बढ़ते संक्रमण का दंश झेल रहा पुणे | |
अभिषेक वाघमारे / 04 02, 2021 | | | | |
पुणे की सड़कों पर ऐंबुलेंसों के विलाप करते सायरन सुनाई देते हैं। ये ऐंबुलेंस रोगियों को शहर के निकटतम अस्पतालों में ले जाती हैं, जो अब वैश्विक महामारी कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश में सबसे अधिक प्रभावित है। संक्रमित और अस्पताल में भर्ती किए जाने वाले लोगों की संख्या हर रोज बढ़ रही है।
पुणे की 31 लाख की आबादी के लिहाज से एक दिन में प्रति 10 लाख 1,500 मामले सामने आ रहे हैं। (पुणे शहर में कोविड से मरने वालों की संख्या पिछले कुछ दिनों से 25 और 30 के बीच चल रही है) मुंबई में इस बीमारी का प्रसार इसके मुकाबले कम है- प्रतिदिन 7,000 मामले अथवा प्रति 10 लाख 600 मामले। यह रिपोर्ट लिखे जाने के समय पुणे में वेंटिलेटर के साथ अस्पताल का केवल एक बिस्तर ही उपलब्ध था। यह स्थिति तब है कि जब 10 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण किए जाने के साथ शहर में प्रतिरक्षण की गति कथित तौर पर मुंबई से अधिक तेज रही है।
आसमान छूते मामलों की संख्या के साथ ही कंटेनमेंट के उपायों को जोरदार तरीके से अपनाया जा रहा है। लेकिन कंटेनमेंट की रणनीति पिछले साल के मुकाबले बदल चुकी है। जहां एक ओर पहले पूरा इलाका ही सील किया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर इस बार कोविड मामलों वाली विशिष्ट इमारतों या हाउसिंग सोसाइटियों को ही कंटेनमेंट क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया जा रहा है। मात्र एक महीने पहले कंटेनमेंट क्षेत्रों की जो संख्या शून्य थी, वह अब बढ़कर 237 हो चुकी है।
पुणे नगर निगम (पीएमसी) में बिबवेवाडी वार्ड के सहायक आयुक्त गणेश सोनूने कहते हैं 'अगर हमारे यहां किसी इमारत में कोविड-19 से संक्रमित पांच से अधिक या किसीहाउसिंग सोसाइटी में 20 से अधिक मामले हों, तो हम उन्हें सूक्ष्म कंटेनमेंट क्षेत्र घोषित कर देते हैं।'
बिबवेवाडी वार्ड में 80 अलग-अलग इमारतों के एक समूह महेश सहकारी हाउसिंग सोसाइटी को 15 मार्च को सूक्ष्म कंटेनमेंट क्षेत्रघोषित किया गया था। लेकिन इस क्षेत्र के संबंध में और कुछ भी असामान्य बात नहीं है। इस हाउसिंग सोसाइटी के बाहर की दुकानें और चाय बेचने वाले सामान्य रूप से अपना काम करते हैं।
कई लोगों को तो यह भी नहीं मालूम है कि उनके आसपास कोई कंटेनमेंट क्षेत्र है। इस क्षेत्र में एक मेडिकल दुकान चलाने वाले प्रवेश कहते हैं, 'हर कोई सवेरे 7 बजे से रात 8 बजे की अवधि का पालन कर रहा है। यही बात है। लेकिन हम रात 10 बजे तक खोले रखते हैं। पिछले सप्ताह गैर-जरूरी प्रतिष्ठानों को रात 8 बजे बंद करने के लिए कहा गया था, जबकि पहले रात 11 बजे का निर्देश था।'
नगर निगम के अधिकारी कहते हैं कि इन रणनीतियों को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनाया गया है कि आर्थिक गतिविधि पर असर न पड़े।
पुणे भी अपना टीकाकरण अभियान तेज करने का प्रयास कर रहा है, जो इस वैश्विक महामारी का प्रसार रोकने के लिए सबसे कारगर उपायों में से एक है। शहर में इसकी 10 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण किया जा चुका है और 3,10,000 से अधिक लोग इस टीके की कम से कम एक खुराक ले चुके हैं। लेकिन टीकाकरण के इस प्रयास को दो बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, मांग के साथ-साथ आपूर्ति की समस्या।
युगपुरुष छत्रपति शिवाजी टीकाकरण केंद्र होली के दिन दोपहर के भोजन उपरांत सत्र में तकरीबन खाली हो गया था। नगर निगम द्वारा संचालित इस चिकित्सा केंद्र के प्रतिनिधि डॉक्टर सुमित मेश्राम का कहना है, 'हमारे यहां सुबह का सत्र खचाखच था, लेकिन होली की वजह से दोपहर में ज्यादा लोग नहीं आए हैं।' उस दिन इस केंद्र में 146 लोगों को टीका लगाया गया था, जबकि मार्च में अन्य दिनों में औसतन 200 लोगों को टीका लगाया था।
पुणे में नगर निगम के एक अन्य टीकाकरण केंद्र- प्रेमचंद ओसवाल अस्पताल में टीकाकरण का प्रबंधन करने वाले डॉ. आदित्य फड़के कहते हैं कि लोगों में टीके को लेकर कुछ झिझक भी है। दुष्प्रभाव के डर ने भी कई लोगों को इंजेक्शन लेने के लिए आगे आने से रोक रखा है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया 'मैं यहां आने वाले लोगों को शिक्षित करने का प्रयास कर रहा हूं, ताकि जब वे लोग वापस जाएं, तो अपने दोस्तों और पड़ोसियों को यह संदेश दे सकें।'
नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि वे यह बात सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रत्येक टीकाकरण केंद्र में उपलब्ध सभी शीशियों का इस्तेमाल कर लिया जाए।
पीएमसी की सहायक चिकित्सा अधिकारी वैशाली जाधव कहती हैं, 'निजी अस्पतालों में टीकाकरण समेत हमारी क्षमता पूरी तरह पर्याप्त है। उदाहरण के लिए दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल एक दिन में 1,000 लोगों का टीकाकरण कर सकता है। कमला नेहरू अस्पताल 1,100 लोगों का। लेकिन टीकों की उपलब्धता आवश्यकता के अनुरूप नहीं है।'
वैशाली कहती हैं कि टीकों की आपूर्ति तीन से चार दिनों में एक बार की जा रही है, लेकिन शहर को इससे कहीं ज्यादा की जरूरत है।
इस बीच यह वैश्विक महामारी उग्र होती जा रही है। संपूर्ण पुणे जिले के मामले में, जहां ग्रामीण आबादी काफी है, दूसरी लहर पहली वाली के मुकाबले बदतर हो चुकी है। जहां वर्ष 2020 के दौरान 86 दिनों में दैनिक मामले 400 से बढ़कर 6,000 हुए थे, वहीं इस बार ये मामले 50 से भी कम दिनों में 400 से बढ़कर 8,000 से भी ज्यादा हो चुके हैं। किसी को नहीं मालूम कि मामलों में गिरावट आनी कब शुरू होगी।
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