बैलेंस्ड एडवांटेज फंड से मिटे मूल्यांकन की चिंता | संजय कुमार सिंह / February 07, 2021 | | | | |
सेंसेक्स 50,000 अंक के पार जाने के साथ ही बाजार में कारोबारियों का उत्साह भी बढ़ता जा रहा है। लेकिन शेयरों में आई जबरदस्त तेजी से निवेशक कुछ चिंतित भी हैं। कम से कम इक्विटी म्युचुअल फंडों से पिछले कुछ हफ्तों में रकम की निकासी यही इशारा कर रही है। कई म्युचुअल फंड प्रबंधकों और सलाहकारों की सलाह है कि निवेशक ऐसी स्थिति में बैलेंस्ड एडवांटेज फंड (बीएएफ)/ डायनैमिक ऐसेट अलोकेशन फंड (डीएएएफ) पर दांव खेल सकते हैं।
हरेक फंड कंपनी की एक खास रणनीति होती है, जिस आधार पर वह तय करती है कि उसके बीएएफ/डीएएएफ बाजार में विभिन्न स्तरों पर शेयरों में कितना निवेश करेंगे। बाजार में शेयरों की कीमतें चढऩे के साथ ही ये फंड उनमें निवेश कम कर देते हैं और कीमत उतरते ही दोबारा निवेश शुरू कर देते हैं। पीजीआईएम इंडिया एमएफ के मुख्य कार्याधिकारी अजित मेनन कहते हैं, 'निवेशक इस समय शेयरों की ऊंची कीमतें देखकर थोड़े चिंतित हो गए हैं। उन्हें लगता है कि शेयर काफी महंगे हो गए हैं और अब बढ़त से अधिक गिरावट की आशंका है। वे फिलहाल तय नहीं कर पा रहे हैं कि शेयरों में कितनी रकम लगानी चाहिए। जो निवेशक कम कीमतों पर शेयर खरीदकर उन्हें ऊंची कीमतों पर बेचने की रणनीति अपनाना चाहते हैं वे इन फंडों में निवेश कर सकते हैं।' पीजीआईएम के बीएएफ के लिए नया फंड ऑफर जल्द ही आने वाला है।
शेयरखान में प्रमुख (इन्वेस्टमेंट सॉल्यूशंस) गौतम कालिया कहते हैं, 'इस समय सभी का यही मानना है कि शेयर अब उस स्तर तक पहंचने वाले हैं, जहां से इनमें गिरावट आएगी। किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व कब वित्तीय प्रोत्साहन देना बंद कर देगा और ब्याज दरें बढऩी शुरू हो जाएंगी। जब भी ऐसा होगा तब बाजार में गिरावट आएगी। हालांकि शेयरों से निकलना भी अच्छी रणनीति नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि फिलहाल यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि बाजार में तेजी अब थमने वाली है। लिहाजा शेयरों में संतुलित निवेश के साथ परिसंपत्ति आवंटन रणनीति अपनाना एक अच्छी बात होगी।'
खुद रखें निवेश पर नजर
सभी निवेशकों को इन फंडों की, खासकर दीर्घ अवधि के लिए, जरूरत नहीं है। प्राइमइन्वेस्टर की सह-संस्थापक विद्या बाला कहती हैं, 'शेयर, डेट और सोने से बना पोर्टफोलियो दीर्घ अवधि के लिए कारगर साबित होगा।' इस रणनीति का यह लाभ है कि निवेशकों की अपने पोर्टफोलियो पर अधिक पकड़ होगी। जोखिम लेने की क्षमता और अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वे दीर्घ अवधि के लिए निवेश से संबंधित निर्णय ले सकते हैं। बीएएफ/डीएएएफ से जुड़े जोखिमों पर निवेशकों का अधिक बस नहीं चलता है। बाला कहती हैं, 'फंड प्रबंधक इस बात का निर्णय लेता है कि मिड-कैप और स्मॉल-कैप के मुकाबले बड़े श्ेायरों में कितना निवेश किया जाना चााहिए। निवेशकों का इस बात पर भी उतना नियंत्रण नहीं होता है कि बॉन्ड आदि में निवेश के लिहाज से ये फंड प्रतिफल और ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम किस सीमा तक ले पाएंगे।'
इन बातों का रखें ख्याल
जो निवेशक अपने निवेश का प्रबंधन या इसमें फेरबदल नहीं कर सकते हैं और किसी से सलाह लेने की स्थिति में नहीं हैं, वे इन फंडों का चयन कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए पहले अच्छी तरह सोच-विचार किया जाना चाहिए। यह जरूर पता लगाने की कोशिश करें कि ये फंड निवेश के लिए कौन सा तरीका अपनाएंगे।
मेनन कहते हैं, 'निवेश का निर्णय अगर साफ-सुथरे तरीके एवं आंकड़ों पर नजर टिकाते हुए किया जाए तो बेहतर होगा। फंड प्रबंधकों के भरोसे जितना कम रहा जाए उतना ही अच्छा है।' उस दायरे का अंदाजा लगाने की कोशिश जरूर करें जिसमें ये फंड कारोबार करेंगे। इस बात का ख्याल रखें कि फंड अपनी कारोबारी रणनीति के तहत बाजार में बदलते हालात के अनुसार शेयरों में निवेश करते हैं और आवश्यकता पडऩे पर बदलाव करते रहते हैं। यह भी पता लगाने की कोशिश करें कि डेरिवेटिव में निवेश करने वक्त इन फंडों ने क्या नीति अपनाई थी। डेरिवेटिव में अधिक निवेश से पोर्टफोलियो में अनिश्चितता कम हो जाएगी, लेकिन इससे प्रतिफल भी कम हो जाएगा। आश्वस्त हो लें कि मझोले एवं छोटे शेयरों में हुए निवेश और प्रतिफल एवं ब्याज दरों से जुड़े जोखिमों से आप सहज हैं। अंत में यह भी याद रखें कि निवेश कम से कम तीन वर्षों के लिए किया जाना चाहिए।
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