दस साल पहले इसी महीने महाराष्ट्र के एक बहुत कम जाने-पहचाने कार्यकर्ता ने दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन शुरू किया था। हजारे का प्रदर्शन बहुत ही कम समय में एक 'आंदोलन' में बदल गया। या यह कम से कम वह था, जिसमें अत्यंत उत्साही समर्थक मीडिया हमारा भरोसा चाहता था। एक दशक बाद कृपया इस बात को स्वीकार करें कि भारत आपको ठगा गया। 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं, विशेष रूप से अरविंद केजरीवाल की महत्त्वाकांक्षाओं का एक जरिया था। यह मध्य वर्ग के लिए विरोध-प्रदर्शन में अभिनय करने का मंच था। यह सरकार को बदनाम करने और भारतीय जनता पार्टी को फिर से स्थापित करने का अभियान था। यह उस समय भी पूरी तरह साफ था। हमेशा स्वार्थप्रेरित लोगों ने इसकी परवाह नहीं की। उन्होंने सरकार में विघ्न पैदा करने वाली हर चीज को सहमति दी। निराश भोले-भाले लोगों ने अपनी आंखें मूद लीं। इस तथाकथित आंदोलन के एक अग्रणी नेता प्रशांत भूषण ने हाल में 'दी वीक' को बताया, 'मैं इस चीज को करीब से नहीं देख रहा था कि कौन समर्थन दे रहा है और कैसे...मैं उस दौर को लेकर कह सकता हूं कि आरएसएस और भाजपा बहुत ही व्यवस्थित, संगठित और सोचे-समझे तरीके से आंदोलन को समर्थन दे रहे थे ताकि कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया जा सके... केजरीवाल को इस चीज का पता रहा होगा क्योंकि उन्होंने बहुत सोच-समझकर बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर का समर्थन लिया था, जो बाद में भाजपा से संबद्ध निकले।' मीडिया भी काफी हद तक दोषी है। इसने इन आंदोलनों को अनवरत, अथक और अत्यधिक समर्थन देकर प्रचारित-प्रसारित किया। उस साल के मेरे नोट्स में लिखा है कि एक मौके पर हजारे ने 12 घंटे में 17 'विशेष' साक्षात्कार दिए। संप्र्रग-2 में मीडिया को बस एक ही खुमार था- ऐसी कहानी, जिसे विद्रोह, रंग दे बसंती, मध्य वर्ग बनाम राजनेता के दृष्टिकोण से पेश किया जा सके। यह जनता में विद्रोह की आग पैदा करना चाहता था और इसमें पूरी ताकत से घी भी झोंका। एनडीटीवी के 'इंडियन ऑफ दी इयर 2011' में बरखा दत्त ने अरविंद केजरीवाल से पूछा कि क्या वह भारतीयों के दिलों में एक खास जगह बनाने में सफल रहे हैं और अगर हां तो कैसे। इस पर केजरीवाल ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह अपने बलबूते इस मुकाम पर पहुंचे हैं और वह इस समझौतापरक मीडिया की देन नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह यहां सवालों के जवाब देने के लिए नहीं बल्कि अपनी बातें रखने के लिए आए हैं। इसके बाद उन्होंने उपस्थित जनसमूह से कहा कि उन्होंने भारतीयों के साथ एक विशेष संपर्क सूत्र बनाया है और वही असली पुरस्कार विजेता हैं। मीडिया धोखेबाजी को सहारा देता है, धोखेबाज दावा करते हैं कि वह मीडिया से स्वतंत्र हैं, मीडिया लगातार धोखेबाजों को दिखाता है। वह लगातार वह