वैश्विक वित्त को चीन की तलाश | श्याम सरन / February 17, 2021 | | | | |
चीन के वित्तीय क्षेत्र में जारी उदारीकरण और चीनी मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में प्रगति का इस स्तंभ में लगातार जायजा लिया जाता रहा है। हाल के महीनों में तमाम अहम सुधार किए गए हैं जो चीन के विशाल एवं बढ़ते बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय सेवा उद्योगों में विदेशी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने की अनुमति देते हैं।
चीन दुनिया के बाकी हिस्सों में नदारद प्रतिफल की पेशकश करता है, लिहाजा ये कदम महामारी के बाद के आर्थिक परिवेश में सही समय पर उठाए गए हैं। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से केवल चीन ही वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2-3 फीसदी की सकारात्मक वृद्धि दर्ज करेगा। हम पश्चिमी वर्चस्व वाली वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के साथ चीन के वित्तीय बाजार के एकीकरण की एक लहर देख रहे हैं। यहां पर अलगाव के बजाय तेजी से जुड़ाव देखा जा रहा है, हो सकता है कि हम वित्तीय प्रणाली के व्यापक पुनर्संयोजन के मुहाने पर खड़े हैं जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं भू-राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा।
इससे जुड़े पैमाने पर गौर करते हैं। चीन का वित्तीय क्षेत्र पहले ही 44 लाख अमेरिकी डॉलर मूल्य का हो चुका है और यह तेजी से बढ़ रहा है। चीन के बैंक 41 लाख करोड़ डॉलर की परिसंपत्तियों को संभालते हैं। दुनिया के चार सबसे बड़े बैंक चीन के हैं। चीन का बॉन्ड बाजार अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है और फिलहाल इसका आकार 14 लाख करोड़ डॉलर का है। अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में करीब 7.4 लाख करोड़ डॉलर की परिसंपत्तियां संपत्ति प्रबंधन परियोजनाओं के अधीन हैं और वर्ष 2022 तक इनके दोगुना हो जाने का अनुमान है। बाजार पूंजीकरण के संदर्भ में शांघाई और हॉन्गकॉन्ग के स्टॉक एक्सचेंज 5 लाख करोड़ डॉलर से थोड़ा ही पीछे हैं जबकि शेन्जेन का आकार 3.5 लाख करोड़ डॉलर का है। भले ही बाजार पूंजीकरण के ये आंकड़े न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के 29 लाख करोड़ डॉलर के पूंजीकरण से कम हैं लेकिन उनमें तेजी से विस्तार हो रहा है। लिहाजा इस वित्तीय बाजार तक विदेशी इकाइयों की पहुंच पर बंदिशें लगी हैं और उनका सख्त नियमन होता है। हालिया सुधारों से इस क्षेत्र में बड़े अवसर पैदा हो रहे हैं और अमेरिका, यूरोप एवं जापान की फर्में खूब आकर्षित भी हो रही हैं।
इस मौके पर गौर कीजिए। चीन में विदेशी बैंकों को केवल 2 फीसदी वित्तीय परिसंपत्तियां ही हासिल हैं जबकि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के देशों में यह अनुपात करीब 10 फीसदी है। विदेशी वित्तीय इकाइयों को अगर चीन में 5 फीसदी हिस्सेदारी भी मिल जाती है तो वह करीब 2.2 लाख करोड़ डॉलर का होगा। इसी तरह चीन के बॉन्ड बाजार में विदेशी हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है लेकिन नए नियमों के तहत यह सालाना 400 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इसमें संपत्ति प्रबंधन साधनों, रेटिंग कारोबार एवं उपभोक्ता परामर्श सेवाओं से हुई कमाई शामिल नहीं है। विदेशी बीमा कंपनियों को चीन में पुराने नियमों के तहत केवल 2 फीसदी प्रीमियम आय ही होती थी जबकि ओईसीडी देशों में यह करीब 20 फीसदी है।
वर्ष 2020 में बनाए गए नए नियमों में क्या प्रावधान हैं? इनमें बैंकों के विदेशी स्वामित्व पर कोई सीमा नहीं लगाई गई है और कोई न्यूनतम परिसंपत्ति सीमा भी नहीं है। विदेशी बैंक चीन की मुद्रा के अलावा विदेशी मुद्राओं में भी कारोबार कर सकते हैं और ऐसे कारोबार में ट्रस्ट, लीज एवं उपभोक्ता वित्त भी शामिल हो सकते हैं। चीन के प्रतिभूति, फंड प्रबंधन कारोबार, वायदा कारोबार एवं जीवन बीमा में विदेशी निवेश पर लगी सीमा हटा ली गई हैं। मुख्यभूमि से कारोबार समेटने एवं परिसंपत्तियों को विदेश भेजने के नियमों को भी सरल बनाया गया है। उदार बनाए गए नियमों के तहत एचएसबीसी, जेपी मॉर्गन, मॉर्गन स्टैनली, नोमुरा एवं यूबीएस पहले ही अपने मुख्यभूमि कारोबार में नियंत्रक हिस्सेदारी ले चुके हैं। आलियांज एवं एक्सेस पूर्ण स्वामित्व वाली इकाइयों के गठन और बीमा कारोबार में सीधी भागीदारी की संभावनाएं तलाश रही हैं। अमेरिकन एक्सप्रेस ने भी चीन में अपना कार्ड एवं उपभोक्ता वित्त कारोबार चलाने की मंजूरी ले ली है। ये कुछ शुरुआती नाम हैं और उनके अनुभव को देखते हुए दूसरी कंपनियां भी उनका अनुकरण करेंगी।
