ई-कॉमर्स कंपनियों और स्टार्टअप का किराना कारोबार पर जोर | सामयिक सवाल | | निवेदिता मुखर्जी / February 16, 2021 | | | | |
कोविड-19 से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बीच किराना कारोबार की चमक बढ़ गई है। कई ई-कॉमर्स कंपनियों और स्टार्टअप इकाइयों ने किराना कारोबार को सबकी निगाहों में ला दिया। हालांकि भारत में ई-कॉमर्स का झंडा सबसे पहले बुलंद करने वाली फ्लिपकार्ट ने हाल में दो ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो गया है कि किराना कारोबार को लेकर हम पहले वाली स्थिति में आ गए हैं। कुछ दिन पहले अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट नियंत्रित फ्लिपकार्ट ने अपनी थोक कारोबार इकाई की किराया खुदरा स्टोर में कदम रखने की घोषणा की है। यानी खुदरा कारोबारी और अन्य इकाइयां फ्लिपकार्ट के बी2बी प्लेटफॉर्म से ऑनलाइन माध्यम से किराना सामान खरीद सकते हैं। लोगों के बीच अपने बाजार को लोकप्रिय बनाने के लिए बेंगलूरु स्थित इस कंपनी ने पूरे देश में एक अभियान चलाया है। इन दोनों कदमों से लगता है कि वॉलमार्ट इंडिया ने भारत में खुदरा कारोबार पर नजरें जमा ली हैं। वैसे कंपनी ने करीब एक दशक पहले इस कारोबार में उतरने की योजना बनाई थी।
वॉलमार्ट ने 2007 में भारत में कदम रखा था। कंपनी ने अमेरिका की तरह ही भारत में भी किराना दुकानों के जरिये खाद्य एवं किराना कारोबार में बड़ी पहल करने का इरादा किया था। कंपनी अब विभिन्न माध्यमों से अपना यह लक्ष्य पूरा करने में जुट गई है, हालांकि इसमें थोड़ी देरी जरूर हो गई है। यह सब तब हो रहा है जब रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए ऑनलाइन माध्यम नया और एक सशक्त जरिया बन गया है। भारत में इस समय ई-ग्रॉसरी कारोबार करीब 3 अरब डॉलर रहने का अनुमान है और रेडसीर के अनुसार 2024 तक यह बढ़कर 18.2 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। हालांकि देश में कुल खुदरा कारोबार (करीब 500 अरब डॉलर) का यह महज एक छोटा हिस्सा ही है।
वॉलमार्ट भारत में कभी बिग-बॉक्स स्टोरों की स्थापना नहीं कर पाई जिससे भारत जैसे संभावनाओं वाले बाजार में आने की इसकी योजना पूरी नहीं हो पाई। उसे लगातार इंतजार करना पड़ा क्योंकि भारत में बहु-ब्रांड खुदरा पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की रणनीति आड़े आ रही थी और वह इसे कभी पार भी नहीं कर पाई। वॉलमार्ट ने देश में पहला थोक कारोबार चलाया और इसके लिए पहले सुनील मित्तल समूह के साथ साझेदारी की और बाद में अकेले दम पर कारोबार किया। बाद में इसने 2018 में फ्लिपकार्ट में 16 अरब डॉलर में बहुलांश हिस्सेदारी खरीद ली। हालांकि वॉलमार्ट के थोक स्टोर को छोड़ दें तो किराना कारोबार इस अमेरिकी कंपनी के लिए सपना ही रही। फ्लिपकार्ट एक ऑनलाइन बुक स्टोर के रूप में शुरू हुई थी और बाद में इलेक्ट्रॉनिक्स, परिधान और घरेलू वस्तुएं भी लोगों तक पहुंचाने लगी।
