टीके की बरबादी रोकने के जतन | सोहिनी दास, विनय उमरजी और टी ई नरसिम्हन / मुंबई/अहमदाबाद/चेन्नई March 21, 2021 | | | | |
देश में कोविड-19 के मामलों में एक बार फिर तेज इजाफा होने से इसके टीके की मांग भी बेतहाशा बढऩे लगी है। बढ़ती मांग के बीच पर्याप्त टीके उपलब्ध कराने के लिए इस बात का खास खयाल रखा जा रहा है कि टीका बरबाद नहीं हो। इसके लिए उपाय भी किए जा रहे हैं मसलन भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन के एक पैक में अब 20 के बजाय केवल 10 खुराक दी जा रही हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) का कोविशील्ड टीका भी 10 खुराक के पैक में आ रहा है। यूनिसेफ ने टीकों की बरबादी पर 2009-10 में एक अध्ययन किया था, जिसके मुताबिक एक पैक में अधिकतम 5 खुराक ही हों तो बरबादी काफी हद तक रुक सकती है।
शीशी खुली हो या बंद, टीके कई कारणों से बरबाद हो सकते हैं। शीशी खुलने के बाद पूरा टीका चार घंटे के भीतर इस्तेमाल नहीं हुआ तो बची खुराक बरबाद हो जाती है। अभी तक देश में 6.5 फीसदी कोविड-19 टीका बरबाद हो रहा है। लेकिन राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान में होने वाली बरबादी से यह बहुत कम है। यूनिसेफ के एक अध्ययन के अनुसार भारत के पांच राज्यों में 27 से 61 फीसदी टीके बरबाद हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में बनने वाले टीकों में से आधे बरबाद हो जाते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार महामारी जैसी आपात स्थिति में टीकों की बरबादी रोकने पर ही ध्यान होना चाहिए क्योंकि इसकी जरूरत किसी भी समय बढ़ सकती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर ने बताया कि बीसीजी का टीका सबसे अधिक बरबाद होता था क्योंकि नियम के मुताबिक केवल एक शिशु के आने पर भी टीके की शीशी खोलनी ही पड़ती थी और बाकी खुराक बरबाद हो जाती थी। वह कहते हैं, 'यह महामारी है। इसलिए 6.5 फीसदी छोडि़ए एक भी टीका बरबाद नहीं होने दिया जाना चाहिए।' मावलंकर का सुझाव है कि किसी भी समुदाय या आयु वर्ग से उन लोगों की प्रतीक्षा सूची बनानी चाहिए, जो कई तरह के लोगों से मिलते हैं। अगर टीका बरबाद होता दिख रहा हो तो उन्हें बुलाकर बची खुराक से टीका लगा देना चाहिए।
राज्य कस रहे कमर
कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 टीके की बरबादी रोकने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी। उसके बाद गुजरात मुस्तैद हो गया है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सबसे पहले भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के हर पैक में 20 से घटाकर 10 खुराक कर दी गई हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'अगर 13 से 15 लोग टीका लगवाने आते थे तो बाकी खुराक बरबाद हो जाती थी क्योंकि शीशी खुलने के बाद चार घंटे तक ही इस्तेमाल की जा सकती है। इससे बचने के लिए ही हर पैक में 20 के बजाय केवल 10 खुराक दी जा रही हैं।'
शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में टीके बरबाद होने की आशंका अधिक रहती है। इससे निपटने के लिए स्थानीय अधिकारियों को अधिक से अधिक लोगों को टीका केंद्रों तक लाने के लिए कहा गया है। तमिलनाडु में केवल 3.5 फीसदी टीका बरबाद हो रहा है, जबकि देश भर में औसतन 6.5 फीसदी बरबादी हो रही है। तेलंगाना में 17.6 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 11.6 फीसदी और कर्नाटक में 6.9 फीसदी टीका बरबाद हो रहा है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने टीका बिल्कुल भी बरबाद नहीं होने देने की हिदायत दी है। राज्य में 5.2 फीसदी टीके बरबाद होते हैं, लेकिन पुणे जैसे कुछ जिलों में बरबादी 8 फीसदी है।
गुजरात में टीकाकरण के ताजा चरण में मांग काफी बढ़ गई है। राज्य में 5,400 टीकाकरण केंद्र बनाए हैं जिनमें 2,500 काम कर रहे हैं। महीने के शुरू में 600-700 केंद्रों पर ही कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा था। मांग का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात को शुक्रवार को ही 13.5 लाख अतिरिक्त खुराक दी गईं, जिससे मौजूदा उपलब्ध भंडार बढ़कर 30 लाख हो गया है।
दूसरे राज्यों की तरह गुजरात भी रोजाना 3 लाख टीके लगाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। महाराष्ट्र में करीब 31 लाख खुराक उपलब्ध हैं, जिनसे 10 दिन तक रोजाना 3 लाख टीके लगाए जा सकते हैं। इसी तरह तमिलनाडु में पिछले तीन दिनों में 1 लाख से अधिक खुराक लगाई जा चुकी है, जो शुरुआत में यह संख्या केवल 10,000 तक ही सीमित थी।
टीकाकरण अभियान जोर-शोर से चलाने के लिए तमिलनाडु में 2,000 नए छोटे क्लिनिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले जा रहे हैं। इसके अलावा अस्थायी अस्पताल भी बनाए जाएंगे। राज्य में 3,400 केंद्रों पर टीके लगाए जा रहे हैं, जिनमें 761 निजी अस्पताल भी हैं। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि राज्य सरकार निजी अस्पतालों की संख्या बढ़ाना चाहती है और टीकाकरण अभियान का अनुभव रखने वाले रोटरी क्लब जैसे संगठनों की सेवाएं लेने की योजना बना रही है।
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