काम कर रहा है, जो मीडिया ने उससे करने को कहा है। हालांकि केजरीवाल एक तरीके से सही थे। पुरस्कार के असली हकदार तमाशबीन लोग ही थे। ऐसा लगता है कि उन सभी ने दृढ़ प्रण कर लिया था कि वे खुद को ठगा जाने और हंसी का पात्र बनाया जाने के बावजूद अपनी आंखों के सामने मौजूद सबूतों की अनदेखी करेंगे। यहां तक कि उस समय भी, जब मीडिया ने यह सुनिश्चित करने की पुरजोर कोशिश की कि अनशन का वास्तविक विजेता नरेंद्र मोदी है। एक मौके पर टाइम्स नाऊ के न्यूजआवर के पैनल में शामिल एक व्यक्ति ने केजरीवाल से मोदी के बारे में पूछने की कोशिश की। मगर शो के एंकर अर्णव गोस्वामी ने हस्तक्षेप करते हुए सवाल को काट दिया और कहा कि यहां मोदी नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की बात हो रही है। भूषण ने कहा, 'यह सरकार भ्रष्टाचार, फासीवादी नीतियों और लोकतांत्रिक संस्थाओं के विनाश में कांग्रेस सरकार से बहुत अधिक खराब है। हमें बीते समय से सबक लेकर भविष्य को देखना चाहिए था।' क्या आप भी ऐसा सोचते हैं? वर्ष 2021 में भारत को लोकलुभावनवाद मिला है, लेकिन यह वास्तविक है, इंडिया अगेंस्ट करप्शन जैसा फर्जी नहीं। हमारे यहां एक प्रणाली है, जिसमें हमने संप्रग के वर्षों मेें अदालतें, सीबीआई, सीएजी जैसे प्रत्येक नियंत्रण एवं संतुलन बनाए थे, उन्हें निष्प्रभावी कर दिया गया है और सत्ता प्रतिष्ठान का हिस्सा बना दिया गया है। हमारे पास ऐसा मीडिया है जिसे डरा-धमकाकर शांत एवं सहमति देने को मजबूर कर दिया जा रहा है। हमारे यहां पक्षपात, हिंसा और डराने-धमकाने की घटनाएं हो रही हैं। लेकिन 2011 के हजारे के प्रशंसकों को इससे कोई आपत्ति नहीं है। यह 'आंदोलन' भ्रष्टाचार को लेकर नहीं था। न्यायाधीशों, वामपंथी कार्यकर्ताओं, साहसी नियामकों और मीडिया के लिए कोई खेद नहीं है। ये वही लोग है, जिन्होंने वास्तव में लोकलुभावनवाद की जीत की मांग की थी। एक दशक पहले के मुखर 'स्वतंत्र' नायक अगली सरकार द्वारा मुहैया कराए गए आरामदेह पदों पर बैठकर शांत हो गए हैं। इनमें विनोद राय जैसे लोग शामिल हैं। राय ऐसे ऑडिटर थे, जो ठीक से गणना नहीं कर सके। क्या आपको वह याद हैं? अब कौन 'काल्पनिक घाटे' के बारे में बात करता है? जो लोग वर्ष 2011 में अज्ञात और अपुष्ट भ्रष्टाचार को लेकर पूरे जोश से सामने आए थे, वे 2021 में उस समय ठंडे पड़ गए हैं, जब फ्रांस के मीडिया की खबरें राफेल सौदे को लेकर सवाल पैदा कर रही हैं। लेकिन ये वही लोग हैं, जिन्होंने संप्रग के दौरान देश को पूरी गंभीरता से कहा था कि पार्टी अध्यक्ष से कमजोर प्रधानमंत्री होना उदार लोकतंत्र की सबसे खराब चीज है। हम धीरे-धीरे अनुदार निरंकुशता की तरफ बढ़ रहे हैं। इंडिया अगेंस्ट करप्शन भारत में फर्जीवाड़ा था। लेकिन उसने एक अहम मकसद पूरा किया है। इसने यह खुलासा कर दिया है कि जिन लोगों ने इसका भरपूर समर्थन किया था, वे या तो ठगे गए लोग या समर्थक या हठी थे।