किराना कारोबार की क्षमता को बखूबी समझने वाली वॉलमार्ट भारत के असंगठित खुदरा क्षेत्र के लिए एक खतरा समझी गई। इसे देखते हुए ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय में कड़ी शर्तों के साथ बहु-ब्रांड खुदरा में 51 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देने संबंधी नीति आई। इसमें स्थानीय खुदरा कारोबारियों से सामान खरीदने की शर्त भी शामिल थी। बाद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने इस नीति को लागू नहीं किया। हालांकि अब ये सारी बातें इतिहास का एक हिस्सा बन गई हैं, लेकिन पिछले 14 वर्षों में खुदरा कारोबार का मूल आधार नहीं बदला है। इस दौरान वॉलमार्ट की देश में उपस्थिति बढ़ती रही है। ऑनलाइन स्टोर हो या फिजिकल स्टोर अधिक कूवत रखने वाली कंपनियों ने दोनों जगह अपनी पैठ बना ली है।
हालांकि एक अहम बात जो दिख रही है वह है भारत में किराना कारोबार में अधिक कूवत रखने वाली संगठित कंपनियों की संख्या। पहले किराना में बहु-ब्रांड एफडीआई की बात केवल वॉलमार्ट तक ही सीमित थी, जिसे सरकारी मंत्र और देश के दूर-दराज वाले हिस्सों में खाद्यान्न बाजार में संदेह की दृष्टि से देखा गया। कार्फू और टेक्सो ने भी बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार में उतरने की इच्छा जताई थी, लेकिन वे भारत में अपने पैर नहीं टिका पाए। अब भारत में किराना कारोबार में विदेशी निवेशकों सहित भारतीय कंपनियों का दबदबा है जबकि ऑनलाइन और फिजिकल स्टोर की सीमाएं एक दूसरे से मिलने लगी हैं।
विश्लेषक किराना क्षेत्र की तुलना उन क्षेत्रों से करने लगे हैं जहां कंपनियों की संख्या लगातार कम हो रही है और काफी कम कंपनियों का दबदबा रह गया है। दूरसंचार क्षेत्र इसका एक उदाहरण है। क्या अब किराना कारोबार भी महज तीन या चार कंपनियों के इर्द-गिर्द घूमता रह जाएगा? किशोर बियाणी का बिग बाजार रिलायंस जियो ने खरीद लिया है। रिलायंस और टाटा के अलावा जो कंपनियां इसमें बच जाएंगी उनमें एमेजॉन, वॉलमार्ट नियंत्रित फ्लिपकार्ट और ग्रोफर्स (सॉफ्ट बैंक, टाइगर ग्लोबल और सिकोया समर्थित) होंगी। टेनसेंट, डीएसटी ग्लोबल के निवेश वाली स्विगी भी इस कारोबार में थी लेकिन लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद इसने नियमित किराना आपूर्ति का कारोबार रोक दिया है।
किराना कारोबारियों को अपनी बाजार हिस्सेदारी बचाने के लिए सतर्कता से कदम उठाना चाहिए। कारोबारियों और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ प्रमुख संगठनों को अपनी अहमियत बनाए रखने के लिए रणनीति में बदलाव करना चाहिए। वॉलमार्ट को भारत आए एक दशक से भी अधिक समय हो गया है और तब से परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। लड़ाई छेडऩे के बजाय किराना कारोबार को तकनीक और विदेशी कंपनियों सहित बड़े समूहों के साथ साझेदारी कर स्वयं को मजबूत करना चाहिए। इससे उन्हें आकर्षक किराना कारोबार में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
फार्म-टू-फॉर्क (किसानों से सीधे उनके उत्पाद खरीद लेना) की अवधारणा से भी चीजें बदलती लग रही हैं। इन दिनों तीन कृषि कानूनों के संदर्भ में इस बात की खूब चर्चा हो रही है। करीब एक दशक पहले समर्थक एवं विरोधी दोनों समूहों ने वॉलमार्ट के आने से किसानों और उनके उत्पाद पर संभावित असर पर बहस शुरू कर दी थी। अब इस बहस का दायरा काफी बड़ा हो गया है।
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