राष्ट्रीय रेल योजना पर अमल से होगा रेलवे का कायाकल्प | |
बुनियादी ढांचा | विनायक चटर्जी / 02 12, 2021 | | | | |
रेलवे सुधार एवं पुनगर्ठन पर गठित विशेषज्ञ रिपोर्ट में बार-बार इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि क्षमता विस्तार का व्यापक ढांचा उपलब्ध नहीं होने से रेल तंत्र पर प्रतिकूल असर हुआ है। इस वजह से मामूली बदलाव ही हो पाए हैं, जो अमान परिवर्तन, रेल पटरी के दोहरीकरण, सिग्नल के आधुनिकीकरण तक ही सीमित रहे हैं। धीमी गति से हो रहे इन बदलावों के तहत आर्थिक रूप से कम महत्त्व वाले मार्गों पर लगातार नई पटरियां भी बिछाई गई हैं।
हालांकि इतने भर से काम चलने वाला नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में संभावित बदलावों और इसके कारण आने वाले वर्षों और दशकों में उत्पन्न संभावित चुनौतियों के मद्देनजर दीर्घ अवधि के लिए एक विस्तृत बदलाव की दरकार है। राष्ट्रीय रेल योजना (एनआरपी) की 1,100 पृष्ठों की जारी मसौदा रिपोर्ट में यह लक्ष्य हासिल करने की तरफ कदम बढ़ाने के उपायों की चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट में 2050 तक की रूपरेखा तैयार की गई है, जिसमें यात्री एवं माल यातायात की संभावित तस्वीर का अंदाजा लगाया गया है। एनआरपी में यह रणनीति भी तय करने का प्रयास किया गया है कि आवश्यक क्षमताएं हासिल करने के लिए रेलवे को किस सीमा तक विस्तार एवं वित्त की जरूरत होगी।
मोटी बात यह है कि इसमें 2022 से 2031 के बीच पटरी एवं टर्मिनल ढांचे और रेल डिब्बों के विनिर्माण पर 16.74 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय किए जाने का आह्वान किया गया है। रिपोर्ट में इसके बाद अगले 20 वर्षों में अतिरिक्त 21.48 लाख करोड़ रुपये निवेश का अनुमान व्यक्त किया गया है। रेलवे के कुल पूंजीगत व्यय में पटरियों के मद में होने वाला खर्च करीब 60-66 प्रतिशत तक होता है। हालांकि रेलवे तंत्र का विस्तार किस तरह होना है इससे जुड़ी बातें भी उतनी ही अहम हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 10 वर्षों के दौरान रेल से यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक इजाफा हो सकता है। फिलहाल करीब 64 प्रतिशत यात्री 20 उच्च घनत्व वाले रेल तंत्रों (एचडीएन) एवं अधिक इस्तेमाल वाले तंत्रों (एचयूएन) के जरिये यात्रा करते हैं। ये मार्ग देश के महानगरों एवं शहरों को एक दूसरे से जोड़ते हैं। इन मार्गों पर आने वाले वर्षों में यात्रियों की संख्या अधिक रह सकती है और अनुमान जताया जा रहा है कि रेल मार्गों से जितने लोग यात्रा करते हैं उनमें 69 प्रतिशत 2031 तक इन मार्गों से यात्रा करने लगेंगे और बाद में यह आंकड़ा इस स्तर पर स्थिर हो जाएगा।
इसका तात्पर्य यह हुआ कि माल आवाजाही सहित रेल तंत्र का एक बड़ा हिस्सा क्षमता से नीचे परिचालन करेगा जबकि एचडीएन और एचयूएन गलियारों पर भीड़ काफी बढ़ जाएगी। उदाहरण के लिए 2031 तक एचडीएन और एचयूएन का 30 प्रतिशत हिस्सा 100 प्रतिशत से अधिक क्षमता से परिचालन करेगा जबकि शेष रेल तंत्र का 66 प्रतिशत हिस्सा 70 प्रतिशत से कम क्षमता से काम करेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो कारोबार सामान्य बना रहेगा लेकिन रेल तंत्र के आर्थिक लिहाज से महत्त्वपूर्ण हिस्से पर बोझ अधिक दिखेगा।
