बीएस बातचीत सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिए जाने के साथ ही घरेलू बाजार में इस्पात की मांग में तेजी आने की उम्मीद है। लेकिन इस्पात का मूल्य निर्धारण एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक टीवी नरेंद्रन ने अदिति दिवेकर से बातचीत में गुटबंदी संबंधी आरोप के बारे में खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि लौह अयस्क की किल्लत के कारण कीमतों तेजी आई है। पेश हैं मुख्य अंश:भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने इस्पात कंपनियों के खिलाफ गुटबंदी के आरोप की जांच शुरू की है। हाल में मूल्य वृद्धि को आप कैसे सही ठहराते हैं? यह कहना उचित नहीं है कि इस उद्योग में गुटबंदी है। भारत में इस्पात की कीमतें अलग नहीं हैं बल्कि घरेलू कीमतें वैश्विक कीमतों को दर्शाती हैं जो वैश्विक तौर पर एकीकृत उद्योग के लिए स्वाभाविक है। दूसरी बात यह है कि लगभग 60 फीसदी इस्पात का आयात जापान और दक्षिण कोरिया से होता है और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के कारण उस पर कोई आयात शुल्क नहीं लगता है। यदि भारतीय कंपनियां इस्पात की कीमतों में बेवजह वृद्धि करेंगी तो जापान और दक्षिण कोरिया से आपूर्ति आसानी से बढ़ सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कीमतें अधिक थीं। हम समझ सकते हैं कीमतें बढऩे पर ग्राहक नाखुश होते हैं लेकिन हम वैश्विक तौर पर एकीकृत उद्योग में काम करते हैं जहां उतार-चढ़ाव होता रहता है। घरेलू कंपनियां भी कीमतों में स्थिरता चाहती हैं लेकिन उतार-चढ़ाव एक दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है।बड़ी कंपनियों के पास अयस्क के निजी स्रोत मौजूद हैं। ऐसे में कच्चे माल की कमी कैसे हो गई? बड़ी इस्पात कंपनियों ने जाहिर तौर पर नीलामी के जरिये लौह अयस्क की आपूर्ति सुनिश्चित की है। लेकिन छोटी कपनियां काफी हद तक व्यापारी खनिकों पर निर्भर हैं। उपलब्धता इसलिए कम हो गई क्योंकि काफी मात्रा में लौह अयस्क व्यापारी खनिकों से निजी खनिकों के पास चला गया। वर्ष 2020 में जिन लौह अयस्क खदानों की नीलामी की गई थी उन्हें उत्पादन के नीलामी-पूर्व स्तर पर वापस आने में समय लग गया। इससे विशेषकर ओडिशा में लौह अयस्क की कमी हो गई। हालांकि स्थिति में अब सुधार हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2020 की नीलामी, आपूर्ति में व्यवधान और स्वामित्व में बदलाव आदि सभी एक साथ घटित हुआ।टाटा स्टील अपने यूरोपीय कारोबार को पुनर्गठित करने की कोशिश कर रही है लेकिन दूसरी बार भी वह असफल रही। इस पर आप क्या कहेंगे? टुसेनक्रप के साथ यह एक पारस्परिक दृष्टिकोण था लेकिन सीसीआई की मंजूरी नहीं मिली। जहां तक एसएएबी का सवाल है तो वे हमारे पास आए। हम खरीदारों की तलाश नहीं कर रहे थे। उन्हें यूरोपीय बदलाव की लागत के बारे में कुछ चिंताएं थीं क्योंकि हरेक देश ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। एसएसएबी ने महसूस किया कि बदलाव योजनाओं स्पष्ट करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार उन्होंने हमसे संपर्क किया था उसी तरह उन्होंने आगे न बढऩे की जानकारी दी। हमारा ध्यान यूरोपीय कारोबार को नकदी तटस्थ अथवा नकद सकारात्मक बनाने पर बरकरार है और हम लगातार अपने कारोबारी प्रदर्शन में सुधार कर रहे हैं।क्या आप कुछ अलग करेंगे? हम ब्रिटेन और नीदरलैंड के कारोबार को अलग करने की प्रक्रिया में हैं। यह हमें लंबी अवधि के लिहाज से मदद करेगा क्योंकि यह अधिक रणनीतिक विकल्प प्रदान करता है। लेकिन यदि कोई हमसे साझेदारी के लिए संपर्क करता है तो हम उसकी खोज के लिए खुले हैं। प्रत्येक इकाई की अपनी चुनौतियां और फायदे हैं। ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन और नीदरलैंड में नीतिगत मुद्दे अलग हो सकते हैं।क्या ब्रेक्सिट आपके यूरोपीय कारोबार लिए फायदेमंद साबित होगा? अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। अब तक कोई व्यवधान नहीं है। हमें यह देखना होगा कि ब्रिटेन में नीतिगत बदलाव, पाउंड में उतार-चढ़ाव, दूसरे देशों के साथ ब्रिटेन के संबंध कैसा रहेगा। इसे स्पष्ट होने में एक या दो साल लगेंगे।
