जिस समय नासा के पर्सविरंस के मंगल पर उतरने वाले वीडियो वायरल हो रहे थे उसी दौरान संयुक्त अरब अमीरात भी अपने पहले इंटरप्लैनेटरी मिशन 'होप' के जरिये मंगल की दूरी नाप रहा था। उसी दौरान चीन का मार्स थ्यानवेन-1 मिशन भी मंगल की कक्षा में स्थापित हुआ। यह एक ही समय कोई संयोग मात्र नहीं है। इसमें आकाशीय यांत्रिकी की अहम भूमिका है। पृथ्वी सूर्य से तीसरा ग्रह है तो मंगल चौथा ग्रह। दोनों के बीच 'केवल' 5.6-6.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी है। जह दोनों ग्रह एक दूसरे से सर्वाधिक दूरी पर होते हैं तो उनके बीच की दूरी 40 करोड़ किमी हो जाती है। कुशल अंतरिक्ष यान न्यूनतम ऊर्जा खपत करता है। मंगल ग्रह अभियानों के लिए हर 26 महीने में एक छोटा द्वार खुलता है, जिसके चलते मंगल अभियानों की भीड़ हो जाती है। ये नए मिशन लाल ग्रह की हमारी समझ को और बढ़ाएंगे। नासा 2030 के दशक में मंगल पर एक मानवयुक्त मिशन भेजने की उम्मीद कर रहा है। एलन मस्क तो साल 2026 के आसपास पहले मानवयुक्त स्पेसएक्स मिशन के साथ वहां एक कॉलोनी स्थापित करने की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि इन प्रयासों को करने से पहले बहुत सी तकनीकी एवं इंजीनियरिंग की समस्याओं को हल करना होगा। हमें मंगल ग्रह और उससे जुड़ी दूसरी स्थितियों के बारे में फिलहाल और अधिक जानने की आवश्यकता है। मंगल एक ठंडा, चट्टानों से भरा ग्रह है जिसमें बहुत कम वातावरण मौजूद है और पृथ्वी के मुकाबले केवल एक प्रतिशत सघन है। मंगल की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के आकाश में 35 किमी ऊंचाई पर मिलने वाले दबाव के समान है। एवरेस्ट की ऊंचाई 8.8 किमी ही है। वहां अभी तक मुक्त ऑक्सीजन के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। मंगल ग्रह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का लगभग 38 प्रतिशत है। ध्रुवों पर पानी की बर्फ है लेकिन जहां तक हम जानते हैं, कोई भी मुक्त जल प्रवाह नहीं है। हर समय मार्सक्वेक के साथ भूकंप आते रहते हैं। वहां एक दिन 24 घंटे 37 मिनट का, लगभग पृथ्वी के बराबर ही होता है। हालांकि वह काफी छोटा ग्रह है लेकिन स्थलीय भाग पृथ्वी के बराबर या उससे भी अधिक होगा, क्योंकि वहां कोई महासागर नहीं है। मंगल ग्रह पर धूप कमजोर है। सौर पैनलों को चार्ज करने में काफी ज्यादा समय लगता है। कोई चुंबकीय क्षेत्र भी लगभग नहीं है। वायुमंडल की कमी और बहुत ही कमजोर चुंबकीय क्षेत्र का मतलब है कि वहां कठोर सौर विकिरण से सुरक्षा नहीं है, जबकि पृथ्वी पर ऐसी सौर विकिरण धरातल तक नहीं आ पातीं। हम नहीं जानते कि क्या मानव ऐसी परिस्थितियों में ज्यादा समय तक जीवित रह सकता है। अगर ऐसा हो भी जाता है तो अलगाव के कारण उनके पागल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हमें यह भी नहीं पता कि क्या इस शुष्क ग्रह की सतह पर हाई-टेक ग्रीनहाउस के अंदर पौधों को उगाया जा सकता है। एक मंगल अभियान का मतलब होगा कम से कम 12 महीने की आने-जाने की यात्रा और वापसी से पहले मंगल पर कम से कम 20 महीने की प्रतीक्षा। कुल मिलाकर कम से कम 32 महीने का समय लगेगा। वैज्ञानिक जिज्ञासा के अलावा, एक कारण यह भी है कि पृथ्वी ने उल्कापिंड के हमले जैसी घटनाओं के कारण बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटनाओं का सामना किया है। बड़े उल्का हमलों के खिलाफ किसी तरह का ठोस रक्षा कवच उपलब्ध नहीं है और इस बात की भी कोई कोई गारंटी नहीं है कि कभी भी किसी तरह का भयानक परमाणु संघर्ष नहीं होगा। अगर मंगल पर एक कॉलोनी विकसित होती है, तो इससे पृथ्वी पर सामूहिक तौर पर विलुप्त होने की घटनाओं के खिलाफ बचाव के लिए 'पुस्तकालयों' में डीएनए संबधी जानकारी संग्रहीत की जा सकती है। किसी भी मानवयुक्त मिशन को अधिक शक्तिशाली प्रणोदन प्रणाली की आवश्यकता होगी। इसमें बेहतरीन हीट शील्ड (मनुष्यों को उबलने से रोकने के लिए) वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड से ऑक्सीजन अलग करने की क्षमता के साथ बेहतर स्पेससूट, मंगल की सतह पर घूमने के लिए परिवहन व्यवस्था, विश्वसनीय बिजली की आपूर्ति (शायद लघु परमाणु रिएक्टरों का उपयोग करके) और लेजर संचार आदि का समाधान खोजना होगा। मंगल पर ऐसे व्यवहार्य निवास स्थान बनाने की आवश्यकता होगी जहां मनुष्य अनिश्चितकाल तक रह सकें। इसके अलावा, भोजन को विकसित करने और कचरे को रीसाइकल करने की आवश्यकता होगी। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भोजन विकसित करने के प्रयोगों से पता चलता है कि कम गुरुत्वाकर्षण, कमजोर धूप और उच्च विकिरण के बावजूद मंगल पर भोजन उगाना संभव हो सकता है। स्ट्रैटोस्फियर में कवक उगाने जैसे प्रयोगों से यह भी संकेत मिलता है कि ब्लैक मोल्ड (जो एक जहरीला कवक है) मंगल के वातावरण में जीवित रह सकता है। संयुक्त अरब अमीरात का होप मिशन मंगल पर दैनिक एवं मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन करके, वातावरण की एक पूरी तस्वीर प्रदान करेगा। चीनी मिशन भूमिगत जल तथा जीवन के किसी भी संकेत की तलाश करेगा। नासा खनिज, तापमान, हवा की गति, सापेक्षिक आद्र्रता, वायुमंडलीय धूल आदि को मापेगा। यह ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए कार्बनडाइ ऑक्साइड के अणुओं को तोड़ेगा और विस्तारित मिट्टी विश्लेषण से कार्बनिक यौगिकों की तलाश करेगा। इसके अलावा, रोबोट इनजेनिटी हेलीकॉप्टर तकनीकी प्रदर्शन के लिए वहां उड़ानों का परीक्षण करेगा। इतनी अधिक चुनौतियों के देखते हुए यह कदम पागलपन लग सकता है। इनमें से किसी की चुनौती का समाधान इतना आसान नहीं है। एक ही समय में विभिन्न तकनीकों को विकसित करना होगा। हो सकता है कि इनमें कई बार विफलता का भी सामना करना पड़े।