पहले आईं रिपोर्ट के अनुसार ही इस रिपोर्ट में भी यह स्पष्ट किया गया है कि रेलवे के लिए माल वहन में अपना हिस्सा 30 प्रतिशत के स्तर से बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है। इस समय रेलवे ज्यादातर कोयला, लौह-अयस्क, खाद्यान्न एवं उर्वरकों की ढुलाई से ज्यादातर राजस्व कमाता है। रिपोर्ट के अनुसार रेलवे को इन जिंसों पर निर्भरता कम कर कंटेनर यातायात पर अधिक ध्यान देना होगा। अगर रेलवे ढांचागत स्तर पर आवश्यक सुधार करता है और शुल्कों में कमी के साथ मालगाडिय़ों की रफ्तार 25 किलोमीटर प्रति घंटे से बढ़ाकर 50 किलोमीटर प्रति घंटा करता है तो यह माल वहन में अपना हिस्सा बढ़ाकर करीब 44 प्रतिशत कर लेगा। एनआरपी में कहा गया है कि अगर रेलवे ऐसा करने में नाकाम रहेगा तो तथाकथित 'मॉडल शेयर' मौजूदा 28 प्रतिशत से कम होकर महज 24 प्रतिशत रह जाएगा।
रेलवे के 'मॉडल शेयर' में बढ़ोतरी के लिए समर्पित माल गलियारे पर अधिक ध्यान देना होगा। इनमें दो पर पहले ही काम चल रहा है। रिपोर्ट में तीन अन्य माल गलियारों-पूर्व-पश्चिम गलियारा, उत्तर-दक्षिण गलियारा और पूर्वी तट समर्पित गलियारा- पर चर्चा की गई है। नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) में इन तीनों गलियारे की चर्चा की गई है। एनआरपी में एनआई में शामिल उच्च गति वाली रेल परियोजनाओं का भी जिक्र है और इसमें बड़े शहरों तक उच्च गति वाली रेलगाडिय़ों की पहुंच बढ़ाने के लिए कुछ और नए गलियारे तैयार करने का प्रस्ताव दिया गया है।
अब महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि इनके लिए धन कहां से आएगा? परंपरागत तौर पर रेलवे सेवाएं देने के लिए तीन स्रोतों-सरकारी बजट, परिचालन पर खर्च से बच गई रकम या बजट से इतर प्रावधानों (निजी निवेश एवं बाजार उधारी)- पर निर्भर रहता है। रिपोर्ट इस लिहाज से काफी तर्कसंगत लगती है कि पहले दो स्रोत एनआरपी के तहत पूंजीगत व्यय की जरूरत पूरी करने के लिए अपर्याप्त होंगे।
इस तरह, बजट से इतर होने वाले संसाधनों पर निर्भरता अधिक बढ़ जाएगी। इस लिहाज से धन की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा निजी पूंजी जुटाकर पूरा करने की योजना है। इसकी जरूरत महसूस कर रिपोर्ट में रेलवे में बड़े सुधारों पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में पूंजीगत व्यय के प्रत्येक खंड के लिए वित्त पोषण के विभिन्न स्रोत भी रेखांकित किए गए हैं।
अंत में, 1,100 पृष्ठों की रिपोर्ट से महत्त्वपूर्ण बात यह निकल कर आती है कि रेलवे को अधिक ढांचे विकसित करने होंगे और वह भी तेजी के साथ। अव्वल बात यह कि इन कार्यों को बदलती जरूरतों और तकनीक के हिसाब से अंजाम देना होगा। रेलवे की वर्तमान स्थिति को देखते हुए एनआरपी रिपोर्ट में जो उपाय बताए गए हैं, उसके लिए इसकी सराहना की जानी चाहिए।
(लेखक फीडबैक इन्फ्रा के चेयरमैन हैं।)
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