सरकारी बॉन्डों में कम ही होगी छोटे निवेशकों की रुचि | अभिजित लेले / मुंबई February 05, 2021 | | | | |
एक बड़े ढांचागत सुधार के तहत अब छोटे निवेशक सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) या बॉन्ड बाजार में भागीदारी के लिए आरबीआई के साथ प्रत्यक्ष रूप से खाता खोलने में सक्षम होंगे। आरबीआई ने सरकारी उधारी कार्यक्रम के आसान प्रबंधन के लिए निवेशक आधार व्यापक बनाने के लिए यह कदम उठाया है।
केंद्रीय बैंक की इस पहल का स्वागत करते हुए बैंकरों और बाजार कारोबारियों का कहना है कि इससे भविष्य में सरकारी बॉन्ड बाजार में रिटेल भागीदारी बढऩे की संभावना है। बाजार जोखिमों और अवसरों के बारे में निवेशक जागरूकता बढ़ाई जाएगी। इससे बैंक जमाओं और म्युचुअल फंडों में पूंजी प्रवाह पर भी असर पड़ सकता है।
मौजूदा समय में, छोटे निवेशक बैंकों और डीलरों जैसे बिचौलियों के जरिये प्रमुख नीलामियों में गैर-प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के तहत सरकारी प्रतिभूतियां खरीद सकते हैं। छोटे निवेशक एग्रीगेशन मॉडल के जरिये एनडीएस -ओएम तक पहुंच बना सकते हैं और स्टॉक एक्सचेंजों को मांग बढ़ाने और इसे आरबीआई के साथ पेश करने की अनुमति थी।
नीतिगत समीक्षा के बाद बातचीत में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, 'यह बड़ा ढांचांगत सुधार है, क्योंकि दुनियाभर में अमेरिका और ब्राजील के अलावा कई देशों ने ऐसा किया है। लेकिन एशिया में हम ऐसा करने वाले पहले देश हैं।'
प्रत्यक्ष भागीदारी व्यवस्था के बारे में जानकारी देते हुए डिप्टी गवर्नर बी पी कानूनगो ने कहा कि छोटे निवेशक अब जी-सेक की अपनी जरूरत के आधार पर एनडीएस-ओएम प्रणाली में प्रत्यक्ष रूप से बोली लगाने की स्थिति में हो सकते हैं। इसके अलावा, छोटे निवेशक ई-कुबेर सिस्टम में आरबीआई के साथ गिल्ट अकाउंट भी खोल सकते हैं।
उन्होंने कहा कि कई वर्षों से आरबीआई सरकारी प्रतिभूति बाजार का दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने कहा कि अब सरकारी उधारी के आकार के साथ यह जरूरी है कि निवेशक आधार व्यापक बनाया जाए।
जहां इस कदम से निवेशक आधार बढ़ सकता है, वहीं इससे एचएनआई यानी अमीर निवेशकों को ज्यादा आकर्षित करने में भी मदद मिल सकती है। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के सहायक निदेशक सौम्यजीत नियोगी का कहना है कि बैंकिंग व्यवस्था और म्युचुअल फंडों की मजबूत स्थिति को देखते हुए संपूर्ण भागीदारी में ज्यादा समय लग सकता है। निवेशक भागीदारी सेगमेंट-केंद्रित रहने की ज्यादा संभावना है और स्थिति काफी हद तक ब्याज दर व्यवस्था पर निर्भर करेगी।
म्युचुअल फंड उद्योग को इस पहल से एमएफ योजनाओं में पूंजी प्रवाह सीमित होने की आशंका नहीं दिख रही है।
मिरई ऐसेट एमएफ के मुख्य कार्याधिकारी स्वरूप मोहंती ने कहा कि म्युचुअल फंडों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। गिल्ट फंड चक्रीयता से जुड़े रहे हैं और इनमें निवेशक दर कटौती के चक्रों के दौरान आते हैं।
गिल्ट फंड प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) के संदर्भ में ज्यादा बड़े नहीं होते हैं। गिल्ट फंडों की एयूएम 31 दिसंबर 2020 तक 20,200 करोड़ रुपये दर्ज की गई थी, जो इस उद्योग की कुल डेट एयूएम का 1.4 प्रतिशत है।
ऐक्सिस एमएफ में इक्विटी प्रमुख आर शिवकुमार ने कहा कि यह ऐसा सेगमेंट नहीं है जिसमें बहुत ज्यादा लोकप्रियता देखी गई हो। किसी भी परिसंपत्ति वर्ग में छोटे निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना सकारात्मक है। इसकी वजह से म्युचुअल फंडों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा,, क्योंकि यह डेट म्युचुअल फंड स्पेस में रिटेल निवेशकों के लिए प्रमुख श्रेणी नहीं है।
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