सरकार ने सभी वित्तीय नियामकोंं से कंपनियों के लिए निवेश के मानकों में ढील देने को कहा है, जिससे वे 'संभावित हानि' (ईएल)रेटिंग वाली कंपनियों में निवेश कर सकें। इस समय नियामक केवल उच्च रेटिंग वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में ही निवेश की अनुमति देते हैं। ईएल नया रेटिंग पैमाना है, जो चूक की संभावना और वसूली के पहलुओं के आधार पर मिलती है। इससे निवेशकों को मजबूत धारणा वाली इकाइयों व वसूली के पहलुओं और इसके बगैर वाली इकाइयों के बीच विभेद करने में मदद मिलती है। इस सप्ताह की शुरुआत में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, भारतीय जीवन बीमा नियामक प्राधिकरण सहित सभी वित्तीय नियामकों और बैंकरों, भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम सहित वित्तीय संस्थानों, प्रमुख रेटिंग एजेंसियों से मुलाकात की थी और ईएल रेटिंग व्यवस्था की व्यावहारिकता पर चर्चा की थी। कोविड-19 महामारी को देखते हुए ईएल की अवधारणा पर चर्चा शुरू हुई। सरकार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे संकट को संभावना में बदला जा सके। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस कदम का मकसद कदम दीघार्वधि निवेशकों और बॉन्ड बाजारों को ज्यादा क्रेडिट जोखिम और कम क्रेडिट जोखिम के आधार पर बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करना है। सूत्रों ने कहा कि कुछ वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं ने इसे स्वीकार किया है। वित्त मंत्रालय ने शीर्ष क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से भी कहा है कि वे सभी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ईएल विधि के आधार पर यह व्यवस्था लागू करें। ईएल नई अवधारणा नहीं है। सबसे पहले यह केंद्रीय बजट 2016 में पेश किया गया था। नियामकीय मंजूरी न होने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। जनवरी में आईआरडीएआई ने ईएल रेटिंग को मंजूरी दे दी और बीमा कंपनियों को ए रेटिंग से कम नहीं के साथ ईएल रेटिंग वाली बुनियादी ढांचा कंपनियों में निवेश को वर्गीकृत करने के निर्देश दिए। रेटिंग एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा कि ईएल का वर्गीकरण डेट इंस्ट्रूमेंट की अवधि के दौरान संभावित हानि और चूक की संभावना, चूक के बाद वसूली के आधार पर होता है। इसकी रेटिंग का पैमाना ईएल-1 से ईएल-7 तक होता है, जिसमें ईएल-1 सबसे कम हानि और ईएल-7 सबसे ज्यादा संभावित हानि को दिखाता है। इसकी वजह के बारे में अधिकारी ने कहा कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के अहम पहलुओं के पर्याप्त अधिभार दिखाने के हिसाब से मौजूदा रेटिंग पैमाने की सीमाएं होती हैं, जिसकी वजह से उन्हें कम रेटिंग मिल जाती है। इन सीमाओं से बाहर निकलने व संभावित निवेशकों को जोखिम से जुड़ी व्यापक सूचनाओं के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिे नई क्रेडिट रेटिंग व्यवस्था पेश की गई है। उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा कि बैंकों पर वित्तीय दबाव और नकदी संकट से जूझ रही इन्फ्रा कंपनियों की स्थिति को देखते हुए यह अहम है कि इन्फ्रा डेट मार्गेट में विभिन्न जोखिम श्रेमी बनाई जाए और दीर्घावधि निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिल सके। अश्विन पारेख एडवाइजरी सर्विसेज एलएलपी के संस्थापक आश्विन पारेख ने कहा, 'बुनियादी ढांचा परियोजनाओं या विशेष उद्देश्य इकाइयों जैसी संपत्तियों में निवेश को इच्छुक बीमा और पेंशन कंपनियों के हिसाब से यह सकारात्मक कदम है। बहरहाल कंपनियों को अभी भी अपनी निवेश नीतियों के हिसाब से मंजूरी की जरूरत होगी, जहां उनकी निवेश समिति और बोर्ड प्रत्येक संपत्ति में मामले के आधार पर निवेश के बारे में फैसला करेगा।' बैठक में मौजूद एक और व्यक्ति ने कहा कि परंपरागत रेटिंग और ईएल स्केल रेटिंग के सह अस्तित्व से न सिर्फ पूंजी से जूझ रहे क्षेत्र में निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि बुनियादी क्षेत्र में निवेश के अवसर बढ़ेंगे।
