'मेक इन इंडिया' की विफलता के बाद नए तरीके अपना रहा भारत | अर्णव दत्ता / नई दिल्ली February 07, 2021 | | | | |
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पर 1.97 लाख करोड़ रुपये का योजनाबद्ध प्रोत्साहन देने की घोषणा की है। सरकार पीएलआई योजना का विस्तार टेलीविजन, एयर कंडिशनर, एलईडी और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र तक इसका विस्तार कर रही है। इससे आत्मनिर्भर भारत योजना को इस साल बड़ा बल मिलने की संभावना है।
यह पहला मौका नहीं है, जब स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के कदम स्वीकार किए गए हैं। 2012 से कम से कम दो बार समग्र योजना पेश की गई और इसका व्यापक रूप से प्रचार प्रसार किया गया। लेकिन इसका लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। अब पीएलआई योजना पेश की गई है, जिससे कि पहले की योजनाओं की राह में आई बाधाओं को दूर किया जा सके। उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक पीएलआई बेहतरीन तरीके से डिजाइन की गई योजना है, जिसका लक्ष्य भारत की विनिर्माण क्षमता को तेज करना है और पहले की गलतियों से सीख लेना बुरा नहीं है। अगर पीएलआई और आत्मनिर्भर भारत योजना आज सुर्खियां पा रही हैं, वहीं सरकार ने कुछ साल पहले पीएमपी और मेक इन इंडिया का खूब प्रचार प्रसार किया था।
चरणबद्ध विनिर्माण योजना (पीएमपी) मेक इन इंडिया के बैनर तले 2015 में पेश की गई थी। इसका मकसद उन सामानों का स्थानीय स्तर पर मूल्यवर्धन करना था, जिन पर देश बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। शुरुआती दो साल में उद्योग ने इसका लाभ उठाया। मोबाइल हैंडसेट विनिर्माण संयंत्रों की संख्या 2014 के दो से बढ़कर 2017 में 68 हो गए। लेकिन शुरुआत में सब्सिडी का लाभ उठाने के बाद विनिर्माता सालाना लक्ष्य से चूकने लगे।
आईडीसी में शोध निदेशक नवकेंदर सिंह ने कहा, 'पीएमपी बढिय़ा योजना थी, लेकिन इसका समय सही नहीं था। शुरुआत में इसका फायदा नजर आया क्योंकि उस समय बाजार तेजी से बढ़ रहा ता और नए कारोबारी चीन से आ रहे ते, जिन्होंने यहां असेंबली लाइंस की स्थापना की।'
बहरहाल तीसरे साल और उसके बाद से, जब विनिर्माताओं का लक्ष्य बढ़ गया तो वे बड़े निवेश से बचने लगे, जो उनके लिए जरूरी था। सिंह के मुताबिक सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन (एफएबी) या प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली (पीसीबीए) बनाने के लिए 20-30 साल के लिए प्रतिबद्धता वाले निवेश की जरूरत थी। लेकिन स्थानीय बाजार की मात्रा के हिसाब से यह लक्ष्य अव्यावहारिक हो गया।
इंडियन सेलुलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) के मुताबिक, 'पिछले 5 साल में भारत ने मोबाइल आयात के विकल्प की कवायद की और और तैयार मोबाइल फोन के आयात पर कर बढ़ाया गया। साथ ही चरणबद्ध विनिर्माण योजना के तहत बैटरी, चार्जर, वायर्ड हेडसेट के विनिर्माण पर काम हुआ। तैयार मोबाइल फोन के आयात में आंशिक रूप से कमी आई, वहीं भारत में पर्याप्त मात्रा में विनिर्माण न होने के कारण इसके पुर्जों का आयात जारी रहा है।'
सिंह ने कहा कि पीएमपी योजना अपने शुरुआती लक्ष्य का आधा भी हासिल करने में विफल रही, वहीं स्थानीय असेंबली में वृद्धि में इसकी भूमिका मानी जा सकती है। 2015 के विपरीत आज सभी प्रमुख कंपनियां जैसे श्याओमी और सैमसंग से लेकर विवो और ओप्पो अपने 90 प्रतिशत से ज्यादा हैंडसेट स्थानीय स्तर पर असेंबल करती हैं। 2000 के बाद से पूरी तरह से आयात करने वाली ऐपल अब फोन का 65 प्रतिशत हिस्सा भारत स्थित इकाइयों में बनाती है। आईसीईए के मुताबिक इस समय हैंडसेट के उत्पादन में लगे संयंत्रों की संख्या करीब 268 है।
पीएलआई योजना को पहले ही गति मिल चुकी है और पिछली जुलाई तक 16 परियोजनाओं को मंजूरी मिली है। उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए 2020 आधार वर्ष से उत्पादन व निर्यात बढ़ाने पर 4 से 6 प्रतिशत प्रोत्साहन की पेशकश की गई है।
बहरहाल पीएमपी की तरह पीएलआई के समक्ष भी कुछ अहम चुनौतियां हैं। सिंह के मुताबिक योजना की व्यापक सफलता के लिए राज्यों व केंद्र को एक राय पर आना अहम है, इस समय कुछ राज्य बहुत आक्रामक हैं, वहीं कुछ राज्य इसमें पीछे छूट रहे हैं। आईसीईए के मुताबिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य बहुत आगे हैं, वहीं अन्य राज्य पूंजी सब्सिडी, बिजली सब्सिडी, कर वापसी और कौशल विकास के साथ अन्य मोर्चों पर पीछे हैं।
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