जांच में देरी से बढ़े कोविड मामले! | अभिषेक वाघमारे / March 02, 2021 | | | | |
देश के ज्यादातर शहरी इलाकों में 60 वर्ष और इससे ज्यादा उम्र वाले लोगों की भीड़ निर्दिष्ट टीकाकरण केंद्रों पर जुट रही है, क्योंकि वेबसाइट आधारित पंजीकरण के साथ ही देश में टीकाकरण के दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीका लगवाते हुए इस चरण की शुरुआत की है।
हालांकि यहां हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन शायद हम फिर से शुरुआत वाले स्थान पर वापस जा सकते हैं। कोविड-19 की जिस दूसरी लहर की अधिक आशंका जताई जा रही थी, वह अपनी राह पर बढ़ती नजर आ रही है, क्योंकि पुष्टि वाले मामलों में दैनिक वृद्धि केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश और कुछ हद तक कर्नाटक में शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में मामलों में नई उछाल आ रही है। दरअसल दिल्ली में भी फरवरी के आखिरी सप्ताह से मामलों में हल्का-सा इजाफा दिख रहा है।
दिसंबर के पहले सप्ताह में सक्रिय मामलों की संख्या 4,00,000 थी। फरवरी के तीसरे सप्ताह में यह घटते हुए करीब 1,30,000 होने से देश में इस वैश्विक महामारी के प्रसार में गिरावट आ रही थी। इन दो महीनों के दौरान दैनिक रूप से की जाने वाली जांच 11 लाख प्रतिदिन से घटकर 6.6 लाख रह गई थी। इसके पीछे यह विचार था कि जरूरत के लिए संसाधनों को बचाया जाए। लेकिन अब सक्रिय मामले बढ़कर 1,65,000 हो गए हैं।
बाद वाली लहर की संरचना को समझना मुश्किल है। वैज्ञानिकों के राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय समूह, नगर निगम के अधिकारी, डॉक्टर और अस्पताल मास्क-शिष्टाचार तथा स्वच्छता की उपेक्षा के स्पष्ट कारणों के अलावा इस इजाफे की वजहों का पता लगाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं।
प्रति 10 लाख आबादी की जांच दर के एक सामान्य विश्लेषण के साथ-साथ इस जांच में संक्रमित रहने की दर से इस बात का संकेत मिलता है कि क्या गलत रहा होगा।
आंकड़े बताते हैं कि जांच क्षमता में कमी तथा पिछले वर्ष की उछाल और चरम के दौरान अपने संसाधन उपलब्ध कराने वाले संस्थानों की अनुपस्थिति के कारण महाराष्ट्र में संक्रमण मामले बढऩे के बावजूद जांच में देरी हुई है।
प्रथम रहने वाले स्थान महाराष्ट्र में अन्य राज्यों की तुलना में वर्ष 2020 के चरम के दौरान भी जांच स्तर कम रहा था। यहां इस्तेमाल की गई दैनिक जांच दर में आरटी-पीसीआर और ऐंटीजन जांच शामिल है जिसे राज्य में प्रति 10 लाख आबादी के आधार पर क्रियान्वित किया गया है।
लेकिन हालिया उछाल में जो बात दिखाई दे रही है, वह अधिक चौंकाने वाली है। जहां एक ओर सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों ने वर्ष 2020 के अपने चरम के बाद जांच कार्य बंद नहीं किया, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र्र जांच कार्य में और नीचे खिसक गया जो पहले से ही निम्न स्तर पर चल रहा था।
महाराष्ट्र की जांच में देरी
असल में जब फरवरी के पहले सप्ताह में जांच में संक्रमण की दर बढऩे लगी थी, तब भी महाराष्ट्र में जांच का दायरा कम हो गया था। स्वतंत्र रूप से डेटा एकत्रित करने वाले कोविड19इंडिया के विश्लेषण के आंकड़े बताते हैं कि इसमें दो सप्ताह बाद ही इजाफा होना शुरू हुआ था। यह एकमात्र ऐसी एजेंसी है जो भारत में फैली बीमारी के संबंध में संरचित डेटा प्रकाशित करती है।
केरल, कर्नाटक और दिल्ली अलग-अलग तरीके से इस वैश्विक महामारी से निपटे हैं। दिल्ली में प्रत्येक शीर्ष स्तर के बाद जांच को बढ़ा दिया गया था और उसके बाद इस स्तर को बनाए रखा गया था। केरल में यह स्तर कम नहीं हुआ, क्योंकि राज्य में लंबे समय तक हर रोज नए मामलों का पता लगता रहा। कर्नाटक में संक्रमण मामलों में लंबे समय तक स्थिरता रहने के बाद ही जांच के स्तर में कमी की गई थी।
वर्तमान में बढ़ते मामलों की अगुआई करने वाले क्षेत्र-महाराष्ट्र में पुणे डिवीजन के डिवीजनल कमिश्नर सौरभ राव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि मशीनरी को अधिक जांच की तैयारी करने के लिए कुछ वक्त चाहिए था।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 के चरम में राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) , राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान ने जांच की दिशा में बहुत योगदान दिया था। वर्तमान में एनआईवी पूरी तरह से जीनोम अनुक्रमण कार्य पर केंद्रित है।
अगर हम महाराष्ट्र के दो प्रमुख शहरों पर नजर डालें, तो हमें देश के दूसरे सबसे प्रभावित शहर पुणे में ऐसे ही प्रमाण मिलते हैं। पुणे में 3 से 15 फरवरी तक प्रति 10 लाख आबादी पर जांच का स्तर 1,299 से घटकर 762 रह गया। उस समय जांच के संक्रमण मामलों की दर 4.9 प्रतिशत से बढ़कर 11.8 प्रतिशत हो गई थी। फरवरी के दूसरे सप्ताह में ही पुणे में जांच के स्तर में इजाफा हुआ था।
एक अधिकारी ने बताया कि मौजूदा दिशानिर्देश कहते हैं कि जांच ऐसे स्तर पर होनी चाहिए कि संक्रमण मामलों की दर पांच प्रतिशत से अधिक न हो। इसका मतलब यह है कि जब संक्रमण मामलों की दर इस सीमा को पार कर गई, तब पुणे और पूरे महाराष्ट्र में जांच कार्य को बढ़ाया जाना चाहिए था, जो नहीं हुआ।
दूसरी ओर मुंबई में संक्रमण मामलों की दर में इतना ज्यादा इजाफा नजर नहीं आया। फिर भी जांच में वृद्धि कर दी गई थी। ज्यादा व्यापक स्तर पर नहीं, तो भी कुछ हद तक तो हुई ही थी, क्योंकि आर्थिक राजधानी में मामले बढऩे लगे थे।
निश्चित रूप से जांच बीमारी का प्रसार नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका नहीं है। अलबत्ता यह तत्काल कार्रवाई करने के लिए शुरुआती चेतावनी दे देता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि जांच के सही स्तर और सही तरीके के संबंध में कोई दावा करने के लिए मौजूदा आंकड़े अपर्याप्त हैं।
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