जीडीपी और जीवीए क्यों दे रहे आर्थिक रिकवरी के अलग संकेत? | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली March 01, 2021 | | | | |
वित्त वर्ष 21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के आंकड़े आर्थिक रिकवरी के विरोधाभासी संकेत दे रहे हैं। दरअसल इन दोनों आंकड़ों की परिभाषा में अंतर की वजह से ऐसा हो रहा है।
उदाहरण के लिए दूसरे अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी में 8 प्रतिशत गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जो 7.7 प्रतिशत के पहले अग्रिम अनुमान से तेज है। वहीं दूसरी ओर जीवीए अब 6.5 प्रतिशत गिरने का अनुमान है, जो पहले अग्रिम अनुमान 7.2 प्रतिशत की तुलना में कम है।
साथ ही जहां चौथी तिमाही में जीडीपी में 1.1 प्रतिशत गिरावट का अनुमान लगाया गया है, वहीं दूसरे अग्रिम अनुमान में जीवीए में इसी तिमाही में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
यह अंतर दरअसल 2015 जीडीपी की परिभाषा में बदला की वजह से आया है, जो 2011-12 आधार वर्ष के मुताबिक 2012-13 से प्रभावी है। इसके बाद 2011-12 के संशोधित आधार के मुताबिक भी पुराने आंकड़े मुहैया कराए गए।
जीडीपी की संशोधित विधि में न सिर्फ आधार वर्ष में बदलाव हुआ है, बल्कि इसकी गणना का तरीका भी बदला है।
पहले की विधि
2015 के पहले जीडीपी की गणना में फैक्टर कॉस्ट और बाजार मूल्य का इस्तेमाल किया जाता था। स्थिर मूल्य पर जीडीपी में वृद्ध्रि का इस्तेमाल फैक्टर कॉस्ट में होता था। फैक्टर कॉस्ट का मतलब है कि उत्पादन के सभी कारकों पर आने वाली कुल लागत, जिसका इस्तेमाल वस्तु एवं सेवा के लिए होता है। इसमें कोई कर शामिल नहीं होता है। अगर इसमें अप्रत्यक्ष कर जोड़ दिया जाए व सब्सिडी बाहर कर दी जाए तो इसका परिणाम बाजार भाव पर जीडीपी के रूप में निकलेगा। बाजार भाव या चालू भाव पर जीडीपी का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था का आकार जानने या राजकोषीय घाटे आदि जैसे विभिन्न अनुपातोंं की गणना करने में होता है।
नई विधि
2015 में जनवरी के अंत से जीडीपी गणना के एक नए तरीके को स्वीकार किया गया। पहली बात यह कि अब हर चरण में मूल्यवर्धन का इस्तेमाल जीडीपी या जीवीए की गणना में होता है, जिसकी गणना आधार मूल्य पर होती है। आधार मूल्य वह है, जो उत्पादक को वस्तुओं या सेवाओं के खरीदार से मिलता है। दूसरे शब्दों मेंं कहें तो यह फैक्टर कॉस्ट और उत्पादन कर में से उत्पादन सब्सिडी घटाकर मिलता है। यह उत्पादन की वास्तविक मात्रा पर निर्भर नहीं होता। यह उत्पादन की वास्तविक मात्रा पर निर्भर नहीं होता। उदाहरण के लिए पंजीकरण शुल्क, भूमि राजस्व, स्टांप शुल्क आदि। अगर उत्पाद शुल्क, मूल्य वर्धन शुल्क, वस्तु एवं सेवा कर जैसे उत्पाद करों को जीवीए में आधार मूल्य पर जोड़ दिया जाता है और सब्सिडी घटा दिया जाता है तो इससे नए तरीके के मुताबिक जीडीपी के आंकड़े आते हैं।
अब पूरे 2020-21 के जीवीए के आंकड़े लें। यह 124.11 लाख करोड़ रुपये है। लेकिन अगर इसमें 9.97 लाख करोड़ रुपये शुद्ध उत्पाद करों या अप्रत्यक्ष करों (कर में से सब्सिडी निकालकर) को जोड़ दें तो यह जीडीपी के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 134.08 लाख करोड़ रुपये होता है। पहले अग्रिम अनुमान में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर 11 लाख करोड़ रुपये था और इसलिए जीडीपी थोड़ी ज्यादा 134.40 लाख करोड़ रुपये थी। इसके अलावा 2019-20 की जीडीपी स्थिर मूल्य परर पुनरीक्षित कर इस साल जनवरी में 145.69 लाख करोड़ रुपये की गई थी, जो 145.65 लाख करोड़ रुपये अनुमानित थी। इन दोनों वजहों से पता चलता है कि जीडीपी का संकुचन पहले अनुमान की तुलना में दूसरे अग्रिम अनुमान में ज्यादा है।
अगर तिमाही अनुमान देखें तो यह अंतर और ज्यादा हो जाता है क्योंकि सरकार ने कोविड से जुड़े मसलों के कारण बहुत ज्यादा खाद्य सब्सिडी दी थी और भारतीय खाद्य निगम का बकाया चुकता किया था। सरकार के संशोधित अनुमान से पता चलता है कि खाद्य सब्सिडी बढ़कर 4.22 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जो 2020-21 के बजट अनुमान में 1.15 लाख करोड़ रुपये रखा गया था। पहले अग्रिम अनुमान में बजट अनुमान को लिया गया था, जबकि दूसरे अग्रिम अनुमान में संशोधित अनुमान को लिया गया।
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