संतुलन साधने की कठिन कवायद | संपादकीय / February 07, 2021 | | | | |
महामारी से चरमराई अर्थव्यवस्था को जब सहारा देने की बात आई तो ज्यादातर बोझ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ही उठाया। उसने नीतिगत दरों में कटौती की, जिससे प्रणाली में तरलता की बाढ़ आ गई और वित्तीय स्थितियां सुधारने में खासी मदद मिल गई। लेकिन यह सब बीते कल की बात है। अब अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है और केंद्रीय बैंक को आपात स्थिति के लिए किए सभी उपाय वापस लेने होंगे। बल्कि नीति को सामान्य स्थिति में लाना अगले वित्त वर्ष के लिए मौद्रिक नीति समिति और रिजर्व बैंक का मुख्य लक्ष्य होगा। लेकिन जो वृहद आर्थिक स्थितियां सामने आ रही हैं, उनसे केंद्रीय बैंक के लिए नीति के मामले में कुछ भी चुनना पेचीदा हो जाएगा।
चालू वित्त वर्ष के लिए मौद्रिक नीति समिति की आखिरी बैठक शुक्रवार को हुई, जिसमें उसने नीतिगत दरों और अपने रुख को यथावत बनाए रखने का फैसला किया। इससे स्पष्ट है कि समिति अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने में यथासंभव मदद कराना चाहती है। उसे उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 10.5 प्रतिशत वृद्घि होगी। चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की उछाल ने सभी को चौंका दिया और जून से नवंबर 2020 के बीच इसकी दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दायरे से ऊपर ही रही। सब्जियों के भाव नरम होने से दिसंबर में मुद्रास्फीति की दर घटी। मगर मुख्य मुद्रास्फीति 5.5 प्रतिशत के साथ ऊंची बनी रही। नीतिगत दरें तय करने वाली समिति का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही तक मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत के आसपास बनी रहेगी। लेकिन अनुमान गलत साबित होने का खतरा भी है। मुख्य मुद्रास्फीति ऊंची बनी रही तो कच्चे तेल समेत ङ्क्षजंसों की चढ़ती कीमतों से महंगाई बढ़ सकती है। मौद्रिक नीति समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर कर घटाने से लागत का दबाव कम हो सकता है।
सरकार ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए अनुमान से अधिक राजकोषीय घाटा झेलने का फैसला किया है। पिछले सप्ताह आम बजट में पेश किए गए संशोधित अनुमानों के मुताबिक केंद्र का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 9.5 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। 2021-22 में इसके 6.8 पर टिकने का अनुमान है। सरकारी व्यय अधिक होने पर मुद्रास्फीति का दबाव भी बढ़ सकता है। इसीलिए मौद्रिक नीति समिति को यह सुनिश्चित करना होगा कि मुद्रास्फीति मध्यम अवधि में काबू में रहे। इस लिहाज से वास्तविक ब्याज दरें लगातार ऋणात्मक बनी रहना जोखिम भरा हो सकता है। अधिक सरकारी उधारी और मुद्रास्फीति का दबाव रिजर्व बैंक के लिए स्थिति और दुष्कर बना देगा। बजट पेश होने के बाद बॉन्ड प्राप्तियां बढ़ गई हैं और शुक्रवार को बैंक सरकारी बॉन्ड नहीं बेच सका क्योंकि निवेशक अधिक प्राप्ति मांग रहे थे। केंद्रीय बैंक को अगले वित्त वर्ष में भी तरलता की स्थिति सामान्य करने के साथ सरकार का भारी-भरकम उधारी कार्यक्रम संभालना होगा।
चालू वित्त वर्ष में भुगतान शेष के भारीभरकम अधिशेष और मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के कारण प्रणाली में आवश्यकता से अधिक तरलता आ गई। मगर आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौटने के साथ अगले वित्त वर्ष में चालू खाता एक बार फिर घाटे में आने की आशंका है। नकद आरक्षी अनुपात में आपात कटौती को चरणों में वापस लिए जाने से तरलता पर भी असर पड़ेगा। तरलता सामान्य होने पर उधारी की लागत भी बढ़ जाएगी। ऋण की मांग में बढ़ोतरी से भी तरलता प्रबंधन मुश्किल हो जाएगा। इसलिए रिजर्व बैंक को सुनिश्चित करना होगा कि बाजार की दरें नीतिगत दरों से अलग नहीं हो जाएं और खुले बाजार में परिचालन के कारण अतिरिक्त नकदी आने से कीमतें चढऩे नहीं लगें। बैंक व्यक्तिगत निवेशकों को केंद्रीय बैंक में खाते के जरिये सरकारी बॉन्ड बाजार में सीधे प्रवेश करने की इजाजत भी दे रहा है। इससे खरीदारी के इच्छुकों की संख्या बढ़ जाएगी मगर व्यक्तिगत निवेशकों को मार्गदर्शन की जरूरत हो सकती है।
|