दिक्कतदेह नियम | |
संपादकीय / 03 01, 2021 | | | | |
सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) की मध्यवर्ती संस्थाओं के लिए बनने वाले नए नियम अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना का प्रसार करने के अधिकार पर बुरा असर डाल सकते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं और डिजिटल मीडिया आचार संहिता के लिए दिशानिर्देश ) नियम, 2021 सरकार को व्यापक अधिकार देता है जिसके तहत वह ऑनलाइन खबरों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद सामग्री को सेंसर कर सकती है। सरकार इनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकती है।
ये दिशानिर्देश व्हाट्सऐप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसी संदेश सेवाओं पर भी लागू होते हैं और उन्हें अपना इन्क्रिप्शन (कूटलेखन) समाप्त करना होगा। नए नियम अनुपालन की लागत बढ़ाने वाले हैं क्योंकि इन प्लेटफॉर्म से शिकायतों के निपटान के लिए जटिल प्रणाली अपनाने को कहा गया है। डिजिटल समाचार प्रकाशकों और स्ट्रीमिंग सेवाओं को तीन स्तरीय ढांचे के अधीन किया जाएगा। यहां भी एक सरकारी समिति को विशेषाधिकार हासिल होंगे जिसके समक्ष अपील की जा सकेगी। यह अभिव्यक्ति की आजादी के बुनियादी अधिकार के खिलाफ है। आईटी ऐक्ट, 2000 का विस्तार करके डिजिटल समाचार माध्यमों को उसके नियामकीय दायरे में लाया गया है। इसके लिए जरूरी कानूनी कदम नहीं उठाए गए हैं और इसे चुनौती दी जा सकती है। विभिन्न प्लेटफॉर्म को नोटिस के बाद सामग्री हटाने के लिए 36 घंटे का समय दिया गया है जबकि पहले यह 48 घंटे था। तीन स्तरीय व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर डिजिटल माध्यमों से एक आचार संहिता का पालन करने को कहा गया है। उदाहरण के लिए भारतीय प्रेस परिषद द्वारा तैयार पत्रकारीय आचरण मानकों का पालन या केबल टेलीविजन (नियमन) अधिनियम की कार्यक्रम संहिता का पालन। इसमें नकारात्मक विषयवस्तु की सूची (यौनसंबंधी और हिंसा से जुड़ी) भी दी गई है जिसे प्रकाशित नहीं किया जाएगा। कहा गया है कि यदि किसी को किसी प्रकाशक द्वारा प्रकाशित सामग्री से आपत्ति है तो वह प्रकाशक द्वारा स्थापित शिकायत निवारण व्यवस्था में शिकायत कर सकता है। बड़े प्लेटफॉर्म जिनके पांच करोड़ से अधिक उपयोग करने वाले हैं, उन्हें एक मुख्य अनुपालन अधिकारी और एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा जो कानून प्रवर्तन संस्था के साथ तालमेल करेंगे। शिकायतों को पहले निवारण अधिकारी देखेंगे। यदि शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता है तो शिकायत आगे स्वनियमन वाली संस्था और फिर सरकारी व्यवस्था तक जाएगी। एक अंतरविभागीय समिति मामले की जांच करेगी। अनुपालन के बोझ के अलावा शिकायत निवारण प्रणाली सोशल मीडिया मंच के अंतहीन दुरुपयोग की राह भी खोलती है। मेसेज भेजने वाली ऐप्लीकेशंस को अदालती आदेश पर किसी संदेश को सबसे पहले भेजने वाले व्यक्ति की पहचान करनी होगी। यानी व्हाट्सऐप और सिग्नल से कहा जा सकता है कि वे चुनिंदा वायरल संदेशों को सबसे पहले भेजने वाले का पता लगाएं। एंड टु एंड इन्क्रिप्शन (संदेश को गोपनीय बनाने वाले) के मानक के चलते यह कठिन है। ऐसे में सरकारी आदेश पर यह गोपनीयता भंग करनी होगी। ये नए नियम सरकार को पसंद न आने वाली सामग्री प्रतिबंधित करने में मददगार हैं लेकिन इन्क्रिप्शन भंग करना भी निजता का हनन है। ध्यान देना चाहिए व्यक्तिगत डेटा का संरक्षण करने वाला कानून तीन साल से अधिक समय से लंबित है। ध्यान रहे सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2017 में निजता को बुनियादी अधिकार बताने वाला ऐतिहासिक निर्णय दिया था।
इससे इनकार नहीं कि डिजिटल माध्यम विवादित सामग्री दिखा सकते हैं और वे झूठी खबरें फैलाने का जरिया हो सकते हैं। सत्ताधारी संस्थान समेत हर राजनीतिक प्रतिष्ठान डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए करता है। हालांकि ये नियम झूठी खबरों पर नियंत्रण की आड़ में अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित करने की दिशा में बढऩे वाले हैं। ये दिशानिर्देश एक मनमानी व्यवस्था बनाएंगे जिसे चुनिंदा ढंग से इस्तेमाल कर राजनीतिक विरोधियों को प्रताडि़त किया जा सकता है और आलोचकों को चुप कराया जा सकता है। किसी लोकतांत्रिक देश को ऐसे कानून नहीं बनाने चाहिए।
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