भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के प्रमुख का कहना है कि बैंक कर शुध्द ब्याज मार्जिन (एनआईएम) मार्च 2009 की तिमाही में घट कर तीन प्रतिशत हो सकता है जबकि दिसंबर 2008 की तिमाही में यह 3.15 प्रतिशत था। हालांकि एनआईएम में आई यह गिरावट बहुत अधिक नहीं थी लेकिन यह दुख की बात है कि बैंक पिछले छह महीनों से ब्याज दरों में चल रहे उतार-चढ़ावों का प्रबंधन सक्षमतापूर्वक नहीं कर पाई। यह देखते हुए कि इसके पास भारी मात्रा में पैसे आ रहे हैं- लगभग 1,000 करोड रुपये प्रति दिन- इसे जमा दरों में समय पर कमी करना चाहिए था। दिसंबर 2008 की तिमाही में भी बैंक का ऋण-जमा अनुपात घट कर 74 प्रतिशत के स्तर पर आ गया था जबकि इससे पिछली तिमाही में यह 80 प्रतिशत था। तब से बैंक ने उधारी देने में सुस्ती बरती और ऋण में वृध्दि की दर घट कर वर्तमान में लगभग 19 से 20 प्रतिशत हो गई है। एसबीआई के ऋण-बुक में भी ज्यादा बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है। बैंक के अध्यक्ष ने खुद ही कहा था कि मॉर्टगेज और ऑटो ऋण के ब्याज दर घटाने की प्रतिक्रिया खास उत्साहजनक नहीं रही। इसलिए, यह समझना मुश्किल है कि बैंक ब्याज दरों में दोबारा कटौती करने पर विचार क्यों कर रहा है जब इसकी ब्याज दरें पहले ही प्रतिस्पध्र्दात्मक हैं। निश्चय ही, ऋण के कारोबार में इससे तेजी आएगी लेकिन फंड की लागत कम होने के बावजूद एनआईएम पर दबाव बने रहने की संभावना है। एसबीआई के प्रमुख कहते हैं कि बैंक कए एनआईएम इस वर्ष तीन प्रतिशत रहना चाहिए लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह घट कर 2.7 प्रतिशत के स्तर पर आ सकता है। इसके अतिरिक्त, बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए एसबीआई ने तीन सालों में, साल 2008-09 तक, आक्रामक रूप से कर्ज दिया है। खास तौर से छोटे और मझोले उद्योगों का इसने तरजीही तौर पर ऋण दिया है। इसके पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा अपेक्षाकृत कम व्यवस्थित होने से गैर-निष्पादित ऋण बढ़ने की संभावना अधिक है। अगर ऐसा होता है तो बैंक को अधिक प्रावधान करने की जरूरत होगी। इसके परिणामस्वरूप, और एनआईएम की वृध्दि दर घट कर 20 प्रतिशत से कम शुल्क बढ़ कर 11 फीसदी होने के अनुमानों से साल 2009-10 के दौरान एसबीआई का शुध्द लाभ भारी दबाव में रह सकता है। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि इसके शेयरों का प्रदर्शन इस साल की शुरुआत से ही बाजार की तुलना में बुरा रहा है। जी एंटरटेनमेंट: कड़वी वास्तविकता गुरुवार को जी एंटरटेनमेंट के शेयर लगभग छह प्रतिशत लुढ़क गए। पिछले साल जुलाई में कलर्स चैनल लॉन्च होने के बाद से इस ब्रॉडकास्टर के लिए समस्याएं पैदा होने लगी हैं। कुछ महीनों में ही आम हिंदी मनोरंजक चैनल (जीईसी) क्षेत्र में अपने दूसरे स्थान से नीचे आ गया। अब कलर्स स्टार प्लस से आगे निकल चुका है। 11 अप्रैल 2009 को समाप्त हुए सप्ताह में कलर्स की ग्रॉस रेटिंग प्वांइट (जीआरपी) 292 थी जबकि स्टार प्लस की 267। आमतौर पर जीआरपी बढ़ने के कुछ समय बाद विज्ञापनों के आने का दौर शुरू होता है और कलर्स का जीआरपी बरकरार रहने और दो शीर्षस्थ मनोरंजक चैनलों में स्थान पाने के बाद जल्द ही इसे अधिक कीमतों पर विज्ञापन मिलने चाहिए। इससे विज्ञापन के क्षेत्र में जी की हिस्सेदारी घट सकती है। दिसंबर 2008 की तिमाही में सालाना आधार पर जी के विज्ञापन से होने वाले लाभ में केवल दो प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी और मार्च 2009 की तिमाही में इसमें और गिरावट आ सकती है। जून 2008 की तिमाही का वक्त भी मुश्किलों का होगा क्योंकि जीईसी के क्षेत्र में चुनाव और आईपीएल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएंगे। अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण विज्ञापन पर होने वाले खर्च की वृध्दि दर 6.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है जो पिछले साल की तुलना में लगभग आधा है। इस प्रकार जी के विज्ञापन से प्राप्त होने वाला राजस्व पिछले साल मात्र 15 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। इस साल इसमें और कमी आने के आसार हैं। 128 रुपये प्रति शेयर की कीमत पर इसका कारोबार साल 2009-10 की अनुमानित आय के 14 गुना पर किया जा रहा है और यह महंगा है।
