलाया, जो साल 2014 तक चला। उनकी राजनीति के केंद्र बिंदु में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान थे, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही शामिल रहे। अपने राजनीतिक सफर में वह लगातार किसानों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए प्रयासरत रहे और हाल ही में आए तीन केंद्रीय विधेयकों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों को भी उनका दूर से ही मार्गदर्शन मिलता रहा। अजित के पुत्र जयंत चौधरी ऐसे कुछ राजनेताओं में से एक थे जिन्हें प्रदर्शनकारी किसानों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। वे यह कहते हैं कि 2019 में 'चौधरी अजित सिंह की पार्टी' के खिलाफ मतदान करने का निर्णय एक गलती थी।
अपने जीवनकाल में, अजित सिंह को साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद अपने समर्थन आधार को कमजोर होते हुए देखना पड़ा था। उनकी पार्टी साल 2014 के आम चुनावों में एक भी सीट पाने में असफल रही। लेकिन इससे पहले उन्होंने मुलायम सिंह यादव, हेमवती नंदन बहुगुणा और अन्य नेताओं के बीच चरण सिंह की विरासत को अच्छी तरह से संभाला। उन्होंने 1987 तथा 1988 में लोक दल (ए) एवं जनता पार्टी का गठन किया, और साल 1989 में वीपी सिंह के साथ जनता दल के महासचिव बने। जब वीपी सिंह सत्ता में आए तो अजित सिंह उद्योग मंत्री बने। वह पीवी नरसिंह राव सरकार में खाद्य मंत्री के रूप में शामिल हुए लेकिन साल 1996 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1998 में अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल की स्थापना की और 2001-2003 तक वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री के साथ ही संप्रग 2.0 कायऱ्काल के दौरान भी मंत्री रहे।
संभवत:, उनका सबसे विवादास्पद कार्यकाल साल 2011 से 2014 तक नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में था। उनके कार्यकाल के दौरान ही एयर इंडिया ने ड्रीमलाइनर विमान को शामिल करने का निर्णय लिया था, जबकि उसका प्रदर्शन कमजोर रहा था। इसे उन पर ही छोड़ दें, क्योंकि हो सकता है कि सिंह ने उस दौरान खुद ही एक सुधार की शुरुआत की होगी, लेकिन वह ऐसी सरकार का हिस्सा थे जिसने ममता बनर्जी को भी साझेदार बनाया गया था और वह इस क्षेत्र में उच्च एफडीआई का तेज विरोध कर रही थीं। हालांकि दो बड़े विमानन सौदे: जेट एतिहाद और टाटा-सिंगापुर एयरलाइंस का समझौता उनके कार्यकाल में हुआ था। सिंह ने एयर इंडिया के आधुनिकीकरण के लिए भी संघर्ष किया।
और अगर उनके प्रयास काफी हद तक असफल रहे, तो भी उनकी कोशिश में सफल होने की चाह थी। उन्होंने ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में एक पुल की तरह प्रतिनिधित्व किया जो राजनीति में एक से अधिक परंपरागत युगों का प्रतिनिधित्व करता था और जिसमें एक ओर खाप पंचायतों का प्रभुत्व था तो दूसरी तरफ एक आधुनिक, अग्रदर्शी भारत शामिल था। बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में, उन्होंने कभी-कभी अपने हताशा एवं निराशा के भाव जाहिर किए थे, हालांकि इसके साथ उनकी अपनी बाधाएं थीं।
फिर भी, जैज और 'हेलो डॉली' जैसे संगीत का आनंद लेने वाले, कभी एक ग्लास व्हाइट वाइन को मना नहीं करने वाले और इटालियन भोजन, विशेष रूप से रैवियोली को पसंद करने वाले व्यक्तित्व को हमेशा याद किया जाएगा। एक और वजह, क्योंकि उनका कोई दुश्मन नहीं, केवल दोस्त ही थे।
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