महंगार्ई के लिए 2 से 6 फीसदी दायरा है उचित | अनूप रॉय / मुंबई February 26, 2021 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई मानता है कि मौद्रिक नीति के तहत 2 से 6 फीसदी के दायरे वाला मुद्रास्फीति लक्ष्य एकदम ठीक है और अगले पांच साल तक इसमें कोई तब्दीली नहीं होनी चाहिए। मार्च में मुद्रास्फीति के लक्ष्य की समीक्षा होनी है और उससे ऐन पहले आज केंद्रीय बैंक की रिसर्च टीम ने मुद्रा एवं वित्त पर जारी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही।
रिजर्व बैंक ने छह सदस्यों की मौद्रिक नीति समिति गठित कर मुद्रास्फीति के लक्ष्य का दायरा तय करने की व्यवस्था शुरू की। समिति की पहली बैठक अक्टूबर, 2016 में हुई। उसके बाद से 22 बैठकें हो चुकी हैं और रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्ष्य तय करने से देश में महंगाई पर अंकुश लगाने में मदद मिली है।
मुद्रा एवं वित्त रिपोर्ट 2013 के बाद पहली बार प्रकाशित हुई है। पहली बार 1935 में प्रकाशित हुई यह रिपोर्ट सबसे पुरानी रिपोर्ट मानी जाती है। इस साल इस रिपोर्ट का विषय मौद्रिक नीति ढांचे की समीक्षा करना था। 2013 में प्रकाशित हुई पिछली रिपोर्ट वैश्विक ऋण संकट के बाद राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति सहयोग पर केंद्रित थी।
हालांकि रिपोर्ट की प्रस्तावना रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने लिखी है मगर यह केंद्रीय बैंक का आधिकारिक नजरिया नहीं है। रिजर्व बैंक ने मध्यम अवधि के लिए खुदरा महंगाई का लक्ष्य 4 फीसदी रखा है, जिसमें 2 फीसदी कमीबेशी की छूट है। अगर बैंक लगातार तीन तिमाही तक मुद्रास्फीति को इस दायरे में नहीं रख पाता है तो उसे इसका कारण सरकार को बताना पड़ता है। लेकिन 2020 में महामारी के कारण तीन तिमाही से अधिक समय तक महंगाई ऊपरी सीमा के भी परे रही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने महंगाई का लक्ष्य 2 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा है, इसलिए भारत में भी महंगाई का निचला स्तर 2 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम बताते हैं कि खुदरा मुद्रास्फीति में खाद्य की हिस्सेदारी अधिक होने के कारण महंगाई के ऊंचे लक्ष्य रखे जाते हैं और उसमें कमीबेशी का दायरा भी बड़ा होता है। यह भी कहा गया कि दीर्घ अवधि में मुद्रास्फीति का ऊपरी दायरा 6 फीसदी पाया गया और इससे अधिक महंगाई आर्थिक वृद्घि के लिए नुकसानदेह होती है। मार्च में खुदरा महंगाई लक्ष्य की समीक्षा होनी है और उसी समय खुदरा महंगाई के आधार, घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण तथा जनगणना पर भी विचार होगा।
वैश्विक स्तर पर महंगाई का लक्ष्य तय करने वाली उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने या तो लक्ष्य कम कर दिए हैं या उनमें कोई बदलाव नहीं किया है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत में हालात अलग हैं। आपूर्ति व्यवस्था में आने वाली दिक्कतें, महंगाई को लेकर नजरिये और अनुमान से जुड़ी त्रुटियों के कारण मौजूदा लक्ष्य अगले पांच वर्षों के लिए अपरिवर्तित रखना जरूरी हो गया है।'
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