खतरे की वापसी! | संपादकीय / February 21, 2021 | | | | |
अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय प्रशासन देश में कोविड-19 महामारी के प्रसार को लेकर अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गया था। दुनिया भर में जब वायरस के नए प्रकारों के कारण संक्रमण बढ़ रहे थे, वहीं भारत में नए मामलों की तादाद लगातार कई सप्ताह तक घटती रही। शायद इसी वजह से भारत में मान लिया गया कि देश महामारी की एक ही लहर की चपेट में रहेगा। परंतु केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्य जो वैश्विक स्तर पर शेष भारत की तुलना में अधिक जुड़ाव रखते हैं, वहां नए मामलों में इजाफा होना शुरू हो गया है। महाराष्ट्र में तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने यह आशंका भी प्रकट की है कि नागपुर और औरंगाबाद में पाए गए वायरस के नए स्वदेशी प्रकार ऐसे ही अन्य नए स्वरूप वाले वायरस की तरह तेजी से फैल सकते हैं और इनके कारण संक्रमितों में निमोनिया होने की आशंका भी अधिक है। महाराष्ट्र के कुछ जिलों में आंशिक तौर पर लॉकडाउन भी लगाया गया।
गत वर्ष वायरस का केंद्र रहे इलाकों में किए गए सर्वेक्षणों में लोगों में अच्छीखासी ऐंटीबॉडी मिलने के बावजूद यह मानना उचित नहीं है कि भारत सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के आसपास भी है। ऐसे में महामारी की दूसरी लहर का खतरा भी मौजूद है। खासकर यह देखते हुए कि वायरस के नए स्वरूप में तेज बदलाव की आशंका से इनकार नहीं। सरकार को वायरस पर नियंत्रण की अपनी उपलब्धि को लेकर इतना अधिक आश्वस्त होने की आवश्यकता नहीं थी। अधिकारियों को चाहिए कि जनता को इस बात के लिए तैयार करना शुरू कर दें कि स्थानीय स्तर पर एक बार फिर लॉकडाउन लगाया जा सकता है और वायरस के प्रभाव वाले क्षेत्रों में या जहां नए प्रकार का वायरस दिख रहा है वहां शारीरिक दूरी के मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जा सकता है। उस लिहाज से देखें तो भारतीय जनता को भी मानकों का पालन करते हुए जवाबदेही दिखानी चाहिए।
केंद्र सरकार ने राज्यों को उचित सलाह दी है कि वे आरटी-पीसीआर जांच की तादाद बढ़ा दें क्योंकि रैपिड ऐंटीजन टेस्ट से किसी दिए गए क्षेत्र में महामारी की स्थिति का उचित आकलन नहीं हो सकता। यदि दूसरी लहर आती है तो चिंता की बात यह भी होगी कि यह दिल्ली, मुंबई और केरल जैसे पहली लहर के शिकार स्थानों के बजाय ऐसी जगहों पर असर दिखा सकती है जहां स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा कमजोर है और अस्पतालों में कम बिस्तर हैं। ऐसे में संक्रमण कहीं अधिक घातक साबित हो सकते हैं।
संक्रमण की नई लहर का खतरा हमें यह याद दिलाता है कि जब तक देश के अधिकांश हिस्सों में टीकाकरण नहीं हो जाता है तब तक महामारी लोगों की जिंदगी और उनकी आजीविका के लिए खतरा बनी रहेगी। इस संदर्भ में देखें तो टीकाकरण में ढिलाई समझ से परे है। जैसा कि इस समाचार पत्र ने पहले भी कहा है कि सरकार को औषधि और जैवरसायन उद्योग की अतिरिक्त क्षमता का इस्तेमाल युद्ध स्तर पर करना चाहिए। दोनों टीकों को नियामकीय मंजूरी मिले सात सप्ताह से अधिक समय हो चुका है और सर्वाधिक जोखिम वाले लोगों यानी बुजुर्गों को टीके की एक खुराक भी नहीं मिल सकी है। न ही उनके टीकाकरण कार्यक्रम की कोई योजना तैयार है। हकीकत तो यह है कि निजी क्षेत्र के माध्यम से टीके का वितरण भी फिलहाल नजर नहीं आ रहा। दूसरी लहर के आसन्न खतरे को देखते हुए सरकार को स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। कोविड से निपटने के क्रम में जितनी जल्दी संभव हो टीकाकरण की गति तेज करनी चाहिए, अन्य संभावित टीके जो दूसरी जगह प्रयोग में हैं उन्हें नियामकीय मंजूरी दी जानी चाहिए, मसलन फाइजर कंपनी का टीका जो अत्यंत प्रभावी है। निजी क्षेत्र को भी प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।
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