चढ़ते कच्चे तेल से बाजार की चिंता बढ़ी | सुंदर सेतुरामन / मुंबई February 12, 2021 | | | | |
यदि सूचकांक में बड़े भारांक वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के शेयर में गुरुवार को 4 प्रतिशत की तेजी नहीं आती तो भारतीय बाजार आज लगातार तीसरे दिन भी गिरावट के शिकार होते। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी फेडरल के चेयरमैन जेरोम पॉवेल के बयानों से भी इस धारणा को बढ़ावा मिला है, जो भारत जैसे उभरते बाजारों में फंड प्रवाह के लिए अच्छा संकेत है।
जहां बाजार इस सप्ताह के शुरू में दर्ज सर्वाधिक ऊंचे स्तरों से कुछ ही अंक दूर हैं, वहीं विश्लेषकों का कहना है कि वैश्विक तेल कीमतों और अन्य जिंसों में तेजी से निवेशकों की परेशानी बढऩी शुरू हो गई है।
कच्चा तेल नवंबर से 60 प्रतिशत चढ़ा है। इस सप्ताह यह 13 महीनों में पहली बार 61 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचा।
बोफा सिक्योरिटीज के इंडिया इक्विटी स्ट्रेटेजिस्ट अमीष शाह का कहना है, 'कच्चे तेल समेत बढ़ती जिंस कीमतें कॉरपोरेट आय और बाजारों के लिए सबसे बड़ा जोखिम हैं।' हालांकि अल्पावधि में तेल, अन्य जिंसों और बाजारों में समान गति बरकरार रहने की संभावना है, लेकिन इससे भविष्य में निवेशकों की चिंता बढ़ सकती है।
शाह ने कहा, 'कच्चे तेल में बड़ी तेजी वैश्विक मांग सुधरने का संकेत है। यह भारतीय बाजारों के लिए अच्छा संकेत है। ऐतिहासिक तौर पर कच्चे तेल की कीमतें और निफ्टी सूचकांक के बीच सकारात्मक संबंध बना रहेगा। हालांकि तेल में यह तेजी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी हद तक नकारात्मक परिवेश पैदा कर सकती है। तेल में प्रत्येक 10 डॉलर प्रति बैरल की तेजी से भारत का ऊर्जा आयात बिल करीब 16 अरब डॉलर (जीडीपी का 0.5 प्रतिशत) तक बढ़ जाता है, चालू खाता घाटा बढ़ता है और इससे उपभोक्ताओं के लिए खर्च योग्य आय घट सकती है, क्योंकि ईंधन कीमतें बढऩे से मुद्रास्फीति प्रभावित हो सकती है। यदि कच्चे तेल में तेजी बरकरार रही तो ईंधन पर ऊंचे करों को तर्कसंगत बनाए जाने की जरूरत होगी।'
कई विश्लेषकों को आशंका है कि तेल कीमतों में तेजी बनी रह सकती है, क्योंकि सऊदी अरब समेत कई तेल उत्पादकों ने कीमतें बढ़ाने के लिए उत्पादन में कटौती पर ध्यान दिया है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज में रिटेल रिसर्च प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, 'यदि कच्चा तेल कुछ सप्ताह तक 65-70 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बना रहता है तो हमे भारतीय वृहद परिदृश्य पर कुछ दबाव का पहला संकेत मिल जाएगा।'
विश्लेषकों का कहना है कि पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें मौजूदा स्तरों से बढ़ाना कठिन है। यदि तेल कीमतें तेज बनी रहीं और ऊंची खुदरा कीमतों पर कुछ प्रतिरोध मिलता है तो शुल्क में कटौती किए जाने की जरूरत होगी।
डाल्टन कैपिटल इंडिया के निदेशक यूआर भट ने कहा, 'यदि शुल्क में कटौती होती है और तेल कीमतों में अन्य 10-15 प्रतिशत तक की तेजी आती है तो पूरी वित्तीय गणना चुनौतीपूर्ण होगी।' भट ने कहा कि सरकार को राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए अन्य विकल्प पर विचार करना होगा।
भट ने कहा, 'यदि करों में इजाफा नहीं होता है तो उधारी जरूरत बढ़ जाएगी जिससे ब्याज दरों पर दबाव पड़ेगा। जब ब्याज दरें बढऩी शुरू हो जाएंगी तो इक्विटी बाजार की तेजी दूर हो सकती है क्योंकि ब्याज दरें इक्विटी बाजार स्तरों का मुख्य निर्धारक हैं।'
यदि तेल कीमतों में तेजी बरकरार रही तो डाउनस्ट्रीम तेल रिफाइनिंग एवं विपणन कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। यदि सरकार तुरंत उत्पाद शुल्क में कटौती नहीं करती है तो इन कंपनियों का मार्जिन प्रभावित हो सकता है। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ऊंचे आयात बिल से पूंजीगत खर्च प्रभावित हो रहा है।
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