ब्याज चुकाने में जाएगा आधा कर राजस्व | कृष्ण कांत / मुंबई February 07, 2021 | | | | |
केंद्र सरकार की राजकोषीय संभावनाएं सिकुड़ रही हैं क्योंकि इस वित्त वर्ष और अगले वितत्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक ऋण पर ब्याज चुकाने में सरकार के कर राजस्व का आधे से ज्यादा खर्च हो जाएगा। वित्त वर्ष 22 में केंद्र सरकार के कर राजस्व का 52.4 प्रतिशत ब्याज चुकाने पर खर्च हो जाएगा, जो 18 साल का उच्चतम स्तर और वित्त वर्ष 20 की तुलना में 37 प्रतिशत ज्यादा है।
परिणामस्वरूप कर राजस्व और ब्याज भुगतान पर व्यय का अनुपात वित्त वर्ष 22 में घटकर 18 साल के निचले स्तर पर 1.9 गुना हो जाएगा, जो वित्त वर्ष 20 में 2.7 गुना और पांच साल पहले 2.14 गुना था।
केंद्रीय बजट में वित्त वर्ष 22 में ब्याज भुगतान पर 16.9 प्रतिशत सालाना वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जबकि केंद्र सरकार के कर राजस्व (केंद्र के करों में राज्यों की शुद्ध हिस्सेदारी) में 14.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।
उम्मीद है कि वित्त वर्ष 22 में केंद्र सरकार ब्याज के भुगतान पर 8.1 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी, जबकि शुद्ध कर राजस्व 15.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
ब्याज भुगतान पर तेजी से बढ़ते खर्च और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में सार्वजनिक ऋण रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने से भारत के सार्वजनिक ऋण की स्थिरता को लेकर भी चिंता बढ़ रही है। भारत के सार्वजनिक ऋण और जीडीपी का अनुपात इस साल मार्च के अंत तक करीब 90 प्रतिशत पहुंच जाने की संभावना है, जो अब तक का सर्वाधिक स्तर होगा। इसमें राज्य सरकारों व स्थानीय निकायों का बकाया कर्ज भी शामिल है।
सरकार के बॉन्ड पर लगातार ब्याज घटने के बावजूद स्थिति खराब हो रही है। सरकार की उधारी पर भारित औसत लागत वित्त वर्ष 15 के बाद से करीब 250 आधार अंक कम हुई है।
अर्थशास्त्री इसके लिए कर राजस्व और सरकार के व्यय की योजना में बढ़ते अंतर को जिम्मेदार बता रहे हैं। केयर रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'कुल मिलाकर बजट का आकार साल दर साल लगातार बढ़ रहा है, लेकिन कर राजस्व में उस अनुपात में तेजी नहीं आ रही है। इसकी वजह से सरकार पर उधारी और ब्याज भुगतान का बोझ बढ़ रहा है।'
चालू वित्त वर्ष में ब्याज भुगतान 13.2 प्रतिशत बढऩे की उम्मीद है, जबकि केंद्र सरकार का शुद्ध कर राजस्व 18.5 प्रतिशत घटने की संभावना है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर वित्त वर्ष 23 में आर्थिक वृद्धि दर उम्मीद से कम रहती है तो ब्याज का बढ़ता बोझ वृहद आर्थिक स्थिति के हिसाब से सिरदर्द बन जाएगा। इंडिया रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, 'हमें दो चीजों की जरूरत है। पहला, नॉमिनल जीडीपी और सार्वजनिक ऋण पर ब्याज दरों का प्रसार और दूसरा सरकार का प्राथमिक घाटा।' सरकार के राजस्व और ब्याज भुगतान को छोड़कर उसके कुल व्यय के बीच अंतर को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
पंत के मुताबिक अगर नॉमिनल जीडीपी वृद्धि सार्वजनिक ऋण पर लगने वाले ब्याज के ऊपर रहती है और प्राथमिक घाटा घटता है, या सकारात्मक रहता है तो कुल मिलाकर सार्वजनिक ऋण चिंता का विषय नहीं है।
केंद्र सरकार वित्त वर्ष 09 से ही प्राथमिक घाटे पर चल रही है और वित्त वर्ष 17 और वित्त वर्ष 20 के बीच प्राथमिक घाटा बहुत बढ़ा है और वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 22 के बीच दोगुना हो जाने की संभावना है।
प्राथमिक घाटे में तेज बढ़ोतरी का मतलब यह है कि सरकार अब पुराने कर्ज के भुगतान के लिए उधारी ले रही है, न कि सामाजिक और बुनियादी ढांचा परियोजना पर सार्वजनिक व्यय बढ़ा रही है।
बजट में उम्मीद की गई है कि वित्त वर्ष 22 में प्राथमिक घाटा 6.97 लाख करोड़ रुपये रहेगा, जो कि वित्त वर्ष 20 के 3.21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है और वित्त वर्ष 21 के 11.56 लाख करोड़ रुपये रहेगा।
अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीडीपी वृद्धि में तेजी आएगी और इसकी वजह से कर वसूली बढऩे पर भारत के बढ़ते सार्वजनिक ऋण की समस्या का समाधान हो जाएगा।
सिस्टमैक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के शोध प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, 'सार्वजनिक ऋण पूरी दुनिया में बढ़ रहा है, इसलिए यह फिलहाल बहुत चिंता की बात नहीं है। अगर विस्तार वाली रााजकोषीय नीति अपनाने से जीडीपी वृद्धि तेज होती है और वित्त वर्ष 23 और उसके बाद कर राजस्व बढ़ता है तो सार्वजनिक ऋण कोई समस्या नहीं होगा।'
पिछले 5 साल (वित्त वर्ष 16 से वित्त वर्ष 21) के बीच भारत की नॉमिनल जीडीपी की संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) 7.2 प्रतिशत रही है, जबकि सरकार का कर राजस्व और ब्याज भुगतान क्रमश: 7.2 प्रतिशत और 9.4 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ा है।
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि नॉमिनल जीडीपी और कर राजस्व में दो अंकों की वृद्धि दर रहेगी और ब्याज पर खर्च की वृद्धि राजकोषीय समेकन के कारण सीमित होगी।
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