लॉकडाउन के डर से भाग रहे कामगार, औंधा हुआ कारोबार | सुशील मिश्र / April 02, 2021 | | | | |
महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण कारोबारियों के गले की फांस बनता जा रहा है। राज्य में कोविड कार्य बल ने कोरोना पर काबू के लिए एक बार फिर लॉकडाउन की सिफारिश की है और मुख्यमंत्री उद्घव ठाकरे भी उसकी तैयारी के निर्देश दे चुके हैं। इससे पहले ही तमाम पाबंदियां लग चुकी हैं, जिनकी वजह से व्यापारी वर्ग को कारोबार की चिंता सता रही है और कामगार-मजदूर एक बार फिर पलायन की तैयारी कर रहे हैं।
राज्य में कोरोना संक्रमण और उससे मौत के मामले दिनोदिन बढ़ते जा रहे हैं, जिसे देखकर सरकार के भीतर लॉकडाउन पर गंभीर मंत्रणा हो रही है। सरकार की ऊहापोह से सबसे ज्यादा मजदूरों की जान सांसत में फंसी है। पिछले साल लॉकडाउन की तपिश झेल चुके और पैदल घर जाने को मजबूर हुए मजदूर इस बार पहले ही लौटने लगे हैं। पिछले 15 दिन में मुंबई और आसपास के इलाकों में काम करने वाले करीब 25 फीसदी मजदूर गांव-घर लौट गए हैं। मजदूरों के पलायन की सबसे बड़ी मार तो मुंबई के करीब भिवंडी में लूम वालों पर पड़ती है। भिवंडी ऑटो पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन के सचिव विजय नागेजा कहते हैं कि पिछले साल की परेशानियों से घबराए मजदूरों को डर है कि लॉकडाउन लगने पर दोबारा फंसना न पड़ जाए। इसीलिए उनका पलायन शुरू हो गया है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ा है। फरवरी के मुकाबले मार्च में उत्पादन 30-40 फीसदी कम रहा है। यही हाल रहा तो अप्रैल में उत्पादन पटरी से ही उतर जाएगा। लूम कारोबारी विनोद गुप्ता बताते हैं कि पिछले साल मार्च में ठप हुआ कारोबार अक्टूबर में कुछ सुधरा था और इस साल जनवरी में कारोबार की गाड़ी पूरी तरह पटरी पर लौट आई थी। लेकिन मार्च एक बार फिर बुरी खबरें दे रहा है और सब कुछ थमने लगा है। व्यापारी, मजदूर और उद्योग जगत में पसरे डर के बीच कारोबार कैसे होगा।
कपड़ा कारोबारियों की प्रमुख संस्था भारत मर्चेंट चैंबर्स के ट्रस्टी राजीव सिंगल अफवाहों और बयानबाजी को कारोबार की बिगड़ती हालत के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि चरमराई अर्थव्यवस्था के बीच राज्य में पूर्ण लॉकडाउन मुमकिन ही नहीं है और न ही सरकार ऐसा करेगी। मगर नेताओं के बयान और अफवाहों से लोग घबरा गए हैं और मजदूर भाग रहे हैं। मजदूरों के पलायन के साथ ही खुदरा बिक्री 50 फीसदी तक गिर गई है। कोरोना जांच अनिवार्य कर दिए जाने से दूसरे शहरों के कारोबारी भी मुंबई नहीं आ रहे हैं, जिसका असर कारोबार पर पड़ रहा है। सिंगल कहते हैं, 'अप्रैल, मई और जून के महीने कपड़ा कारोबार के लिए सबसे अहम होते हैं। पिछले साल की मार तो कारेाबारी किसी तरह झेल गए मगर इस बार तो छोटे कारोबारी सड़क पर ही आ जाएंगे। इसलिए सरकार को भी लॉकडाउन के बजाय महामारी पर नियंत्रण के दूसरे उपाय सोचने चाहिए।'
लॉकडाउन की मार कमोबेश सभी तरह के उद्योग पर पड़ी थी मगर होटल और पर्यटन उद्योग का तो भ_ा ही बैठ गया था। भारतीय होटल और रेस्टॉरेंट एसोसिएशन (आहार) के सचिव निरंजन शेट्टी कहते हैं कि कोरोना ने उनके कारोबार में ग्रहण लगा दिया है। सरकार स्थिति स्पष्ट नहीं करती, जिससे अफवाहें फैल रही हैं और कारोबार उनका शिकार बन रहा है। सरकार ने अक्टूबर में होटल दोबारा खोलने की इजाजत दी थी और सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए कारोबार दोबारा पैरों पर खड़ा हो रहा था मगर अब रात का कफ्र्यू लगा दिया गया। होटलों और रेस्तरां में रात आठ बजे ग्राहक आना शुरू होते हैं और सरकार ने आठ बजे होटल बंद करने का फरमान जारी कर दिया है। ऐसे में घाटा झेलने से अच्छा है रेस्तरां बंद ही कर दिए जाएं। कर्मचारियों को रोककर रखना भी होटल-रेस्तरां उद्योग के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। शेट्टी कहते हैं कि सरकार जिम्मेदार नहीं लग रही, जिससे लोगों में डर फैल गया है और वे अपने घरों की ओर भाग रहे हैं।
पर्यटन पर पड़ी मार का असर केवल होटलों और रेस्तरां तक ही सीमित नहीं रहा था। टूर गाइड और फोटोग्राफर जैसे छोटे धंधे वालों का भी दीवाला निकल गया था। मुंबई में दिसंबर से फरवरी के बीच पर्यटकों की आवाजाही बढऩे से उनमें से कुछ काम पर लौटे थे मगर मार्च में मरीजों की संख्या बढऩे के साथ पर्यटक मुंह मोड़ गए हैं। गेटवे ऑफ इंडिया पर फोटोग्राफी कर अपना घर चलाने वाले अमित सिंह कहते हैं 'गेटवे ऑफ इंडिया पर करीब 225 फोटोग्राफर हैं। दिसंबर से फरवरी के बीच सबको दोबारा अच्छा काम मिलने लगा था मगर मार्च में पर्यटकों की संख्या कम होने लगी और काम भी घट गया। परेशान होकर करीब 40 फीसदी फोटोग्राफर गांव लौट गए हैं और जो हैं, उनका काम भगवान भरोसे ही चल रहा है।' टूर-ट्रैवल का काम करने वाले विनय भी मायूस हैं। उनका कहना है कि इस समय लोग मुंबई आना नहीं चाह रहे हैं। इसलिए काम जिस तेजी से पटरी पर लौटा था, उससे दोगुनी तेजी से उतर गया है।
कारोबारी परेशान हैं मगर सरकार के लिए कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर रोकना सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार कह रही है कि नियमों की अनदेखी से मरीजों की संख्या दोबारा बढ़ी है, इसलिए लॉकडाउन मजबूरी है। मगर छोटे कारेाबारियों के साथ ही बड़े उद्योगपति भी सरकार की इस बात से सहमत नहीं दिख रहे। महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने राज्य के मुख्यमंत्री कार्यालय को टैग करते हुए ट्वीट किया कि लॉकडाउन की वजह से गरीब जनता को ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें प्रवासी मजदूर और छोटे व्यापारी शामिल होते हैं। इसलिए लॉकडाउन के बजाय अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान देकर उन्हें बेहतर करने के उपाय करने चाहिए ताकि वायरस की वजह से मृत्यु दर में कमी आए।
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