सरकार ने देश में डिस्प्ले फैब्रिकेशन संयंत्र स्थापित करने के लिए वैश्विक और भारतीय कंपनियों से अभिरुचि पत्र आमंत्रित किए हैं। इनमें एलसीडी, ओलेड, अनोलेड या क्यूलेड आधारित डिस्प्ले फैब्रिकेशन संयंत्र स्थापित किया जाना शामिल है। अभिरुचि पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि 30 अप्रैल, 2021 रखी गई है। डिस्प्ले फैब्रिकेशन संयंत्र में एक जटिल तरीके से स्क्रीन बनाए जाते हैं, जिसमें ट्रांजिस्टर सेल के साथ ग्लास को एक के ऊपर एक रखकर तैयार करने और मिश्र धातु और सिलिकन का इस्तेमाल करने के अलावा अन्य काम किए जाते हैं, जिसे हम डिस्प्ले कहते हैं। इसमें न्यूनतम 2 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होती है। डिस्प्ले असेंबली प्लांट में ग्लास असेंबल करने के साथ विभिन्न अन्य कंपोनेंट की जरूरत होती है, जिससे स्क्रीन तैयार होता है। ज्यादातर फैब प्लांट में एक असेंबली प्लांट भी होता है। भारत अपने डिस्प्ले फैब की कुल जरूरतों का पूरा का पूरा आयात करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और जापान की कुछ कंपनियों के पास ही डिस्प्ले फैब टेक्नोलॉजी है। उनका कहना है कि एलसीटी फैब मार्केट में चीन का दबदबा है और 70 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ कंपनियों ने इसमें 50 से 70 अरब डॉलर निवेश किया है। प्रीमियम ओएलईडी बाजार पर इस समय सैमसंग और एलजी का कब्जा है। बहरहाल चीन ने भी इसमें बड़ा निवेश किया है। अन्य प्रमुख कारोबारियों में चीन की कंपनी जैसे बीओई डिस्प्ले और टीसीएल और ताइवान की कंपनी जैसे इनोलक्स और जापान की कंपनी तोशिबा और शार्प शामिल हैं। बहरहाल भारत मेंं कुछ असेंबली इकाइयां हैं, जिनमें होलीटेक जैसी चीनी कंपनियां ग्लास का आयात करती हैं। खबरों के मुताबिक सैमसंग भी करीब 5,000 करोड़ रुपये निवेश करके उत्तर प्रदेश में डिप्ले प्लांट स्थापित कर रही है, जो प्राथमिक रूप से मोबाइल के लिए है। हालांकि इसका विस्तृत ब्योरा नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि प्रविष्टि की सूचना के आधार पर देश में डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिए योजना तैयार की जा सकती है। यह कदम केंद्र सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के मुताबिक है, जिसका मकसद भारत को निर्यात का केंद्र बनाना और इलेक्ट्रॉनिक्स में मूल्यवर्धन करना है। डिस्प्ले फैब स्थापित किया जाना भारत के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के मुताबिक है। चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है और बड़ी मात्रा में इसे तैयार कर रहा है। बगैर घरेलू विनिर्माण सुविधा बढ़ाए भारत के पास संभवत: चीन पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। आईसीईए के एक अधिकारी ने कहा कि बड़े कारोबारी घराने जापान और ताइवान की कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम बनाकर तकनीक हासिल कर सकते हैं। आईसीईए के अधिकारी ने कहा, 'किसी भी विनिर्माण संयंत्र में भारी न्यूनतम निवेश की जरूरत होती है और ऐसा करने पर न सिर्फ भारत की जरूरतें पूरी हो सकती हैं, बल्कि वैश्विक निर्यात भी हो सकता है। इसलिए इसे प्रतिस्पर्धी होना होगा। पूरी दुनिया में ऐसे रणनीतिक क्षेत्रोंं मेंं सरकार आगे आती हैं और मदद करती हैं।' मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक भारत में डिस्प्ले का बाजार बढ़कर 7 अरब डॉलर का हो गया है, लेकिन यह 2025 तक दोगुने से ज्यादा बढ़कर 15 अरब डॉलर हो जाएगी। खासकर मोबाइल उपकरणों, लैपटॉप आदि के उत्पादन और निर्यात बढऩे की वजह से यह उम्मीद की जा रही है। मोबाइल उपकरण की सामग्री की लागत में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी डिस्प्ले की होती है, जबकि एसलीडी और एलईडी टेलीविजन सेट के मामले में डिस्प्ले की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत तक है। मंत्रालय का यह भी कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्षेत्र 10 प्रतिशत लागत अक्षमता के कारण प्रभावित है। डिस्प्ले विनिर्माण पूंजी केंद्रित प्रवृत्ति का होने के कारण इस उद्योग को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है, जिससे कि भारत में डिस्प्ले फैब संयंत्रों की स्थापना की जा सके। मंत्रालय का कहना है कि संभावित आवेदकों के पास डिस्प्ले फैब्स के विनिर्माण के लिए संबंधित आईटी और टेक्नोलॉजी की जरूरत होगी और वह साझेदार के साथ संयुक्त उद्यम भी हो सकता है। या आवेदक को इसके लिए तैयार रहना होगा कि वह तकनीक रखने वाले के साथ खरीद समझौता करे। इसके अलावा आवेदक को वाणिज्यिक डिस्प्ले फैब फैसेलिटी चलाने का 5 साल अनुभव होना चाहएि। या अगर वह तकनीक खरीदने के लिए समझौता करता है तो उस कंपनी के पास 5 साल का अनुभव होना चाहिए। आवेदक को अपने संयंत्र, निवेश, तकनीक, विशेषताओं और इसके लिए केंद्र या राज्य सरकारों से समर्थन की जरूरतों के बारे मेंं प्राथमिक परियोजना रिपोर्ट देनी होगी। यह अनुदान राशि, व्यवहार्यता अंतर वितत्तपोषण दीर्घावधि इक्विटी या दीघार्वधि ब्याज मुक्त ऋण, कर प्रोत्साहन, नियामकीय छूट और बुनियादी ढांचा समर्थन के रूप में हो सकता है। राज्यों से वे पूंजी सब्सिडी, भूमि के मूल्य में छूट, पानी व बिजली में छूट के अलावा अन्य मांग कर सकते हैं।