कुछ अन्य उल्लेखनीय घटनाएं भी हुई हैं। चीन के इक्विटी बाजार में निवेश की परोक्ष मंजूरी देने वाले हॉन्गकॉन्ग-शांघाई स्टॉक कनेक्ट और हॉन्गकॉन्ग शेन्जेन स्टॉक कनेक्ट को भी उदार बनाया जा चुका है। योग्य विदेशी संस्थागत निवेशकों और योग्य घरेलू संस्थागत निवेशकों के कारोबार पर कोटा सीमाओं को भी हटाया जा चुका है। एक बड़ी पहल हॉन्गकॉन्ग, ग्वांगतोंग एवं मकाऊ के ग्रेटर बे क्षेत्र के लिए नॉर्थबाउंड एवं साउथबाउंड वेल्थ मैनेजमेंट कनेक्ट है। साउथबाउंड व्यवस्था के तहत चीनी मुख्यभूमि के निवासी हॉन्गकॉन्ग एवं मकाऊ में बैंकों के पास निर्दिष्ट निवेश खाता खोलकर उनके उपयुक्त निवेश उत्पादों में निवेश कर सकते हैं।
नॉर्थबाउंड योजना के तहत ग्रेटर बे इलाके के निवासी मुख्यभूमि में पंजीकृत बैंकों द्वारा जारी संपत्ति प्रबंधन उत्पादों में निवेश कर सकते हैं। अब इनमें विदेशी बैंक भी शामिल हो जाएंगे। अकेले 2020 में ही नॉर्थबाउंड योजना के तहत 2.7 लाख करोड़ डॉलर का कारोबार हुआ जो चीन के ए श्रेणी के प्रतिभूतियों के कुल कारोबार के 10 फीसदी से भी अधिक था। जबकि वर्ष 2017 में यह आंकड़ा महज 2 फीसदी था।
चीन का एक हरित वित्त बाजार के तौर पर विकास भी दिलचस्पी का नया क्षेत्र है। वित्तीय उत्पादों के एक समूह की पेशकश की जा रही है जिनमें संक्षिप्त एवं लंबी अवधि के कर्ज, ग्रीन बॉन्ड, ग्रीन निजी इक्विटी और वेंचर कैपिटल फंड और ग्रीन ढांचागत आरईआईटी शामिल हैं।
पर्यावरणीय एवं जलवायु जोखिमों से बचने के लिए हरित बीमा संरक्षणों का दायरा तैयार किया जा रहा है। चीन ने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन के चरम स्तर तक पहुंचने और 2060 के पहले कार्बन तटस्थता को हासिल करने का लक्ष्य घोषित किया हुआ है, लिहाजा उसे अपनी ऊर्जा अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव करने की जरूरत होगी। इसके लिए योजना यह है कि इस लागत की कुछ हद तक भरपाई हरित वित्त के जरिये की जाए जिसमें इन विशेषीकृत साधनों में विदेशी फंड आकर्षित करना भी शामिल है। चीन ने कई यूरोपीय देशों की राजधानियों में रोडशो कराए हैं जहां लोगों ने खासी दिलचस्पी दिखाई है।
अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था में बड़े वित्तीय प्रवाहों को लुभाना चीन के वित्तीय सुधारों का स्पष्ट आर्थिक उद्देश्य रहा है लेकिन इसका एक मकसद अपने वित्तीय बाजारों का वैश्विक मानकों एवं प्रबंधन तरीकों के साथ तालमेल बिठाना भी है। चीन को यह भी पता है कि उसके वित्तीय बाजार अमेरिकी बैंकिंग एवं प्रतिभूति कंपनियों समेत पश्चिमी देशों के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र बन चुके हैं। चीन में पश्चिमी देशों की कंपनियां जितना बड़ा हिस्सा लेना चाहेंगी, उससे चीन को अपना भू-राजनीतिक खेल खेलने का उतना ही मौका मिलेगा। उत्पादों के कारोबार की तरह बढ़ती हुई अंतर-निर्भरता का भी भविष्य में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। चीन को अपने प्रमुख संसाधन निर्यात पर दंडात्मक शुल्क लगाने वाले ऑस्ट्रेलिया को एक उदाहरण की तरह पेश किया जा रहा है।
चीन के वित्तीय क्षेत्र और उसकी समग्र आर्थिक रणनीति में कई अहम बदलाव हो रहे हैं। इन पर गहराई से ध्यान देने की जरूरत है ताकि भारत के आर्थिक हितों पर उनके असर को परखा जा सके। फाइनैंसिंग के नवाचारी तरीकों एवं साधनों के चीन के इस्तेमाल में हमारे लिए कई उपयोगी सबक हो सकते हैं। अफसोस की बात है कि इस दिशा में बहुत कम प्रयास ही हुए हैं।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव एवं सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)
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