बॉन्ड पर नियम वापस ले सेबी | चिराग माडिया और निकुंज ओहरी / मुंबई/नई दिल्ली March 12, 2021 | | | | |
वित्त मंत्रालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि सभी पर्पेचुअल बॉन्ड की परिपक्वता अवधि 100 साल रखने का नियम वापस ले लिया जाए। पत्र में कहा गया है कि मूल्यांकन से संबंधित प्रावधान नुकसान करेगा और इसके कारण कंपनियों की उधारी की लागत उस समय बढ़ सकती है, जब अर्थव्यवस्था सुधार के शुरुआती दौर में है।
पत्र में कहा गया है, 'बैंकों की पूंजी की आवश्यकता और पूंजी बाजार से उसे जुटाने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अनुरोध किया जाता है कि सभी पर्पेचुअल बॉन्ड की अवधि 100 साल मानने के संशोधित मूल्यांकन नियमों को वापस लिया जाए।'
बाजार नियामक ने इसी बुधवार को विशेष फीचरों वाले ऋण साधनों जैसे अतिरिक्त टीयर 1 (एटी1) बॉन्ड में म्युचुअल फंडों के निवेश पर अंकुश लगाया था। सेबी ने एक परिपत्र में कहा था कि कोई भी म्युचुअल फंड किसी एक ही जारीकर्ता के एटी1 बॉन्ड में 10 फीसदी से अधिक निवेश नहीं कर सकता है। 10 फीसदी की यह हद फंड की सभी योजनाओं को मिलाकर तय की गई है। इतना ही नहीं किसी एक योजना के तहत ऐसे साधन में निवेश कुल संपत्ति के 10 फीसदी से कम होना चाहिए और किसी एक जारीकर्ता के बॉन्ड में कोई एक योजना 5 फीसदी से अधिक निवेश नहीं कर सकती है।
परिपत्र में बॉन्ड के मूल्यांकन के लिए सभी तरह के पर्पेचुअल बॉन्ड की परिपक्वता अवधि जारी होने की तारीख से 100 तक साल माने जाने पर ही विवाद है। फिलहाल म्युचुअल फंड पर्पेचुअल बॉन्ड की कीमत उसकी कॉल डेट के आधार पर आंकते हैं। कॉल डेट वह तारीख होती है, जब जारीकर्ता बॉन्ड वापस ले सकता है और निवेशकों को रकम चुका
सकता है। म्युचुअल फंड उद्योग के भागीदारों का कहना है कि मूल्यांकन में बदलाव से प्रतिफल बढ़ जाएगा, जिससे निवेशकों को नुकसान होगा और डेट योजनाओं से निकासी बढ़ जाएगी।
वित्त मंत्रालय का कहना है, 'एटी1 बॉन्ड का मूल्यांकन अब तक उसी अवधि की अल्पावधि सरकारी प्रतिभूतियों के आधार पर किया जाता था। अब उन्हें 100 साल के बॉन्ड की तरह आंका जाएगा, जिसके लिए कोई बेंचमार्क ही नहीं है। इसमें मार्क टु मार्केट नुकसान बहुत अधिक होगा और बॉन्ड का मूल्य एक तरह से शून्य के करीब रह जाएगा।'
पर्पेचुअल बॉन्ड नियत आय वाली प्रतिभूति है, जिसकी कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है। यह बॉन्ड तभी भुनाया जाता है, जब जारीकर्ता इसे वापस लेता है। जारीकर्ता खास तौर पर बैंक इस पर डेट प्रतिभूतियों की तुलना में कुछ ज्यादा ब्याज देते हैं। म्युचुअल फंड पर्पेचुअल बॉन्ड के सबसे बड़े निवेशकों में शामिल हैं और फिलहाल करीब 90,000 करोड़ रुपये के एटी1 बॉन्ड में इनका निवेश 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
वित्त मंत्रालय को बड़ी चिंता इस बात की है कि बाजार नियामक की शर्तों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पूंजी के लिए सरकार पर अधिक निर्भर हो जाएंगे। सरकार मानती है कि बैंकों को बाजार से पूंजी जुटानी चाहिए।
इस बारे में वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'चालू वित्त वर्ष में सरकार ने सार्वजनिक बैंकों में पूंजी डालने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के प्रावधान किए हैं और अगले वित्त वर्ष के लिए भी इतनी ही रकम रखी गई है। कोविड-19 से पैदा चुनौतियों को देखते हुए ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि सरकार बैंकों को उबारने के लिए रकम जरूर देगी।' मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि एमएफ पोर्टफोलियो में ऐसे बॉन्ड से जुड़े जोखिम कम करने के लिए जारी निर्देश बरकरार रखे जा सकते हैं। एमएफ उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि वित्त मंत्रालय और नियामक नियमित अंतराल पर एक दूसरे संवाद करते रहते हैं लेकिन पिछले कई वर्षों में यह पहला मौका है जब दोनों के बीच मतभदे खुलकर सामने आ गए हैं। म्युचुअल फंडों के संगठन एम्फी उचित मूल्यांकन पर सेबी के रुख का समर्थन कर रहा है। शुक्रवार को एम्फी की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि निवेशकों के लिए एक उचित मूल्यांकन पर पहुंचने के लिए बाजार निर्धारित मूल्य सबसे अच्छा होता है। एम्फी ने कहा कि सेबी के दिशानिर्देशों के अनुरूप वह एक सक्षम मूल्यांकन प्रक्रिया विकसित करने पर लगातार काम किया है।
म्युचुअल फंड की कारोबारी इकाई इस परिपत्र के क्रियान्वयन की राह आसान बनाने के लिए सेबी के साथ लगातार चर्चा कर रहा है। हालांकि इस उद्योग के कई वरिष्ठ लोगों का कहना है कि सेबी और एमएफ उद्योग के बीच पिछली बैठकों में मूल्यांकन के संबंध में कोई चर्चा नहीं हुई थी। एमएफ उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि नियामक की आलोचना करने का यह सही समय नहीं है और उम्मीद की जानी चाहिए कि कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा।
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